एडमिशन ओपन: UP APO प्रिलिम्स + मेंस कोर्स 2025, बैच 6th October से   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)   |   अपनी सीट आज ही कन्फर्म करें - UP APO प्रिलिम्स कोर्स 2025, बैच 6th October से










होम / हिंदू विधि

पारिवारिक कानून

सपिंडा विवाह

    «
 17-Dec-2025

परिचय  

हिंदू विधि के अंतर्गत विवाह विभिन्न प्रतिबंधों और शर्तों द्वारा नियंत्रित होता हैजिनका उद्देश्य पारिवारिक और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखना है। इन प्रतिबंधों में सेसपिंडा विवाहों पर प्रतिषिद्ध सबसे महत्त्वपूर्ण विधिक बाधाओं में से एक है। यह लेख सपिंडा विवाहों की अवधारणाहिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के अंतर्गत उनके विधिक ढाँचेऐसे विवाहों की अनुमति देने वाले अपवादों और समान संबंधों पर अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण का विश्लेषण करता है। 

सपिंडा विवाह 

अवधारणा को परिभाषित करना: 

  • सपिंडा विवाह उन व्यक्तियों के बीच होता है जो एक निश्चित डिग्रियों की निकटता के भीतर एक दूसरे से संबंधित होते हैं। 
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 3के अधीन सपिंडा विवाहों को इस प्रकार परिभाषित किया गया हैकि दो व्यक्तियों को एक दूसरे का "सपिंडा" कहा जाता है यदि एक व्यक्ति सपिंडा संबंध की सीमा के भीतर दूसरे का परम्परागत अग्रपुरुष होया यदि उनका एक परम्परागत अग्रपुरुष हो जो उनमें से प्रत्येक के संदर्भ में सपिंडा संबंध की सीमा के भीतर हो।  

परम्परागत अग्रपुरुष को समझना: 

  • हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) के प्रावधानों के अधीनमाता की ओर सेएक हिंदू व्यक्ति अपने परम्परागत अग्रपुरुष क्रम में तीन पीढ़ियों के भीतर किसी से भी विवाह नहीं कर सकता है। 
  • पिता की तरफ सेयह प्रतिषिद्ध उस व्यक्ति की पाँच पीढ़ियों के भीतर के किसी भी व्यक्ति पर लागू होता है। 
  • व्यवहार मेंइसका अर्थ यह है कि अपनी माता की तरफ सेकोई व्यक्ति अपने भाई-बहन (पहली पीढ़ी)अपने माता-पिता (दूसरी पीढ़ी)अपने दादा-दादी (तीसरी पीढ़ी)या तीन पीढ़ियों के अंदर इस वंशज को साझा करने वाले किसी व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकता है। 
  • उनके पिता की तरफ सेयह प्रतिषेध उनके पितामह या मातामह या पितामही या मातामही तक और पाँच पीढ़ियों के अंदर इस वंशज को साझा करने वाले किसी भी व्यक्ति तक विस्तारित होगा।  

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5(v) के अधीन विधिक परिणाम 

  • यदि कोई विवाह धारा 5(v) का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है क्योंकि वह सपिंडा विवाह हैऔर ऐसी रूढ़ि की अनुमति देने वाली कोई स्थापित प्रथा नहीं हैतो उसे शून्य घोषित कर दिया जाएगा।  
  • इसका अर्थ यह होगा कि विवाह आरंभ से ही अमान्य थाऔर इसे ऐसा माना जाएगा जैसे यह कभी हुआ ही नहीं था। 
  • एक शून्य विवाह को कोई विधिक मान्यता नहीं होती और इससे पक्षकारों के बीच कोई विधिक अधिकार या दायित्त्व उत्पन्न नहीं होते। 

सपिंडा विवाहों पर प्रतिषेधों के अपवाद 

  • अपवाद का उल्लेख हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(v) में किया गया है और इसमें कहा गया है कि यदि संबंधित व्यक्तियों के रूढ़ि -प्रथा सपिंडा विवाह की अनुमति देते हैंतो ऐसे विवाहों को शून्य घोषित नहीं किया जाएगा। 
  • दूसरे शब्दों मेंयदि समुदायजनजातिसमूह या परिवार के भीतर कोई स्थापित रूढ़ि है जो सपिंडा विवाहों की अनुमति देती हैऔर यदि इस रूढ़ि का लंबे समय तक निरंतर और समान रूप से पालन किया जाता हैतो इसे प्रतिषेध का वैध अपवाद माना जा सकता है।  
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 3(क) में "रूढ़ि" की परिभाषा दी गई हैजिसमें कहा गया है कि किसी रूढ़ि का लंबे समय तक लगातार और एरूपता से अनुपालित किये जाने के कारण किसी स्थानीय क्षेत्रआदिम जातिसमुदाय, समूह या परिवार में हिंदुओं में विधि का बल” अभिप्राप्त हो गया है 

