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बौद्धिक संपदा अधिकार
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार चिह्न संरक्षण के अधीन मैड्रिड प्रोटोकॉल
«11-Nov-2025
परिचय
व्यापार चिह्न अधिनियम का अध्याय 4क, मैड्रिड प्रोटोकॉल के अधीन अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरण के माध्यम से व्यापार चिह्न की सुरक्षा के लिये विशेष उपबंध प्रस्तुत करता है। यह अध्याय, धारा 36क से 36छ तक, भारतीय कारबारों को एक ही आवेदन के माध्यम से कई देशों में व्यापार चिह्न सुरक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाता है, साथ ही विदेशी संस्थाओं को भारत में अपने चिह्नों की सुरक्षा करने की भी अनुमति देता है।
मैड्रिड प्रोटोकॉल क्या है? (धारा 36ख)
- धारा 36ख मैड्रिड प्रोटोकॉल को 27 जून, 1989 को मैड्रिड में अपनाई गई एक अंतरराष्ट्रीय संधि के रूप में परिभाषित करती है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार चिह्न रजिस्ट्रीकरण को सुगम बनाती है। यह प्रोटोकॉल 1891 के मैड्रिड करार के साथ मिलकर काम करता है और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो द्वारा प्रबंधित एक एकीकृत प्रणाली का निर्माण करता है।
- प्रमुख शब्दों में "संविदाकारी पक्ष" (प्रोटोकॉल में सम्मिलित होने वाले देश या संगठन), "अंतर्राष्ट्रीय आवेदन" (अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरण के लिये अनुरोध), और "अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरण" (अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो में दर्ज रजिस्ट्रीकरण) सम्मिलित हैं। इन परिभाषाओं को समझना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये संपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरण प्रणाली की नींव हैं।
भारत से उद्भूत अंतरराष्ट्रीय आवेदन (धारा 36घ)
- धारा 36घ उन भारतीय आवेदकों को, जिन्होंने धारा 18 के अधीन आवेदन किया है या धारा 23 के अधीन रजिस्ट्रीकृत व्यापार चिह्न रखते हैं, अंतर्राष्ट्रीय आवेदन दायर करने की अनुमति देती है। यह "मूल आवेदन" या "मूल रजिस्ट्रीकरण" अन्य संविदाकारी पक्षकारों से सुरक्षा प्राप्त करने के लिये आधार का काम करता है।
- आवेदक को विहित प्रपत्र में यह बताना होगा कि वे किन देशों में सुरक्षा चाहते हैं। इसके बाद, भारतीय रजिस्ट्रार यह प्रमाणित करता है कि अंतर्राष्ट्रीय आवेदन, घरेलू आवेदन या रजिस्ट्रीकरण विवरण, जिसमें दिनांक और संख्याएँ सम्मिलित हैं, से मेल खाता है, और फिर उसे अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो को भेजता है।
- धारा 36घ(5) के अंतर्गत "पाँच-वर्षीय निर्भरता नियम" एक महत्त्वपूर्ण उपबंध है। यदि अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरण के पाँच वर्षों के भीतर भारतीय मूल आवेदन या रजिस्ट्रीकरण वापस ले लिया जाता है, रद्द कर दिया जाता है, समाप्त हो जाता है, या अस्वीकार कर दिया जाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावी नहीं रहती। यह प्रारंभिक पाँच-वर्षीय अवधि के दौरान घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरणों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बनाता है।
भारत को अभिहित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय आवेदन (धारा 36ङ)
- जब विदेशी संस्थाएँ अपने अंतर्राष्ट्रीय आवेदनों में भारत का उल्लेख करती हैं, तो धारा 36 ङ यह निर्धारित करती है कि इन पर कैसे कार्रवाई की जाएगी। रजिस्ट्रार ऐसे अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरणों का अभिलेख रखता है और घरेलू आवेदनों की तरह ही उनकी जांच करता है।
