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आपराधिक कानून
व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा नोटिस की संसूचना
« »28-Jan-2025
सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI “सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अपने संबंधित पुलिस तंत्र को CrPC, 1973 की धारा 41-A/BNSS, 2023 की धारा 35 के अधीन नोटिस जारी करने के लिये केवल CrPC, 1973/BNSS, 2023 के अधीन निर्धारित संसूचना की सेवा के माध्यम द्वारा एक स्थायी आदेश जारी करना चाहिये।” न्यायमूर्ति एम.एम.सुंदरेश एवं न्यायमूर्ति राजेश बिंदल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति एम.एम.सुंदरेश एवं न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने माना है कि पुलिस अधिकारी आरोपी/संदिग्ध की उपस्थिति के लिये व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा नोटिस जारी करने के लिये अधिकृत नहीं हैं।
- उच्चतम न्यायालय ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- श्री सिद्धार्थ लूथरा इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्यायमित्र) के रूप में कार्य कर रहे हैं तथा उन्होंने 20 जनवरी 2025 की तिथि की अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की है।
- इस मामले में कई आदेशों के माध्यम से जारी किये गए विभिन्न न्यायालयी निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी शामिल है।
- सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों एवं उच्च न्यायालयों को पहले मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा संस्थित एक मॉडल शपथपत्र का पालन करने का निर्देश दिया गया था ताकि न्यायालयी निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
- यह मामला मुख्य रूप से तीन मुख्य मुद्दों से संबंधित है:
- आधार कार्ड सत्यापन का उपयोग करके व्यक्तिगत शपथपत्र पर विचाराधीन कैदियों (UTP) की रिहाई।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 41-A और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 35 के अधीन प्रेषित नोटिस की उचित सेवा।
- उच्च न्यायालयों द्वारा "संस्थागत निगरानी तंत्र" की स्थापना।
- NALSA (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) व्यक्तिगत शपथपत्र पर विचाराधीन कैदियों की रिहाई के संबंध में चर्चा में शामिल रहा है।
- ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ पुलिस अधिकारी निर्धारित विधिक प्रक्रियाओं का पालन करने की जगह व्हाट्सएप एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा नोटिस दे रहे हैं।
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया पूर्वनिर्णय सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI एवं अन्य (2022) तथा दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया राकेश कुमार बनाम विजयंत आर्य (2021) और अमनदीप सिंह जौहर बनाम राज्य (2018) का संदर्भ दिया गया है।
- इस मामले में सभी भारतीय राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की भागीदारी शामिल है, तथा उनके संबंधित महाधिवक्ता एवं विधिक प्रतिनिधि न्यायालय के समक्ष उपस्थित होते हैं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं??
उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि:
- न्यायालय ने कहा कि सभी पक्षों ने उसके निर्देशों का पूर्ण अथवा आंशिक अनुपालन सुनिश्चित किया है, सिवाय:
- मिजोरम राज्य (जिसने समय सीमा के बाद अनुपालन शपथपत्र संस्थित किया)।
- केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप (जिसने 21 मई 2023 से पहले के अपने अनुपालन शपथपत्र को फिर से संस्थित किया)।
- व्हाट्सएप के द्वारा नोटिस सेवा के संबंध में:
- न्यायालय ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI एवं अन्य (2022) में अपने पूर्वनिर्णय का उदाहरण दिया।
- इसने पाया कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा दिये गए नोटिस CrPC की धारा 41-A/BNSS की धारा 35 के अधीन वैध नहीं हैं।
- न्यायालय ने विशेष रूप से DGP हरियाणा के 26 जनवरी 2024 के स्थायी आदेश के साथ इस मामले पर ध्यान दिया, जिसमें नोटिस की इलेक्ट्रॉनिक सेवा की अनुमति दी गई थी।
- संस्थागत निगरानी के मामले पर:
- न्यायालय ने अतीत एवं भविष्य के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये उच्च न्यायालय समितियों द्वारा नियमित बैठकों की आवश्यकता पर बल दिया।
- इसने संबंधित प्राधिकारियों से मासिक अनुपालन रिपोर्ट के महत्त्व पर बल दिया।
BNSS की धारा 35 क्या है?
पुलिस कब बिना वारंट के गिरफ़्तारी कर सकती है?
