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आपराधिक कानून

दोषसिद्धि के लिये न्यूनतम सज़ा का प्रावधान

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 06-Sep-2024

जॉर्ज बनाम केरल राज्य

“सज़ा में संशोधन के बाद, अपीलकर्त्ता को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया जाता है”।

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जॉर्ज बनाम केरल राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 304 (A) एवं धारा 338 के प्रावधानों के अधीन कोई न्यूनतम सज़ा प्रावधानित नहीं है।

जॉर्ज बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में, अपीलकर्त्ता को IPC की धारा 279, 337, 338, 304 (A) के अधीन दोषी ठहराया गया था।
  • यह आरोप लगाया गया था कि अपीलकर्त्ता एक छोटी लॉरी को तेज़ी से और उपेक्षा से चला रहा था, जिसके परिणामस्वरूप संतोष कुमार की मृत्यु हो गई तथा एक पैदल यात्री को भी कुछ चोटें आईं।
  • ट्रायल कोर्ट ने प्रस्तुत किये गए साक्ष्यों के आधार पर अपीलकर्त्ता के विरुद्ध अर्थदण्ड और सज़ा की अवधि बताते हुए निर्णय दिया।
  • ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एवं उच्च न्यायालय ने की, जब अपीलकर्त्ता ने उसके समक्ष पुनरीक्षण अपील दायर की।
  • आदेश से व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील की। ​​
  • अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि IPC की धारा 304 (A) एवं धारा 338 के अधीन कोई न्यूनतम सज़ा निर्धारित नहीं है, लेकिन अवधि 2 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
    • यह भी आरोप लगाया गया कि सज़ा को बिना किसी कारावास की अवधि के अर्थदण्ड तक सीमित किया जा सकता है।
    • यह आरोप लगाया गया कि IPC की धारा 279 एवं 337 के अधीन अपराध के लिये निर्धारित अधिकतम सज़ा 6 महीने है तथा सज़ा भी केवल अर्थदण्ड हो सकती है।
    • उन्होंने क्षतिपूर्ति की राशि में कमी करने का भी अनुरोध किया क्योंकि वह एक गरीब एवं वृद्ध व्यक्ति था।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने पाया कि अधीनस्थ न्यायालयों के पूर्व निर्णयों के आधार पर अपीलकर्त्ता पहले ही 117 दिन सज़ा काट चुका है।
  • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि सुरेंद्रन बनाम पुलिस उपनिरीक्षक (2021) के मामले पर विश्वास करते हुए IPC की धारा 304 (A) एवं 338 के अधीन न्यूनतम सज़ा प्रावधानित नहीं की गई है।
  • इसलिये उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को संशोधित किया तथा अपीलकर्त्ता द्वारा देय सज़ा एवं क्षतिपूर्ति को कम कर दिया।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अधीन उपेक्षा से मृत्यु का कारण बनने वाले कृत्यों के लिये दोषसिद्धि की अवधि:

  • धारा 106: उपेक्षा के कारण कारित मृत्यु:
    • लापरवाहीपूर्ण कार्य के कारण मृत्यु:
      • यह खंड पहले भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 (A) के अंतर्गत आता था, जिसके अधीन दो वर्ष तक की कैद या अर्थदण्ड या दोनों का प्रावधान था।
      • BNS के अधीन इस धारा के खंड (1) में कहा गया है कि जो कोई किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी ऐसे जल्दीबाज़ी या उपेक्षापूर्ण कार्य द्वारा करता है, जो आपराधिक मानव वध की कोटि में नहीं आता, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जो पाँच वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और अर्थदण्ड भी देना होगा; और यदि ऐसा कार्य किसी पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा चिकित्सा प्रक्रिया करते समय किया जाता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जो दो वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और अर्थदण्ड भी देना होगा।
    • उपेक्षा एवं तेज़ गति से वाहन चलाने से मौत:
      • यह खंड पहले IPC की धारा 279 के अधीन आता था, जहाँ सज़ा छह महीने तक की हो सकती है या अर्थदण्ड एक हज़ार रुपए तक हो सकता है या दोनों हो सकते हैं।
      • BNS के अधीन इस धारा के खंड (2) में कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति वाहन को तेज़ी एवं उपेक्षापूर्ण तरीके से चलाकर किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, जो आपराधिक मानव वध की श्रेणी में नहीं आता है तथा घटना के तुरंत बाद पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना दिये बिना भाग जाता है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और अर्थदण्ड भी देना होगा।
  • धारा 125: दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाला कार्य:
    • BNS की इस धारा में कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति इतनी जल्दबाज़ी या उपेक्षा से कोई कार्य करेगा जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ जाए, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे तीन महीने तक बढ़ाया जा सकता है या दो हज़ार पाँच सौ रुपए तक का अर्थदण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • धारा 114: चोट:
    • BNS के अनुसार, जहाँ चोट पहुँचाई जाती है, वहाँ किसी भी प्रकार के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि छह महीने तक हो सकती है, या अर्थदण्ड जो पाँच हज़ार रुपए तक हो सकता है, या दोनों।
    • यह धारा पहले IPC की धारा 337 के अधीन आती थी, जहाँ चोट पहुँचाने की सज़ा किसी भी प्रकार के कारावास से होती थी, जिसकी अवधि छह महीने तक हो सकती है, या अर्थदण्ड जो पाँच सौ रुपए तक हो सकता है, या दोनों।
  • धारा 116: गंभीर चोट:
    • BNS के अनुसार, जहाँ गंभीर चोट पहुँचाई जाती है, वहाँ तीन वर्ष तक के कारावास या दस हज़ार रुपए तक के अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
      • यह धारा पहले भारतीय दण्ड संहिता की धारा 338 के अंतर्गत आती थी, जिसमें गंभीर चोट के लिये दो वर्ष तक का कारावास या एक हज़ार रुपए तक का अर्थदण्ड या दोनों का प्रावधान था।