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सिविल कानून
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34
« »04-Dec-2023
अनिल कुमार गुप्ता बनाम एमसीडी, एफएओ (ओ.एस.) (सीओएमएम) "न्यायालय A एंड C अधिनियम की धारा 34 के तहत पारित अंतिम आदेश को संशोधित करने की मांग करने वाले आवेदन को स्वीकार नहीं कर सकती है"। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और रविंदर डुडेजा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और रविंदर डुडेजा ने कहा कि एक बार मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत एक याचिका का निपटान अंतिम आदेश द्वारा कर दिया जाता है, तो न्यायालय ऐसे आदेश को संशोधित करने की मांग करने वाले आवेदन को स्वीकार नहीं कर सकती है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह फैसला अनिल कुमार गुप्ता बनाम एम.सी.डी., एफ.ए.ओ. (ओ.एस.) (सी.ओ.एम.एम.) मामले में दिया।
अनिल कुमार गुप्ता बनाम एम.सी.डी., एफ.ए.ओ.(ओ.एस.) (सी.ओ.एम.एम.) की पृष्ठभूमि क्या है?
- 12 दिसंबर, 2018 को विद्वत एकल न्यायाधीश ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम (A व C) की धारा 34 के आधार पर याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दी, जिससे मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा दी गई ब्याज दर को 18% से घटाकर 12% कर दिया गया।
- न्यायालय ने ब्याज के आवेदन को कार्रवाई के कारण उत्पन्न होने की तिथि से लेकर मध्यस्थता शुरू होने की तिथि तक सीमित कर दिया।
- अपीलकर्ता द्वारा आदेश के विरूद्ध कोई अपील प्रस्तुत नहीं की गई।
- प्रतिवादी ने पूर्व आदेश में संशोधन के लिये आवेदन दायर किया।
- न्यायालय ने संशोधन के लिये आवेदन स्वीकार कर लिया तथा पंचाट (Award) को संशोधित कर दिया और ब्याज के दावे को खारिज़ कर दिया।
- अपीलकर्ता ने A एंड C अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील दायर की।
- न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी के बाद के आवेदन, जिसे संशोधन याचिका के रूप में लेबल किया गया था, याचिका के अंतिम निर्णय पर पहुँचने के बाद अनुचित माना गया था।
- न्यायालय ने पारित आदेशों को रद्द करते हुए अपील स्वीकार कर ली। धारा 34 की याचिका बहाल कर दी गई और पुनर्विचार के लिये विद्वत एकल न्यायाधीश के बोर्ड में वापस रख दी गई।
न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?
- न्यायालय ने माना कि एक बार A एंड C अधिनियम की धारा 34 के तहत एक याचिका का अंतिम आदेश द्वारा निपटारा कर दिया गया है, तो न्यायालय ऐसे आदेश को संशोधित करने की मांग करने वाले आवेदन को स्वीकार नहीं कर सकती है।
- न्यायालय ने माना कि विवादित आदेश केवल इस आधार पर रद्द किये जाने योग्य है।
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 क्या है?
- 'माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम 1996' एक अधिनियम है जो भारत में घरेलू मध्यस्थता को नियंत्रित करता है। इसमें वर्ष 2015 और 2019 में संशोधन किया गया।
- धारा 34: माध्यस्थम् पंचाट अपास्त करने के लिये आवेदन-
- माध्यस्थम् पंचाट के विरुद्ध, न्यायालय का आश्रय केवल उपधारा (2) या उपधारा (3) के अनुसार, ऐसे पंचाट को अपास्त करने के लिये आवेदन करके ही लिया जा सकेगा।
- कोई माध्यस्थम् पंचाट न्यायालय द्वारा तभी अपास्त किया जा सकेगा, यदि -
(a) आवेदन करने वाला पक्षकार यह सबूत देता है कि-
(i) कोई पक्षकार किसी असमर्थता से ग्रस्त था, या
(ii) माध्यस्थम् करार उस विधि के, जिसके अधीन पक्षकारों ने उसे किया है या इस बारे में कोई संकेत न होने पर, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन विधिमान्य नहीं है; या
(iii) आवेदन करने वाले पक्षकार को, मध्यस्थ की नियुक्ति की या माध्यस्थम् कार्यवाहियों की उचित
सूचना नहीं दी गई थी, या वह अपना मामला प्रस्तुत करने में अन्यथा असमर्थ था; या
(iv) माध्यस्थम् पंचाट ऐसे विवाद से संबंधित है जो अनुध्यात नहीं किया गया है या माध्यस्थम् के लिये निवेदन करने के लिये रख गए निबंधनों के भीतर नहीं आता है या उसमें ऐसी बातों के बारे में विनिश्चय है जो माध्यस्थम् के लिये निवेदित विषयक्षेत्र से बाहर है :