- बिना वारंट के गिरफ्तारी की मूल शक्तियाँ [उपधारा (1)]
- पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है जो उनकी उपस्थिति में कोई संज्ञेय अपराध कारित करता है।
- 7 वर्ष तक का कारावास के साथ अपराध के लिये गिरफ्तारी।
- उचित शिकायत, विश्वसनीय सूचना या संदेह की आवश्यकता है।
- विशिष्ट शर्तों को पूरा करना होगा:
- पुलिस अधिकारी का उचित विश्वास।
- पाँच कारणों में से एक के लिये गिरफ्तारी की आवश्यकता:
- भविष्य में संभावित अपराधों को रोकना।
- उचित विवेचना।
- साक्ष्य को सुरक्षित रखना।
- साक्षियों के साथ छेड़छाड़ को रोकना।
- न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित करना।
- गंभीर अपराधों के लिये गिरफ्तारी (7 वर्ष से अधिक/मृत्युदण्ड)
- विश्वसनीय सूचना के आधार पर।
- कमीशन के उचित विश्वास की आवश्यकता है।
- गिरफ्तारी के लिये विशेष श्रेणियाँ
- घोषित अपराधी।
- संदिग्ध चोरी की संपत्ति का कब्ज़ा।
- पुलिस की ड्यूटी में बाधा डालना या अभिरक्षा से भागना।
- संदिग्ध सैन्य भगोड़े।
- प्रत्यर्पण के अधीन अंतर्राष्ट्रीय अपराध।
- नियमों का उल्लंघन करने वाले रिहा किये गए अपराधी।
- अन्य पुलिस अधिकारियों की मांग के आधार पर गिरफ़्तारियाँ।
- असंज्ञेय अपराध [उपधारा (2)]
- वारंट या मजिस्ट्रेट के आदेश की आवश्यकता है।
- धारा 39 के प्रावधानों के अधीन।
- नोटिस प्रक्रिया [उपधारा (3)-(6)]
- जब तत्काल गिरफ़्तारी की आवश्यकता न हो तो अनिवार्य नोटिस।
- नोटिस का अनुपालन करने का कर्त्तव्य।
- अनुपालन करने पर गिरफ़्तारी से सुरक्षा।
- अनुपालन न करने के परिणाम।
- कमजोर व्यक्तियों के लिये विशेष संरक्षण [उपधारा (7)]
- गिरफ़्तारी के लिये पूर्व अनुमति आवश्यक है।
- इस पर लागू होता है:
- 3 वर्ष से कम कारावास वाले अपराध।
- अशक्त व्यक्ति।
- 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति।
CrPC की धारा 41 A क्या है?
- यह धारा पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थिति की सूचना से संबंधित है। इसमें यह प्रावधानित किया गया है कि -
(1) पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में, जहाँ धारा 41 की उपधारा (1) के प्रावधानों के अधीन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी अपेक्षित नहीं है, नोटिस जारी करके उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है या उचित संदेह है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, अपने समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर, जैसा नोटिस में विनिर्दिष्ट किया जाए, उपस्थित होने का निर्देश देगा।
(2) जहाँ किसी व्यक्ति को ऐसा नोटिस जारी किया जाता है, वहाँ उस व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह नोटिस की शर्तों का पालन करे।
(3) जहाँ ऐसा व्यक्ति नोटिस का अनुपालन करता है तथा अनुपालन करना जारी रखता है, उसे नोटिस में निर्दिष्ट अपराध के संबंध में तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक कि दर्ज किये जाने वाले कारणों से पुलिस अधिकारी की यह राय न हो कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिये।
(4) जहाँ ऐसा व्यक्ति किसी भी समय नोटिस की शर्तों का पालन करने में असफल रहता है या अपनी पहचान बताने के लिये अनिच्छुक है, वहाँ पुलिस अधिकारी, सक्षम न्यायालय द्वारा इस संबंध में पारित आदेशों के अधीन रहते हुए, नोटिस में उल्लिखित अपराध के लिये उसे गिरफ्तार कर सकेगा।
ऐतिहासिक निर्णय
- सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI एवं अन्य (2022):
- यह उच्चतम न्यायालय का एक ऐतिहासिक निर्णय था जिसने गिरफ्तारी प्रक्रियाओं एवं नोटिस सेवा के विषय में महत्त्वपूर्ण दिशा-निर्देश स्थापित किये। न्यायालय ने कई महत्त्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं।
- यह मामला विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसने नीचे उल्लिखित दिल्ली उच्च न्यायालय के मामले में स्थापित सिद्धांतों को स्वीकृति दी और उन्हें यथावत बनाए रखा।
- राकेश कुमार बनाम विजयंता आर्य (DCP) एवं अन्य (2021):
- दिल्ली उच्च न्यायालय के इस निर्णय में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से नोटिस की संसूचना के मामले पर विशेष रूप से विचार किया गया।
- न्यायालय ने माना कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से नोटिस की संसूचना करना CrPC की धारा 41-A (अब BNSS, 2023 की धारा 35) के अधीन संसूचना का वैध रूप नहीं है।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि ऐसी सेवा में CrPC के अध्याय VI में उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में विशेष रूप से इस निर्वचन का समर्थन किया।