होम / करेंट अफेयर्स
सांविधानिक विधि
ज्ञात भाषा में आधार बताए बिना की गई गिरफ्तारी अवैध है
«07-Nov-2025
|
मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य " केवल अज्ञात भाषा में गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देना अनुच्छेद 21 और 22 का उल्लंघन है, क्योंकि गिरफ्तार व्यक्ति को अपने सांविधानिक अधिकारों का प्रभावी ढंग से प्रयोग करने के लिये उन्हें उस भाषा में प्राप्त करना चाहिये जिसे वह समझता हो।" मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने निर्णय दिया कि गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में गिरफ्तारी के लिखित आधार प्रदान करने में असफलता अनुच्छेद 21 और 22 का उल्लंघन करती है, जिससे गिरफ्तारी और रिमांड अवैध हो जाता है, और इस आदेश को भारतीय दण्ड संहिता/भारतीय न्याय संहिता के अधीन अधीन सभी अपराधों पर लागू किया जाता है।
- उच्चतम न्यायालय ने मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- 7 जुलाई, 2024 को, तेज़ गति से चल रही एक सफ़ेद BMW कार ने परिवादकर्त्ता के स्कूटर को पीछे से ज़ोरदार टक्कर मार दी। टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि परिवादकर्त्ता और उसकी पत्नी दोनों कार के बोनट पर जा गिरे। परिवादकर्त्ता जहाँ एक तरफ़ गिर गया, वहीं उसकी पत्नी गाड़ी के अगले बाएँ पहिये और बम्पर के बीच फँस गई।
- इस गंभीर स्थिति के होते हुए भी, ड्राइवर, जिसका नाम मिहिर राजेश शाह (अपीलकर्त्ता) बताया जा रहा है, अपनी गाड़ी उतावलेपन से चलाता रहा और पीड़ित को घसीटता रहा। इसके बाद, ड्राइवर पीड़ितों की कोई सहायता किये बिना या अधिकारियों को घटना की सूचना दिये बिना ही घटनास्थल से फरार हो गया। पीड़ित की टक्कर में हुई गंभीर क्षति के कारण मृत्यु हो गई, जैसा कि चिकित्सकीय रूप से पुष्टि हो चुकी है, जबकि परिवादकर्त्ता को मामूली क्षति हुई।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करना
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS, 2023) और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के सुसंगत उपबंधों के अधीन वर्ली पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट ()FIR संख्या 378/2024 दर्ज की गई।
- प्रारंभिक अन्वेषण में CCTV फुटेज के ज़रिए अपराधी वाहन की पहचान शामिल थी। क्षतिग्रस्त BMW कार कलानगर जंक्शन फ्लाईओवर के पास राजर्षि राजेंद्र सिंह बिंदावत और राजेश शाह, जो मिहिर राजेश शाह के पिता हैं, के साथ मिली।
- सह-अभियुक्त राजर्षि राजेंद्र सिंह बिंदावत को उसी दिन अभिरक्षा में ले लिया गया था। मिहिर राजेश शाह को 9 जुलाई, 2024 को गिरफ्तार किया गया।
- अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य
- एकत्रित साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो गया कि अपीलकर्त्ता उस समय चालक था, जिसमें सम्मिलित हैं:
- CCTV फुटेज में उसकी मौजूदगी दर्ज है।
- घटना से कुछ समय पहले शराब पीने का साक्ष्य।
- उसकी उपस्थिति को बदलने का प्रयास।
- अपने नाम पर रजिस्ट्रीकृत फास्टैग का उपयोग।
- अन्य आपत्तिजनक विवरण।
- अपीलकर्त्ता को प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया। प्रारंभिक पुलिस अभिरक्षा प्रदान की गई, जो बाद में न्यायिक अभिरक्षा में बढ़ा दी गई।
- अपीलकर्त्ता ने इस आधार पर गिरफ्तारी का विरोध किया कि गिरफ्तारी के आधार उसे लिखित रूप में नहीं दिये गए थे, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS, 2023) की धारा 47 द्वारा अनिवार्य है, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC,1973) की धारा 50 के समतुल्य है।
- गिरफ्तारी की वैधता के विरुद्ध अपीलकर्त्ता की चुनौती पर बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आपराधिक रिट याचिका संख्या 3533/2024 में विचार किया। 25 नवंबर, 2024 के अपने निर्णय के माध्यम से, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस प्रक्रियात्मक चूक को स्वीकार किया। यद्यपि, अपीलकर्त्ता द्वारा अपराध की गंभीरता के प्रति सचेत जागरूकता, पर्याप्त साक्ष्यों द्वारा समर्थित और अपीलकर्त्ता द्वारा गिरफ्तारी से बचने के कारण, गिरफ्तारी की वैधता को बरकरार रखा, जिससे लिखित आधारों के अभाव के होते हुए भी अभिरक्षा को उचित ठहराया जा सका।
- उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 47 के अधीन गिरफ्तारी के आधार के बारे में उसे लिखित रूप में सूचित नहीं किया गया, जिससे उसके संवैसांविधानिकधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) में यह अनिवार्य किया गया है कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी यथाशीघ्र दी जाए। यह केवल एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं है, अपितु मौलिक अधिकारों के अंतर्गत एक अनिवार्य, बाध्यकारी सांविधानिक सुरक्षा है।
- न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तारी के आधार बताना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि गिरफ्तार व्यक्ति की मानसिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वह उन बातों को याद रख सके। सांविधानिक आदेश को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये आधार लिखित रूप में दिये जाने चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा न समझी जाने वाली भाषा में आधार प्रस्तुत करने मात्र से सांविधानिक दायित्त्व पूरा नहीं होता। आधार ऐसी भाषा में प्रस्तुत किये जाने चाहिये जो गिरफ्तार व्यक्ति समझ सके, जिससे वे आरोपों को समझ सकें और अपने अधिकारों का प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकें।
- न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी बिना किसी अपवाद के प्रत्येक मामले में गिरफ्तार व्यक्ति को दी जानी चाहिये, और संसूचना का तरीका लिखित रूप में उनकी समझ में आने वाली भाषा में होना चाहिये। यह सभी विधियों के अंतर्गत आने वाले सभी अपराधों पर लागू होता है, जिसमें भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023) के अधीन आने वाले अपराध भी सम्मिलित हैं।
- न्यायालय ने उन असाधारण परिस्थितियों को मान्यता दी जहाँ तत्काल लिखित संसूचना अव्यावहारिक हो सकता है (जैसे कि खुलेआम अपराध)। ऐसे मामलों में, गिरफ्तारी के समय मौखिक संसूचना अनुमेय है, किंतु लिखित आधार उचित समय के भीतर और किसी भी स्थिति में रिमांड कार्यवाही के लिये मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी से दो घंटे पहले प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में गिरफ्तारी के लिखित आधार उपलब्ध न कराने पर गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड अवैध हो जाता है, जिससे गिरफ्तार व्यक्ति को रिहा करने का अधिकार मिल जाता है।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि गिरफ्तारी के आधार बताने का लाभकारी उद्देश्य व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार को समझने, विधिक सलाह लेने, गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती देने और ज़मानत पाने में सक्षम बनाना है। दैहिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिये विधिक सहायता तक शीघ्र पहुँच आवश्यक है।
- न्यायालय ने कहा कि यह प्रक्रिया अब से गिरफ्तारियों को नियंत्रित करेगी, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 के अधीन सांविधानिक अधिकारों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के अधीन गिरफ्तारी और दैहिक स्वतंत्रता से संबंधित सांविधानिक उपबंध क्या हैं?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में उपबंध है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। 'दैहिक स्वतंत्रता' शब्द में राज्य अभिकरणों द्वारा शक्ति के दुरुपयोग और राज्य के कार्यों की जांच से प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय सम्मिलित हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) में यह उपबंध है कि किसी व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है, ऐसी गिरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा, या अपनी रुची के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(2) में यह उपबंध है कि प्रत्येक व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिये आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिये अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(5) में यह उपबंध है कि निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन किये गए आदेश के अनुसरण मे जब किसी व्यक्ति को निरुद्ध किया जाता है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी यथाशक्य शीघ्र उस व्यक्ति के यह संसूचित करेगा कि वह आदेश किन आधारों पर किया गया है और उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिये उसे शीघ्रातिशीघ्र अवसर देगा।