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आपराधिक कानून

CrPC के तहत परिसीमा की अवधि

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 30-Jan-2024

ए. कलियापेरुमल बनाम पुलिस अधीक्षक

"परिसीमा की अवधि की गणना के लिये प्रासंगिक तिथि वह तिथि है जिस दिन अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी, न कि वह तिथि जिस पर FIR दर्ज की गई थी।"

न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश

स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति शिवशंकर अमरन्नवर की पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत परिसीमा अवधि के लिये एक आवेदन पर सुनवाई की।

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने ए. कलियापेरुमल बनाम पुलिस अधीक्षक के मामले में यह टिप्पणी की।

ए. कलियापेरुमल बनाम पुलिस अधीक्षक मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • याचिकाओं में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया था, जिससे इन आपराधिक मूल याचिकाओं में उन्हें संबोधित करने के लिये एक सामूहिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिला।
    • मुद्दे के समाधान के बाद, न्यायालय द्वारा प्रत्येक मामले के विवरण की जाँच की गई, और प्रत्येक याचिका के लिये अलग-अलग निर्णय दिये गए।
  • वर्ष 2024 में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें पूर्व में इस न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, जाँच समाप्त करने और अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने में पुलिस की विफलता के कारण जाँच को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया था।
  • कार्यवाही के दौरान, निर्देश पर संबंधित अतिरिक्त लोक अभियोजक ने न्यायालय को सूचित किया कि अंतिम रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट, थिट्टाकुडी के समक्ष प्रस्तुत की गई थी।
  • हालाँकि, यह देखते हुए कि अपराध में दो वर्ष की कैद की सज़ा थी, अंतिम रिपोर्ट CrPC की धारा 468 के तहत निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर दाखिल की जानी चाहिये थी।
  • चूँकि, रिपोर्ट केवल चार वर्ष बाद दायर की गई थी, जो स्पष्ट रूप से परिसीमा अवधि को पार कर गई थी, निचलेन्यायालय ने मामले पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया।
  • इसलिये, याचिकाकर्त्ताओं ने उच्च न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि "परिसीमा की अवधि की गणना के लिये प्रासंगिक तिथि वह तिथि है जिस दिन अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी, न कि वह तिथि जिस पर प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी"।

इस मामले में न्यायालय ने CrPC के तहत परिसीमा की अवधि का वर्णन कैसे किया?

  • परिचय:
    • संहिता का अध्याय XXXVI जिसमें CrPC की धारा 467-473 शामिल है, 1973 की CrPC में पेश किया गया था।
    • रिले दौड़ की तरह, परिसीमा की अवधि में एक प्रारंभिक और एक समाप्ति बिंदु होता है।
  • CrPC की धारा 467:
    • इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये जब तक संदर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो, “परिसीमा-काल” से किसी अपराध का संज्ञान करने के लिये धारा 468 में विनिर्दिष्ट अवधि अभिप्रेत है।
  • CrPC की धारा 468:
    • CrPC की धारा 468 का खंड (2) परिसीमा की एक श्रेणीबद्ध अवधि निर्धारित करता है-
      • इस संहिता में अन्यत्र जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, कोई न्यायालय उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट प्रवर्ग के किसी अपराध का संज्ञान परिसीमा-काल की समाप्ति के पश्चात् नहीं करेगा।
      • परिसीमा-काल–
      • छह मास होगा, यदि अपराध केवल ज़ुर्माने से दंडनीय है;
      • एक वर्ष होगा, यदि अपराध एक वर्ष से अनधिक की अवधि के लिये कारावास से दंडनीय है;
      • तीन वर्ष होगा, यदि अपराध एक वर्ष से अधिक किंतु तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिये कारावास से दंडनीय है।
  • CrPC की धारा 469:
    • परिसीमा अवधि के प्रारंभिक बिंदु की गणना के लिये CrPC की धारा 469 महत्त्वपूर्ण है।
    • धारा 469 (a) सामान्य नियम बताती है कि (धारा 469 के खंड (2) के तहत पहले दिन को छोड़कर) परिसीमा अपराध की तिथि से लागू होगी ।
    • धारा 469 (b) और (c) सामान्य नियम के अपवाद हैं, जो उन मामलों में परिसीमा को स्थगित करने का प्रावधान करते हैं जहाँ (a) अपराध का कमीशन ज्ञात नहीं है या (b) अपराधी ज्ञात नहीं है।
    • ऐसे मामलों में परिसीमा निम्नानुसार प्रारंभ होगी:

मामले की प्रकृति

वह अवधि जिससे परिसीमा प्रारंभ होती है

जहाँ अपराध के घटित होने की जानकारी पीड़ित व्यक्ति या किसी पुलिस अधिकारी को नहीं होती है। [धारा 469(b)]

पहला दिन जिस दिन ऐसे व्यक्ति या पुलिस अधिकारी जो भी पहले हो, को अपराध का पता चलता है;

जहाँ यह ज्ञात नहीं होता है कि अपराध किसके द्वारा किया गया है। [धारा 469(c)]

पहला दिन जिस दिन अपराधी की पहचान ऐसे अपराध से पीड़ित व्यक्ति या पुलिस अधिकारी जो भी पहले हो, को पता चलती है।

  • CrPC की धारा 470 से 473:
    • धारा 470 और 471 कुछ मामलों में समय के प्रतिरोध का प्रावधान करती हैं।
    • CrPC की धारा 472 में यह सुविख्यात नियम शामिल है कि अपराध जारी रहने की स्थिति में, अपराध जारी रहने के समय के प्रत्येक क्षण पर परिसीमा की एक नई अवधि शुरू हो जाती है।
    • CrPC की धारा 473 के तहत न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान परिसीमा-काल के अवसान के पश्चात् कर सकता है यदि मामले के तथ्यों या परिस्थितियों से उसका समाधान हो जाता है कि विलम्ब का उचित रूप से स्पष्टीकरण कर दिया गया है या न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है।