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सिविल कानून

स्थिर कब्जा धारा 6 के वादों में

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 22-Oct-2025

गौरव श्री कल्याण बनाम राम नरेश सिंह एवं अन्य 

"न्यायालय ने निर्णय दिया कि विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 6, स्थिर कब्जे की रक्षा करती हैन कि केवल आकस्मिक उपस्थिति कीतथा अनुतोष के लिये animus possidendi (कब्जा करने का आशय) के सबूत की आवश्यकता होती है।" 

न्यायमूर्ति संदीप वी. मार्ने 

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

गौरव श्री कल्याण बनाम राम नरेश सिंह एवं अन्य (2025) के मामलेमें बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संदीप वी. मार्ने ने कब्जे की बहाली की मांग करने वाली वादी की अंतरिम अर्जी को खारिज कर दियाजिसमें कहा गया था कि विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SRA) की धारा के अधीन अपेक्षित वाद परिसर के स्थिर कब्जे को साबित करने में असफल रहा। 

गौरव श्री कल्याण बनाम राम नरेश सिंह एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • वादी ने विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा के अधीन वाद दायर कियाजिसमें सितंबर 2025 को दादर (पूर्व)मुंबई में 'लक्ष्मी सदनभवन के भूतल पर ब्लॉक नंबर और के रूप में ज्ञात परिसर सेजबरन बेदखली कादावा किया गया। 
  • वादी ने दावा किया कि वह राधेश्याम छोटेलाल शाह (राधेश्याम) का भतीजा और द्वितीय श्रेणी का विधिक उत्तराधिकारी हैजो वाद परिसर का किराएदार था। 
  • राधेश्याम ने कथित तौर पर ब्लॉक संख्या और में एक अन्य किराएदार और श्रीमती सरोज कृष्णाजी सलाकाडे (सरोज) से किराएदारी अधिकार हासिल किये थेजिनके पास इमारत में 50% अंश थे 
  • सरोज ने 25 जनवरी 2006 को वसीयत के माध्यम से संपत्ति मेंअपना पूरा अंशराधेश्याम को दे दिया था और वादी ने इस वसीयत का निष्पादक होने का दावा किया था। 
  • वादी ने आरोप लगाया कि वह राधेश्याम के साथ परिवार के सदस्य की तरह रहता थाजबकि वह जॉर्डन में नौकरी करता था और समय-समय पर भारत आता-जाता रहता था। 
  • राधेश्याम का निधन जुलाई 2025 को हुआ और वादी अंतिम संस्कार करने के लिये जुलाई 2025 को जॉर्डन से आया। 
  • सितंबर 2025 को प्रतिवादियों द्वारा वादी को कथित रूप से जबरन परिसर से बेदखल कर दिया गया। 
  • प्रतिवादी संख्या ने बाद में 10 सितंबर 2025 को एस.सीवाद संख्या 2136/2025 दायर कियाजिसमें दावा किया गया कि वह वाद परिसर में किराएदार है और वादी के विरुद्ध व्यादेश की मांग की गई। 
  • वादी ने 19 सितंबर 2025 को वर्तमान वाद दायर कियाजिसमें कब्जे की बहाली और 10 करोड़ रुपए के हर्जाने के साथ-साथ अस्थायी व्यादेश के लिये अंतरिम आवेदन भी मांगा गया। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

धारा और स्थिर कब्जे पर: 

  • न्यायालय ने कहा कि विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 6 "वास्तविक कब्जे" की रक्षा करती हैन कि केवल "कब्जे के दावे" या संपत्ति में उपस्थिति की। 
  • मात्र उपस्थिति का साक्ष्य अपर्याप्त है - जो साबित करने की आवश्यकता है वह है "स्थिर कब्जा" जो प्रभावीअविचलित हो तथा स्वामी के ज्ञान में हो। 
  • रामे गौड़ा बनाम एम. वर्धप्पा नायडू (2004)औरपूना राम बनाम मोती राम (2019)पर विश्वास करते हुए , न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि आकस्मिक या छिटपुट कृत्य संरक्षण के योग्य कब्जे का गठन नहीं करते हैं। 
  • धारा प्रतिद्वन्द्वी दावों पर निर्णय होने तक अस्थायी अनुतोष प्रदान करती हैइसमें किसी अपील या पुनर्विलोकन की अनुमति नहीं हैजो इसकी संक्षिप्त प्रकृति को दर्शाता है। 

कब्जा करने के आशय की अवधारणा (On Animus Possidendi) और वादी की स्थिति पर: 

