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आपराधिक कानून

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B

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 09-Nov-2023

कर्नाटक राज्य बनाम टी.नसीर

"भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत एक प्रमाणपत्र ट्रायल के किसी भी चरण में प्रस्तुत किया जा सकता है"।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और राजेश बिंदल

 स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, कर्नाटक राज्य बनाम टी. नसीर के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य साबित करने के उद्देश्य से भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र ट्रायल के किसी भी चरण में प्रस्तुत किया जा सकता है।

कर्नाटक राज्य बनाम टी.नसीर मामले की पृष्ठभूमि:

  • 25 जुलाई 2008 को बेंगलुरु में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट में एक महिला की जान चली गई जबकि कई लोग घायल हो गए।
  • अधिकतर पुलिस स्टेशनों में कई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ की गईं।
  • जाँच के दौरान आरोपियों की निशानदेही पर कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे लैपटॉप, पेन ड्राइव, फ्लॉपी, सिम कार्ड, मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरा आदि ज़ब्त किये गए।
  • इन उपकरणों को केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) हैदराबाद भेजा गया, जिसने 2010 में जाँच के बाद एक रिपोर्ट तैयार की।
  • ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र के अभाव में केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) हैदराबाद KR रिपोर्ट साक्ष्य के रूप में अस्वीकार्य थी।
  • ट्रायल कोर्ट के आदेश को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा।
  • इसके बाद, उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई।
  • अपील की अनुमति देते समय, निचली अदालतों द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य साबित करने के लिये भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत एक प्रमाण पत्र ट्रायल के किसी भी चरण में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि किसी आपराधिक मामले में निष्पक्ष सुनवाई का अभिप्राय यह नहीं है कि यह किसी एक पक्ष के लिये निष्पक्ष होना चाहिये । बल्कि उद्देश्य यह है कि कोई भी दोषी छूट न पाए और किसी निर्दोष को सजा न मिले।
  • आगे यह कहा गया कि इस अधिनियम की धारा 65B के तहत एक ऐसा प्रमाण पत्र, जिसे अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत करने की माँग की गई है, वह सबूत नहीं है जो अब बनाया गया है। इस स्तर पर अभियोजन पक्ष को अधिनियम की धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की अनुमति देने से अभियुक्त पर कोई अपरिवर्तनीय पूर्वाग्रह नहीं होगा। अभियुक्त के पास अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों का खंडन करने का पूरा अवसर होगा।
  • न्यायालय ने अर्जुन पंडितराव खोतकर बनाम कैलाश कुशनराव गोरंट्याल (2020) के मामले का भी उल्लेख किया।
    • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि यदि मुकदमा खत्म नहीं हुआ है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत प्रमाणपत्र किसी भी स्तर पर प्रस्तुत किया जा सकता है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B क्या है?

के बारे में:

यह धारा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों की स्वीकार्यता से संबंधित है। यह कहती है कि-

65ख, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों की ग्राह्यता-

(1) इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी:- किसी इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में अंतर्विष्ट किसी सूचना को भी, जो कम्प्यूटर द्वारा उत्पादित और किसी कागज पर मुद्रित, प्रकाशीय या चुंबकीय मीडिया में भंडारित, अभिलिखित या जकल की गई हो (जिसे इनमें इसके पश्चात् कम्प्यूटर निर्गम कहा गया है), तब एक दस्तावेज़ समझा जायेगा, यदि प्रश्नगत सूचना और कम्प्यूटर के संबंध में, इस धारा में अल्लिखित शर्तें पूरी कर दी जाती हैं और वह मूल की किसी अंतर्वस्तु या उसमें कथित किसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में, जिसका प्रत्यक्ष साक्ष्य ग्राह्य होता, अतिरिक्त सबूत या मूल को पेश किये बिना ही किन्हीं कार्यवाहियों में ग्राह्य होगा।

(2) कम्प्यूटर निर्गम की बचत बाबत उपधारा:-

(1) में वर्णित शर्तें निम्नलिखित होंगी, अर्थात- (क) सूचना के युक्त कम्प्यूटर निर्गम, कम्प्यूटर द्वारा उस अवधि के दौरान उत्पादित किया गया था जिसमें उस व्यक्ति द्वारा, जिसका कम्प्यूटर के उपयोग पर विधिपूर्ण नियंत्रण था, उस अवधि में नियमित रूप से किये गए किसी क्रियाकलाप के प्रयोजन के लिये, सूचना भंडारित करने या प्रसंस्करण करने के लिये नियमित रूप से कम्प्यूटर का उपयोग किया गया था; (ख) उक्त अवधि के दौरान, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में अन्तर्विष्ट किस्म की सूचना या उस किस्म की जिससे इस प्रकार अन्तर्विष्ट सूचना व्युत्पन्न प्राप्त की जाती है, उक्त क्रियाकलापों के सामान्य अनुक्रम में कम्प्यूटर में नियमित रूप से भरी गई थी; (ग) उक्त अवधि के महत्त्वपूर्ण भाग में आद्योपांत, कम्प्यूटर समूचित रूप से कार्य कर रहा था अथवा, यदि नहीं तो, उस अवधि के उस भाग की बाबत, जिसमें कम्प्यूटर समूचित रूप से कार्य नहीं कर रहा था या वह उस अवधि में प्रचालन में नहीं था, ऐसी अवधि नहीं थी जिसमें इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख या उसकी अंतर्वस्तु की शुद्धता प्रभावित होती हो; और(घ) इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में अन्तर्विष्ट सूचना ऐसी सूचना से पुनः उत्पादित या व्युत्पन्न की जाती है, जिसे उक्त क्रियाकलापों से सामान्य अनुक्रम में कम्प्यूटर में भरा गया था।

