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पर्यावरणीय विधि
बिहार राज्य और अन्य बनाम पवन कुमार और अन्य (2021)
«18-Dec-2025
परिचय
यह ऐतिहासिक निर्णय बिहार राज्य में रेत खनन के माध्यम से आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच महत्त्वपूर्ण संतुलन को संबोधित करता है, जहाँ राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSRs) की पूर्व मंजूरी के बिना खनन कार्यों पर रोक लगा दी थी।
- यह निर्णय माननीय न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, माननीय न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और माननीय न्यायमूर्ति बीआर. गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने दिया।
- इस मामले में रेत खनन के लिये नियामक ढाँचे की परीक्षा की गई, जिसमें सतत विकास सिद्धांतों पर बल दिया गया, साथ ही पूर्ण खनन प्रतिबंधों के आर्थिक प्रभावों और परिणामस्वरूप अवैध खनन गतिविधियों में वृद्धि को भी स्वीकार किया गया।
तथ्य
- यह कार्यवाही राष्ट्रीय हरित अधिकरण के उस निर्णय से उत्पन्न हुई जिसमें कहा गया था कि राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (SEAC) और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) द्वारा जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) के पूर्व अनुमोदन के बिना रेत खनन आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
- अधिकरण ने सतेंद्र पांडे बनाम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और अन्य, {O.A. No. 186 of 2016 (M.A. No. 350/2016)} में अपने पहले के निर्णय पर विश्वास किया, जिसमें कहा गया था कि विधिवत तैयार जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) के बिना खनन निविदाएँ आमंत्रित नहीं की जा सकतीं।
- बिहार राज्य ने इस दृष्टिकोण को त्रुटिपूर्ण बताते हुए तर्क दिया कि सफल बोलीदाताओं को खनन गतिविधि शुरू होने से पहले खनन योजना तैयार करनी होगी और पर्यावरण अनुमोदन के लिये राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (SEAC) और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) का अनुमोदन प्राप्त करन होगा।
- राज्य ने दावा किया कि उसने विहित प्रक्रियाओं का पालन किया था और व्यापक सहायक सामग्री प्रस्तुत की थी, जिसे अधिकरण ने अपने निर्णय में कथित तौर पर नजरअंदाज कर दिया था।
- राज्य ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिकरण के आदेश ने पुराने पट्टेदारों को केवल न्यूनतम फीस का संदाय करके खनन जारी रखने की अनुमति दी, जिससे सार्वजनिक खजाने को काफी नुकसान हुआ और एक अनुचित स्थिति उत्पन्न हुई।
- एक वैकल्पिक समाधान के रूप में, राज्य ने बिहार राज्य खनन निगम को उचित माध्यमों से जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) को अंतिम रूप दिये जाने और अनुमोदित किये जाने तक खनन कार्यों को करने की अनुमति देने का अनुरोध किया।
सम्मिलित विवाद्यक
- क्या राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (SEAC) और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) द्वारा जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) की पूर्व स्वीकृति के बिना रेत खनन कार्य आगे बढ़ाया जा सकता है?
- पर्यावरण क्षरण और अवैध खनन क्रियाकलापों को रोकने के साथ-साथ सतत रेत खनन सुनिश्चित करने के लिये कौन सी प्रक्रियाएँ और सुरक्षा उपाय लागू किये जाने चाहिये?
- अवैध खनन में संभावित वृद्धि और सरकारी खजाने को होने वाले आर्थिक नुकसान को देखते हुए, क्या विधिक खनन कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना उचित था?
- उचित नियामक ढाँचा स्थापित होने तक आर्थिक आवश्यकताओं और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये कौन-कौन से अंतरिम उपाय किये जा सकते हैं?