- धारा 36ङ(2) के अधीन, रजिस्ट्रार के पास भारतीय विधि के अधीन आधार होने पर नोटिस मिलने से लेकर अठारह मास के भीतर सुरक्षा देने से इंकार करने का अधिकार है। इंकार करने से पहले आवेदक को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिये। यदि कोई आपत्ति नहीं मिलती है, तो धारा 36ङ(3) के अनुसार रजिस्ट्रीकरण का विज्ञापन किया जाता है ।
- महत्त्वपूर्ण बात यह है कि धारा 36ङ(4) धारा 9 से 21 (रजिस्ट्रीकरण की शर्तें और प्रक्रियाएँ) के साथ-साथ धारा 63 और 74 को अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरणों पर भी लागू करती है। इसका अर्थ है कि अंतर्राष्ट्रीय आवेदनों को भी विशिष्टता, भ्रामकता और पूर्व चिह्नों के साथ टकराव के संबंध में घरेलू आवेदनों की तरह ही जांच का सामना करना पड़ता है।
- धारा 36ङ(5) में उपबंध है कि यदि कोई विरोध नहीं होता है और अठारह मास की अवधि रजिस्ट्रार द्वारा इंकार की सूचना दिये बिना समाप्त हो जाती है, तो संरक्षण स्वतः ही भारत में लागू माना जाएगा। इससे स्पष्ट समय-सीमा के साथ एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया बनती है।
अधिकार और प्रभाव (धारा 36च)
- धारा 36च(1) यह स्थापित करती है कि भारत में अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरण की तिथि से, व्यापार चिह्न को वही सुरक्षा प्राप्त होगी जो घरेलू स्तर पर रजिस्ट्रीकृत होने पर प्राप्त होती है। "समान व्यवहार" का यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरणकर्त्ताओं को घरेलू आवेदकों की तुलना में कोई नुकसान न हो।
- यद्यपि, धारा 36च(2) स्पष्ट करती है कि आवेदक द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का वर्गीकरण रजिस्ट्रार को बाध्य नहीं करता है, जिसके पास भारतीय वर्गीकरण प्रणालियों के अनुसार संरक्षण का दायरा निर्धारित करने का अधिकार है।
अवधि और नवीनीकरण (धारा 36छ)
- धारा 36छ के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रीकरण दस वर्षों तक चलते हैं और इन्हें लगातार दस वर्षों की अवधि के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है। निर्धारित अधिभार के संदाय पर नवीनीकरण के लिये छह मास की छूट अवधि उपलब्ध है, जिससे उन व्यापार चिह्न धारकों को लचीलापन मिलता है जो निश्चित नवीनीकरण तिथि से चूक सकते हैं।
केंद्रीय निर्भरता नियम (धारा 36ङ(8))
- धारा 36ङ(8) आने वाले आवेदनों के लिये पाँच-वर्षीय निर्भरता नियम को प्रतिबिंबित करती है। यदि विदेशी मूल आवेदन या रजिस्ट्रीकरण पाँच वर्षों के भीतर विफल हो जाता है, तो भारत में सुरक्षा भी समाप्त हो जाती है। यह पारस्परिक व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में एकरूपता बनाए रखती है।
प्रशासनिक संचालन (धारा 36ग)
- धारा 36ग में यह निर्दिष्ट किया गया है कि अंतर्राष्ट्रीय आवेदनों को व्यापार चिह्न रजिस्ट्री के मुख्यालय या निर्दिष्ट शाखा कार्यालयों द्वारा संभाला जाएगा, जिससे इन आवेदनों का विशेष प्रसंस्करण सुनिश्चित होगा।
निष्कर्ष
मैड्रिड प्रोटोकॉल के प्रावधान भारतीय कारबारों के लिये वैश्विक स्तर पर विस्तार और विदेशी संस्थाओं के लिये भारतीय बाज़ार में प्रवेश हेतु एक कुशल प्रवेश द्वार प्रदान करते हैं। धारा 36क से 36छ के माध्यम से स्पष्ट प्रक्रियाएँ, समय-सीमाएँ और मानक स्थापित करके, यह अध्याय कठोर परीक्षा मानकों को बनाए रखते हुए भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार चिह्न संरक्षण प्रणाली में एकीकृत करता है। यह ढाँचा लागत कम करके, प्रक्रियाओं को सरल बनाकर और विभिन्न देशों में व्यापार चिह्न पोर्टफोलियो का केंद्रीकृत प्रबंधन प्रदान करके अंतर्राष्ट्रीय विस्तार चाहने वाले कारबारों को लाभांवित करता है।