वैध रूढ़ि के लिये शर्तें: 

  • किसी रूढ़ि को वैध माने जाने के लिये कुछ शर्तों का पूरा होना आवश्यक है। 
  • विचाराधीन नियम "निश्चित होना चाहिये और अनुचित या लोक नीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिये।" 
  • यदि कोई नियम केवल एक परिवार पर लागू होता हैतो उसे "परिवार द्वारा बंद नहीं किया होना चाहियेहोना चाहिये 
  • यदि ये शर्तें पूरी होती हैंऔर सपिंडा विवाहों की अनुमति देने वाली कोई वैध रूढ़ि हैतो विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(v) के अधीन शून्य घोषित नहीं किया जाएगा। 

निकट नातेदारों के बीच विवाह पर अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य 

फ्रांस और बेल्जियम: 

  • फ्रांस और बेल्जियम में, 1810 की दण्ड संहिता के अधीन अनाचार (incest) के अपराध को समाप्त कर दिया गया थाजिससे सहमति से वयस्क व्यक्तियों के बीच विवाह की अनुमति मिल गई थी। 
  • सगोत्र लैंगिक संबंध या विवाह को सगोत्र विवाह कहते हैंजिसमें रक्त संबंध से घनिष्ठ रूप से जुड़े पुरुष और महिला के बीच लैंगिक संबंध स्थापित होते हैं। 
  • बेल्जियम ने 1867 में एक नई दण्ड संहिता लागू करने के बाद भी इस विधिक रुख को बरकरार रखा। 

पुर्तगाल: 

  • पुर्तगाली विधि में सगोत्र विवाह को अपराध नहीं माना गया हैजिसका अर्थ है कि करीबी नातेदारों के बीच विवाह प्रतिषिद्ध नहीं हो सकता है। 

आयरलैंड गणराज्य: 

  • यद्यपि आयरलैंड गणराज्य ने 2015 में समलैंगिक विवाहों को मान्यता दी थीकिंतु समलैंगिक संबंधों में रहने वाले व्यक्तियों को स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिये अनाचार संबंधी विधि को अद्यतन नहीं किया गया है। 

इटली: 

  • इटली में अनाचार (Incest) को अपराध केवल उसी स्थिति में माना जाता है जब इससे "सार्वजनिक बदनामी" होती हैजिससे यह परिलक्षित होता है कि विधिक ढाँचा कुछ विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दायित्त्व का निर्धारण करता है 

संयुक्त राज्य अमेरिका: 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका मेंअनाचारपूर्ण विवाह सामान्यतः सभी 50 राज्यों में प्रतिषिद्ध है।  
  • तथापिसहमति से वयस्क व्यक्तियों के बीच होने वाले अनाचारपूर्ण संबंधों से संबंधित विधियों में भिन्नताएँ हैं। 
  • उदाहरण के लियेन्यू जर्सी और रोड आइलैंड कुछ शर्तों के अधीन ऐसे संबंधों की अनुमति देते हैं। 

निष्कर्ष 

हिंदू विवाह अधिनियम द्वारा विनियमित सपिंडा विवाह की अवधारणाकुछ परम्परागत अग्रपुरुष के अंदर विवाहों पर प्रतिषेध लगाकर पारिवारिक और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने का प्रयास दर्शाती है। इस विधि में ऐसे प्रावधान सम्मिलित हैं जो इन निर्बंधनों का उल्लंघन करने वाले विवाहों को शून्य घोषित करते हैंजब तक कि ऐसे विवाहों की अनुमति देने वाली कोई सुस्थापित रूढ़ि विद्यमान न हो। यद्यपि अनुच्छेद 21 के अधीन अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का सांविधानिक अधिकार संरक्षित हैयह उस सांविधिक ढाँचे के भीतर संचालित होता है जो सामाजिक कल्याण के लिये युतियुक्त निर्बंधन अधिरोपित करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर परविभिन्न देशों में सगोत्रीय संबंधों और विवाहों पर अलग-अलग विधिक रुख हैंजो व्यक्तिगत पसंद और पारिवारिक संबंधों के विवाद्यकों पर विधिक दृष्टिकोण की विविधता को प्रदर्शित करते हैं।