  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कब्जे के लियेकब्जा करने के आशय की अवधारणा कीआवश्यकता होती है - संपत्ति पर नियंत्रण करने और दूसरों को इससे अपवर्जित करने का सचेत आशय 
  • वादीजॉर्डन का स्थायी निवासी है और समय-समय पर वहाँ आता रहता हैइसलिये उसने वाद परिसर पर कब्जा करने के अपने आशय का पूर्णत: अभाव प्रदर्शित किया।  
  • राधेश्याम का अंतिम संस्कार करने के लिये उनके द्वारा किया गया कार्य संपत्ति पर कब्जे के समान नहीं माना जा सकता। 
  • न्यायालय ने कहा कि कब्जा वापस दिलाने का परिणाम केवल यह होगा कि वादी परिसर को बंद कर देगा और जॉर्डन वापस लौट जाएगाजिससे धारा का उद्देश्य असफल हो जाएगा। 

विधिक सिद्धांतों और सुविधा संतुलन पर: 

  • बेहराम तेजानी एवं अन्य बनाम अज़ीम जगानी (2017) काहवाला देते हुए , न्यायालय ने निर्णय दिया कि निःशुल्क लाइसेंसधारियों के साथ रहने वाले नातेदारों को स्वतंत्र अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। 
  • वादी को अपूरणीय क्षति नहीं होगी क्योंकि वह वहाँ का निवासी नहीं था और उसे अपना आश्रय भी नहीं खोना पड़ेगा। 
  • न्यायालय ने कहा कि पर्याप्त वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हैं  किराएदारी अधिकारों के लिये घोषणात्मक वाद या स्वामित्व के लिये स्वामित्व-आधारित वाद। 

अंतिम आदेश:  

  • न्यायालय ने अंतरिम आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वादी कथित बेदखली की तारीख को वाद परिसर पर स्थापित कब्जे का प्रथम दृष्टया मामला साबित करने में पूरी तरह असफल रहा है। 

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा क्या है? 

बारे में: 

  • धारा उन व्यक्तियों के लिये उपचार प्रदान करती है जिनकी अचल संपत्ति उनकी सहमति के बिना और विधि सम्मत प्रक्रिया के अलावा किसी अन्य तरीके से बेदखल कर दी गई हो। 
  • बेदखल व्यक्ति किसी अन्य हक के होते हुए भीवाद के माध्यम से कब्जा पुनः प्राप्त कर सकता है। 
  • वाद बेदखली की तारीख से छह मास के भीतर लाया जाना चाहिये 
  • इस धारा के अंतर्गत सरकार के विरुद्ध कोई वाद नहीं लाया जा सकता। 

प्रमुख विशेषताएँ: 

  • यह एक संक्षिप्त उपचार है जिसमें स्वामित्व या कब्जे की विधिक प्रकृति के साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती है। 
  • इसका उद्देश्य लोगों को विधि अपने हाथ में लेने से हतोत्साहित करना तथा यथास्थिति बहाल करना है। 
  • इस धारा के अंतर्गत पारित किसी भी आदेश या डिक्री के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकतीन ही किसी पुनर्विलोकन की अनुमति है। 
  • यह धारा किसी भी व्यक्ति को स्वामित्व स्थापित करने तथा कब्जा पुनः प्राप्त करने के लिये वाद दायर करने से नहीं रोकती है। 

अनुतोष के लिये आवश्यकताएँ: 

  • वादी को अचल संपत्ति पर वास्तविक कब्जा (केवल आन्वयिक या कागजी कब्जा नहीं) साबित करना होगा। 
  • कब्जा स्थिरप्रभावी और अविचलित होना चाहिये - आकस्मिकरुक-रुक कर या भटका हुआ नहीं होना चाहिये 
  • इसमें कब्जा करने के आशय की अवधारणा (animus possidendi) का तत्त्व होना चाहिये । 
  • वाद दायर करने से छह मास पहले बेदखली हो जानी चाहिये 
  • बेदखली वादी की सहमति के बिना तथा विधि सम्मत तरीके से नहीं होनी चाहिये 

स्वामित्व-आधारित वादों से अंतर: 

  • धारा के वाद केवल कब्जे और बेदखली के तथ्य पर केंद्रित होते हैंन कि स्वामित्व या कब्जे के विधिक अधिकार पर। 
  • यहाँ तक ​​कि कोई अतिचारी या विधिक अधिकार से रहित व्यक्ति भी धारा 6 के अधीन वाद कर सकता हैबशर्ते कि उसके पास स्थिर कब्जा हो। 
  • यदि कोई स्वामित्व संबंधी प्रश्न हों तो उनका अवधारण धारा के अंतर्गत कब्जे की बहाली के बाद पृथक् मूल कार्यवाही में किया जा सकता है।