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आपराधिक कानून

BNS के तहत चिकित्सीय उपेक्षा

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 17-Oct-2024

परिचय 

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के कार्यान्वयन से चिकित्सीय उपेक्षा में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
  • चिकित्सीय उपेक्षा तब होती है जब चिकित्सक रोगी को आवश्यक देखभाल देने में असफल रहता है, जिसके कारण रोगी को हानि होती है।

चिकित्सीय उपेक्षा क्या है?

  • उपेक्षा का तात्पर्य तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने दायित्वों का पालन नहीं करता और दूसरे व्यक्ति के प्रति उचित देखभाल में कमी करता है, जिसके लिये वह ज़िम्मेदार होता है। इस स्थिति में, उसे लापरवाह माना जाता है।
  • चिकित्सीय उपेक्षा तब उत्पन्न होती है जब कोई चिकित्सक अपने कर्त्तव्यों को उचित सावधानी और ध्यान के साथ निभाने में असफल रहता है, जिसके परिणामस्वरूप रोगी को हानि पहुँचती है।
  • रोगी को वित्तीय नुकसान, मानसिक तनाव, जीवन की हानि और आघात जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

चिकित्सीय उपेक्षा के अनिवार्य तत्त्व क्या हैं?

  • पेशेवर व्यक्ति का उचित देखभाल करने का विधिक कर्त्तव्य होना चाहिये।
  • कानूनी दायित्व का उल्लंघन होना चाहिये।
  • रोगी को कोई चोट या हानि अवश्य हुई होगी।
  • रोगी को लगी चोट का संबंध कर्तव्य के उल्लंघन से प्रत्यक्ष होना चाहिये।

BNS के तहत चिकित्सीय उपेक्षा से संबंधित नई विधि क्या है?

  • स्वास्थ्य देखभाल के मानकों में सुधार लाने हेतु, BNS के अंतर्गत चिकित्सीय उपेक्षा के लिये सख्त दंड का प्रावधान किया गया है।
  • इससे पूर्व, चिकित्सीय उपेक्षा की परिभाषा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304A के तहत आती थी।
  • इसे BNS की धारा 106 के अंतर्गत शामिल किया गया है।
  • BNS के नवीनतम प्रावधानों के अंतर्गत चिकित्सीय उपेक्षा के लिये सज़ा की अवधि को बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया गया है।
  • पंजीकृत चिकित्सा पेशेवर द्वारा किये गए गलत कार्यों के लिये एक विशेष दंड का प्रावधान जोड़ा गया है, जिसमें यह दंड सामान्य दंड की तुलना में अपेक्षाकृत कम है अर्थात् अधिकतम 2 वर्ष की सज़ा।
  • मूलतः, BNS के तहत चिकित्सीय उपेक्षा के कृत्य के लिये अनिवार्य रूप से कारावास की सज़ा दी जानी चाहिये।

BNS की धारा 106 (1) क्या है?

  • BNS की धारा 106 में किसी व्यक्ति की मृत्यु के मामले में उपेक्षा  से संबंधित नियमों का उल्लेख किया गया है।
  • धारा 106 के खंड (1) के अनुसार चिकित्सीय उपेक्षा से संबंधित प्रावधान इस प्रकार है:
    • जो कोई किसी व्यक्ति की मृत्यु को किसी ऐसे जल्दबाज़ी या उपेक्षा के कार्य द्वारा अंजाम देता है, जो गैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आता, उसे एक निश्चित अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी, जो कि अधिकतम पाँच वर्ष तक हो सकती है और उसे ज़ुर्माने से भी दंडित किया जाएगा।
    • यदि कोई पंजीकृत चिकित्सा पेशेवर चिकित्सा प्रक्रिया के दौरान ऐसा कार्य करता है, तो उसे दो वर्ष तक की कारावास की सज़ा और वित्तीय दंड का सामना करना पड़ेगा।
    • इस उपधारा के उद्देश्यों के लिये प्रावधान को एक स्पष्टीकरण के माध्यम द्वारा स्पष्ट किया गया है, जिसमें "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" का तात्पर्य एक ऐसे चिकित्सा व्यवसायी से है, जिसके पास राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के अंतर्गत मान्यता प्राप्त कोई चिकित्सा योग्यता है और जिसका नाम उस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर या राज्य चिकित्सा रजिस्टर में अंकित है।

BNS के तहत चिकित्सीय उपेक्षा लागू करने का क्या प्रभाव होगा?

  • सख्त दंड लागू करने का मुख्य उद्देश्य उपेक्षा के कृत्यों को निम्न करना है।
  • एक चिकित्सक का कर्त्तव्य रोगी की देखभाल करना और उसे अधिकतम सुरक्षा प्रदान करना है।
  • रोगी को अक्सर विधिक मामलों को साबित करने का बोझ उठाना पड़ता है और विधि के संबंध में जागरूकता की कमी के कारण पीड़ित रोगी और चिकित्सीय उपेक्षा से पीड़ित लोगों को उपलब्ध विधि अधिकारों के प्रवर्तन में बाधा उत्पन्न होती है।
  • कभी-कभी विधि कार्यवाही के भय से डॉक्टर निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं और कभी-कभी रोगी को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

चिकित्सीय उपेक्षा से संबंधित मामले क्या हैं?

  • जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (2006):
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उपेक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया है: उपेक्षा की परिभाषा इस प्रकार है जब प्रतिवादी किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति सामान्य देखभाल या कौशल का उपयोग करने में विफल रहता है जिसके प्रति उसका कर्त्तव्य है, जिसके परिणामस्वरूप वादी को अपने शरीर या संपत्ति को नुकसान उठाना पड़ता है।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि चिकित्सीय उपेक्षा और आपराधिक उपेक्षा के बीच अंतर है।
  • बोलम बनाम फ्रिएर्न अस्पताल प्रबंधन समिति (2005):
    • इस मामले में अदालत ने माना कि उपेक्षा तब होती है जब चिकित्सक द्वारा अपेक्षित मानकों का पालन नहीं किया जाता है, तथापि यदि उचित सावधानी बरती गई हो तो उपेक्षा नहीं मानी जा सकती।
  • कुसुम शर्मा बनाम बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च (2010):
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उपेक्षा करने का अर्थ है ऐसा कुछ करना या न करना जो एक विवेकशील व्यक्ति करेगा या नहीं करेगा।

 निष्कर्ष 

BNS ने स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों और जवाबदेही में सुधार के लिये चिकित्सीय उपेक्षा की अवधारणा शुरू की है। एक निष्पक्ष एवं प्रभावी कानूनी प्रणाली बनाने के लिये रोगी तथा डॉक्टरों दोनों की चिंताओं को संबोधित किया जाना चाहिये।