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आपराधिक कानून
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण
« »17-Jun-2024
शिल्पा बनाम के. के. राजीवन “घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण का आदेश देते समय, मजिस्ट्रेट को यह स्पष्ट करना होगा कि यह दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) या हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) के अधीन दिया गया है।” न्यायमूर्ति पी. जी. अजितकुमार |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने शिल्पा बनाम के के राजीवन के मामले में इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़ब मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (DV अधिनियम) की धारा 20(1)(d) के अधीन भरण-पोषण के आदेश ज़ारी करते हैं, तो उन्हें स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करना चाहिये कि भरण-पोषण, दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC) की धारा 125 या हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 20 (3) के अधीन दिया गया है।
शिल्पा बनाम के. के. राजीवन की पृष्ठभूमि क्या थी?
- पिता (प्रतिवादी) और पुत्री (याचिकाकर्त्ता) दोनों हिंदू हैं।
- 14 वर्ष की आयु में बेटी ने एर्नाकुलम में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (आर्थिक अपराध) न्यायालय में भरण-पोषण के लिये याचिका दायर की।
- D.V. अधिनियम की धारा 20 (1) (d) के अधीन मजिस्ट्रेट के पास किसी पिता द्वारा अपनी बेटी को 2000 रुपए मासिक भरण-पोषण देने का आदेश देने का अधिकार है।
- जब बेटी वयस्क हो गई, तो प्रतिवादी ने उसकी वयस्कता तथा विदेश में रोज़गार से होने वाली आय का हवाला देते हुए, भरण-पोषण भुगतान से छूट के लिये याचिका दायर की।
- बेटी ने तर्क दिया कि वह भरण-पोषण पाने की हकदार है, क्योंकि वह अविवाहित है और उसकी कोई आय नहीं है।
- वर्ष 2015 में मजिस्ट्रेट ने पिता की याचिका मंज़ूर कर ली और उसे वयस्क बेटी को भरण-पोषण देने से छूट दे दी।
- बेटी ने इस निर्णय के विरुद्ध केरल उच्च न्यायालय में अपील की।
- वर्ष 2017 में पुनरीक्षण याचिका के लंबित रहने के दौरान बेटी की शादी हो गई।
- अब पुनरीक्षण याचिका वर्ष 2015 से 2017 में उसकी शादी तक बेटी के भरण-पोषण के अधिकार को निर्धारित करने पर केंद्रित है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति पी. जी. अजितकुमार ने मजिस्ट्रेटों के लिये यह स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया कि क्या भरण-पोषण आदेश धारा 125 CrPC या धारा 20(3) HAMA के अधीन ज़ारी किये जाते हैं।
- उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण का आदेश CrPC की धारा 125 या HAMA की धारा 20(3) के अधीन दिया जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग शर्तें और अवधि शामिल हैं।
- इसने इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि HAMA की धारा 20(3) के तहत भरण-पोषण का आदेश दिया जाता है, तो यह दायित्व बेटी की शादी तक या उसके आत्मनिर्भर होने तक ज़ारी रहता है।
- ऐसे भरण-पोषण से छूट पाने के लिये पिता को पुत्री की अयोग्यता सिद्ध करनी होगी।
- न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि धारा 125 CrPC के अधीन, बेटी के वयस्क होने पर भरण-पोषण बंद हो जाता है, जब तक कि वह किसी ऐसी शारीरिक या मानसिक स्थिति से ग्रस्त न हो, जो उसे आत्मनिर्भर होने से रोकती हो।
- इसने CrPC की धारा 125 के धर्मनिरपेक्ष अनुप्रयोग को रेखांकित किया, जो अलग -अलग धर्म होने के बावजूद सभी के लिये उपलब्ध है।
घरेलू हिंसा अधिनियम क्या है?
परिचय:
- यह महिलाओं को सभी प्रकार की घरेलू हिंसा से बचाने के लिये बनाया गया एक सामाजिक रूप से लाभकारी विधान है।
- इसे 26 अक्तूबर 2006 को लागू किया गया।
- यह परिवार में होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार महिलाओं के अधिकारों के प्रभावी संरक्षण का प्रावधान करता है।
- इस अधिनियम की प्रस्तावना में यह स्पष्ट किया गया है कि अधिनियम का दायरा यह है कि हिंसा, चाहे वह शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक हो, सभी का निवारण विधि द्वारा किया जाना चाहिये।
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 20 क्या है?
- घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 20 न्यायालय को घरेलू हिंसा के कारण पीड़ित व्यक्ति एवं उसके बच्चों को हुई हानि की भरपाई के लिये आर्थिक राहत के आदेश ज़ारी करने का अधिकार देती है।
- इस राहत में चिकित्सा उपचार, आय की हानि, संपत्ति की क्षति और हिंसा से उत्पन्न होने वाले अन्य परिणामी व्यय शामिल हो सकते हैं।
- धारा 20(1)(d) में कहा गया है कि पीड़ित व्यक्ति के साथ-साथ उसके बच्चों( यदि कोई हो) के लिये भरण-पोषण का प्रावधान है, जिसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण के आदेश के अतिरिक्त या उसके अंतर्गत आदेश या वर्तमान में लागू कोई अन्य विधि शामिल है।
CrPC की धारा 125 क्या है?
परिचय
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास स्वयं के भरण-पोषण हेतु पर्याप्त साधन हैं, वह अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता, यदि वे अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के भरण-पोषण के प्रावधान सभी धर्मों के व्यक्तियों पर लागू होते हैं तथा इनका पक्षों की व्यक्तिगत विधियों से कोई संबंध नहीं है।
बच्चे को भरण-पोषण
- धारा 125(1)(b) में ऐसे बच्चे को भरण-पोषण का प्रावधान है जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है। यहाँ बच्चा वैध या अवैध हो सकता है, चाहे भरण-पोषण देने वाला व्यक्ति विवाहित हो या अविवाहित।
- धारा 125 (1) (c) वैध या अवैध संतान (विवाहित पुत्री को छोड़कर) को भरण-पोषण का प्रावधान करती है, जो वयस्क हो गई है, परंतु शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
- बच्चे की उपेक्षा या भरण-पोषण से इनकार करने के साक्ष्य मिलने पर मजिस्ट्रेट, ऐसे व्यक्ति को निर्धारित दर पर मासिक भत्ता देने का आदेश पारित करता है, जिसे वह उचित समझे तथा ऐसा निर्देश दे सकता है।
- तथापि, मजिस्ट्रेट धारा 125(1)(b) में निर्दिष्ट नाबालिग बालिका के पिता को उसके वयस्क होने तक ऐसा भत्ता देने का आदेश दे सकता है, यदि मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो कि ऐसी नाबालिग बालिका का पति, पर्याप्त साधन संपन्न नहीं है।
- यहाँ 'नाबालिग' का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 के प्रावधानों के अंतर्गत वयस्क नहीं माना गया है।
- मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के लागू होने के बाद भी एक मुस्लिम नाबालिग लड़की अपने पिता से भरण-पोषण पाने की अधिकारी होगी।
- संहिता में बच्चा शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। इसका अर्थ है ऐसा पुरुष या महिला जो पूर्ण आयु (अर्थात भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 के अनुसार 18 वर्ष) तक नहीं पहुँचा है और जो विधि के अधीन कोई अनुबंध करने या कोई दावा लागू करने में अक्षम है।
हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 20(3) क्या है?
- HAMA की धारा 20 बच्चों और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित है।
- धारा 20 में प्रावधान है कि हिंदू अपने जीवनकाल में अपनी वैध या अवैध संतानों तथा अपने वृद्ध या अशक्त माता-पिता का भरण-पोषण करने के लिये बाध्य है।
- धारा 20(3) में कहा गया है कि किसी व्यक्ति का अपने वृद्ध या अशक्त माता-पिता या अविवाहित पुत्री का भरण-पोषण करने का दायित्व इस सीमा तक विस्तारित होता है कि वह अपने माता-पिता या अविवाहित पुत्री, जैसा भी मामला हो, अपनी आय या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।
निर्णयज विधियाँ
- सविताबेन सोमाभाई भाटिया बनाम गुजरात राज्य (2005):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 पत्नी के हित में अधिनियमित की गई है तथा जो व्यक्ति धारा 125 की उपधारा (1)(a) के तहत लाभ लेना चाहता है, उसे यह सिद्ध करना होगा कि वह संबंधित व्यक्ति की पत्नी है।
- श्री जगमोहन कश्यप बनाम सरकार दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं अन्य (2022):
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार परस्पर अनन्य नहीं है।