परंतु यदि, माध्यस्थम् के लिये निवेदित किये गए विषयों पर विनिश्चयों को उन विषयों के बारे में किये
गए विनिश्चयों से पृथक् किया जा सकता है, जिन्हें निवेदित नहीं किया गया है, तो माध्यस्थम् पंचाट के केवल उस भाग को, जिसमें माध्यस्थम् के लिये निवेदित न किये गए विषयों पर विनिश्चय है, अपास्त किया जा सकेगा ; या
(v) माध्यस्थम् अधिकरण की संरचना या माध्यस्थम् प्रक्रिया, पक्षकारों के करार के अनुसार नहीं थी, जब
तक कि ऐसा करार इस भाग के उपबंधों के विरोध में न हो और जिससे पक्षकार नहीं हट सकते थे, या ऐसे करार के अभाव में, इस भाग के अनुसार नहीं थी; या
(v) मध्यस्थम् अधिकरण की संरचना या मध्यस्थम् प्रक्रिया, पक्षकारों के नियम के अनुसार नहीं था, जब तक कि ऐसा अधिकार इस भाग के उपबंधों के विरोध में न हो और पक्षकार नहीं हो सकते थे, या ऐसे नियम के अभाव में, इस भाग के अनुसार नहीं था; या
(b) न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि-
(i) विवाद का विषय-वस्तु, तत्सम प्रवृत्त विधि के अधीन मध्यस्थम् द्वारा निपटाए जाने योग्य नहीं हैं; या
(ii) मध्यस्थम् पंचाट भारत की लोक नीति के विरुद्ध है।
स्पष्टीकरण- उपखंड (ii) की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी शंका को दूर करने के लिये यह घोषित किया जाता है कि कोई पंचाट भारत की लोक नीति के विरुद्ध है यदि पंचाट का दिया जाना कपट या भ्रष्ट आचरण द्वारा उत्प्रेरित या प्रभावित किया गया था या धारा 75 अथवा धारा 81 के अतिक्रमण में था।
(3) अपास्त करने के लिये कोई आवेदन, उस तिथि से, जिसको आवेदन करने वाले पक्षकार ने माध्यस्थम् पंचाट प्राप्त किया था, या यदि अनुरोध धारा 33 के अधीन किया गया है तो उस तिथि से, जिसको माध्यस्थम् अधिकरण द्वरा अनुरोध का निपटारा किया गया था, तीन मास के अवसान के पश्चात् नहीं किया जाएगा:
परंतु यह कि जहाँ न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि आवेदक उक्त तीन मास की अवधि के भीतर आवेदन करने से पर्याप्त कारणों से निवारित किया गया था तो वह तीन दिन की अतिरिक्त अवधि में आवेदन ग्रहण कर सकेगा किंतु इसके पश्चात् नहीं।
(4) उपधारा (1) के अधीन आवेदन प्राप्त होने पर, जहाँ यह समुचित हो और इसके लिये किसी पक्षकार द्वारा अनुरोध किया जाए, वहाँ न्यायालय, माध्यस्थम् अधिकरण को इस बात का अवसर देने के लिये कि वह माध्यस्थम् कार्यवाहियों को चालू रख सके या ऐसी कोई अन्य कार्रवाई कर सके जिससे मध्यस्थम् अधिकरण की राय में मध्यस्थम् पंचाट के अपास्त करने के लिये आधार समाप्त हो जाए, कार्यवाहियों को उतनी अवधि के लिये स्थगित कर सकेगा जो उसके द्वारा अवधारित की जाए।
- धारा 37. अपीलनीय आदेश
(1) निम्नलिखित आदेशों से (न कि अन्यों से) कोई अपील उस न्यायालय में होगी जो आदेश पारित करने वाले न्यायालय की मूल डिक्रियों से अपील सुनने के लिये विधि द्वारा प्राधिकृत हो, अर्थात् :-
(A) धारा 9 के अधीन किसी उपाय को मंज़ूर करना या मंज़ूर करने से इनकार करना;
(B) धारा 34 के अधीन माध्यस्थम् पंचाट अपास्त करना या अपास्त करने से इनकार करना।
(2) माध्यस्थम् अधिकरण के, -
(A) धारा 16 की उपधारा (2) या उपधारा (3) में निर्दिष्ट अभिवचन स्वीकार करने के ; या
(B) धारा 17 के अधीन किसी अंतरिम उपाय को मंज़ूर करने या मंज़ूर करने से इनकार करने के, किसी आदेश से भी अपील न्यायालय में होगी।
(3) इस धारा के अधीन अपील में पारित किसी आदेश से द्वितीय अपील नहीं होगी, किंतु इस धारा की कोई भी बात, उच्चतम न्यायालय में अपील करने के किसी अधिकार पर प्रभाव न डालेगी या उसे छीन न लेगी ।
मामले में उद्धृत ऐतिहासिक निर्णय क्या है?
- NHAI बनाम एम हकीम एवं अन्य (2021):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि A एंड C अधिनियम की धारा 34 के तहत न्यायालय केवल माध्यस्थम् पंचाट अपास्त कर सकती है व उसे संशोधित नहीं कर सकती है।
- मैसर्स लार्सन एयर कंडीशनिंग बनाम भारत संघ (2023):
- उच्चतम न्यायालय माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 और 37 के तहत न्यायालय की शक्तियों से संबंधित एक रेखा खींचता है, जिसमें न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेशों के विरुद्ध न्यायालय किसी पंचाट और अपील को चुनौती देने पर विचार कर रहे हैं।