न्यायालय की टिप्पणियां
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि पर्यावरण सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने वाले सतत विकास के संतुलित दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिये, न कि ऐसे पूर्ण प्रतिबंध लगाने को, जिनके अनपेक्षित नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
- न्यायालय ने पाया कि जब विधिक खनन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो इससे अवैध खनन में तेजी से वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप रेत माफियाओं के बीच झड़पें होती हैं, अपराधीकरण होता है और कभी-कभी मानव जीवन की हानि भी होती है।
- न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि सभी खनन कार्यों को रोकने से सरकारी खजाने को काफी आर्थिक नुकसान होगा और साथ ही यह उन अवैध खनन क्रियाकलापों को भी बढ़ावा दे सकता है जो बिना किसी पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय के संचालित होती हैं।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि सिंचाई, प्रदूषण नियंत्रण, वन और भूविज्ञान/खनन सहित संबंधित विभागों के अधिकारियों से युक्त उप-विभागीय समितियों के माध्यम से खनन जिलों के लिये नई जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) तैयार की जानी चाहिये।
- न्यायालय ने आदेश दिया कि इन रिपोर्टों को सतत रेत खनन प्रबंधन दिशानिर्देश (SSMMG- 2016) और रेत खनन के लिये प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देश (2020) का कठोरता से पालन करना होगा।
- न्यायालय ने जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) के लिये एक बहुस्तरीय सत्यापन प्रक्रिया स्थापित की, जिसके अधीन पहले जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सत्यापन (भौतिक और भौगोलिक विशेषताओं को सत्यापित करने के लिये), फिर वैज्ञानिक मूल्यांकन के लिये राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (SEAC) द्वारा और अंत में औपचारिक अनुमोदन के लिये राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) द्वारा सत्यापन की आवश्यकता होती है।
- न्यायालय ने अस्थायी खनन कार्यों को जारी रखने की आवश्यकता को स्वीकार किया और बिहार राज्य खनन निगम को ठेकेदारों के साथ खनन क्रियाकलापों को करने की अनुमति दी, साथ ही यह सुनिश्चित किया कि जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) को अंतिम रूप दिये जाने और अनुमोदित होने तक पर्यावरण सुरक्षा उपाय किये जाएं।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि खनन उन क्षेत्रों से बचना चाहिये जो जंगलों, संरक्षित क्षेत्रों, बस्तियों और पुलों जैसे बुनियादी ढाँचे को प्रभावित करते हैं, और पारदर्शिता और हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) को अंतिम रूप देने से पहले सार्वजनिक परामर्श आयोजित करने का आदेश दिया।
- न्यायालय का दृष्टिकोण इस सिद्धांत को दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास परस्पर विरोधी नहीं हैं, अपितु उचित विनियमन, निगरानी और प्रवर्तन तंत्र के माध्यम से इनमें सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- यह ऐतिहासिक निर्णय टिकाऊ रेत खनन के लिये एक व्यापक ढाँचा स्थापित करता है जो आर्थिक विकास को पर्यावरण संरक्षण और नियामक अनुपालन के साथ संतुलित करता है।
- उच्चतम न्यायालय के निदेशों से यह सुनिश्चित होता है कि उचित पर्यवेक्षण के अधीन खनन कार्य जारी रह सकते हैं, जबकि जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (DSR) अनुमोदन प्रक्रिया के माध्यम से कठोर पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को संस्थागत रूप दिया जा रहा है।
- यह निर्णय खनन विनियमन की व्यावहारिक वास्तविकताओं को स्वीकार करता है, और मानता है कि पूर्ण प्रतिबंध विरोधाभासी रूप से अनियमित अवैध खनन क्रियाकलापों के माध्यम से बदतर पर्यावरणीय परिणामों को जन्म दे सकते हैं।
- इस निर्णय में खनन अनुमोदन प्रक्रिया में पारदर्शिता, बहुस्तरीय सत्यापन और हितधारकों की भागीदारी को अनिवार्य किया गया है, जिससे वैध आर्थिक क्रियाकलापों का समर्थन करते हुए पर्यावरणीय शासन को मजबूत किया जा सके।