(3) जहाँ किसी अवधि में:- उपधारा (2) के खण्ड (क) में यथा उल्लिखित, उस अवधि के दौरान नियमित रूप से किये गए किन्हीं क्रियाकलापों के प्रयोजनों के लिये सूचना के भंडारण या प्रसंस्करण का कार्य कम्प्यूटरों द्वारा नियमित रूप से निष्पादित किया गया था, चाहे वह-(क) उस अवधि में कम्प्यूटरों के प्रचालन के संयाजन द्वारा, या(ख) उस अवधि में उत्तरोत्तर प्रचालित विभिन्न कम्प्यूटरों द्वारा, या (ग) उस अवधि में उत्तरोत्तर प्रचलित कम्प्यूटरों के विभिन्न संयोजनों द्वारा, या (घ) उस अवधि में उत्तरोत्तर प्रचालन को अंतर्वलित करते हुए किसी अन्य रीति में हो, चाहे वह एक या अधिक कम्प्यूटरों और एक या अधिक कम्प्यूटरों के संयोजनों द्वारा किसी भी क्रम में हो, डस अवधि के दौरान उस प्रयोजन के लिये उपयोग किये सभी कम्प्यूटर इस धारा के प्रयोजनों के लिये एकल कम्प्यूटर के रूप में माने जाएँगे और इस धारा में कम्प्यूटर के प्रति निर्देश का तदनुसार अर्थ लगाया जायेगा।

(4) किन्हीं कार्यवाहियों में:- जहाँ इस धारा के आधार पर साक्ष्य में विवरण दिया जाना वांछित है, निम्नलिखित बातों में से किसी बात को पूरा करते हुए प्रमाण पत्र, अर्थात-(क) विवरण से युक्त इन अभिलेख की पहचान करना और उस रीति का वर्णन करना जिससे इसका उत्पादन किया गया था; (ख) उस इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के उत्पादन में अन्तर्वलित किसी युक्ति को ऐसी विशिष्टियां देना, जो यह दर्शित करने के प्रयाजन के लिये समुचित हों कि इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख का कम्प्यूटर द्वारा उत्पादन किया गया था; (ग) ऐसे विषयों में से किसी पर कार्रवाई करना, जिससे उपधारा (2) में उल्लिखित शर्तें संबंधित है, और किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किये जाने के लिये तात्पर्यित होना, जो सुसंगत युक्ति के प्रचालन या सुसंगत क्रियाकलाप के प्रबंध के (जो भी समुचित हों) संबंध में उत्तरदायी पदीय हैसियत में हो, प्रमाणपत्र में कथित किसी विषय का साक्ष्य होगा; और इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये किसी ऐसे विषय के लिये यह कथन पर्याप्त होगा कि यह काम करने वाले व्यक्ति के सर्वोत्तम ज्ञान और विश्वास आधार पर कहा गया है।
(5) इस धाारा के प्रयोजनों के लिये:-(क) सूचना किसी कम्प्यूटर को प्रदाय की गई समझी जायेगी यदि यह किसी समूचित रूप में प्रदाय की गई है, चाहे इस प्रकार किया गया प्रदाय सीधे (मानव मध्यक्षेप सहित या रहित) या किसी समुचित उपस्कर के माध्यम द्वारा किया गया हो; (ख) चाहे किस पदधारी द्वारा किये गए क्रियाकलापों के अनुक्रम में सूचना इसके भंडारित या प्रसंस्कृत किये जाने की दृष्टि से उक्त क्रियाकलापों के अनुक्रम से अन्यथा प्रचालित कम्प्यूटर द्वारा उक्त क्रियाकलापों के प्रयोजनों के लिये प्रदाय की जाती है, वह सूचना, यदि सम्यक् रूप से उस कम्प्यूटर को प्रदाय की जाती है तो, उन क्रियाकलापों के अनुक्रम में प्रदाय की गई समझी जायेगी; (ग) कम्प्यूटर उत्पाद को कम्प्यूटर द्वारा उत्पादित समझा जायेगा, चाहे यह इसके सीधे उत्पादित हो (मानव मध्यक्षेप सहित या रहित) या किसी समुचित उपस्कर के माध्यम से हो।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिये, अनरूप सूचना से व्युत्पन्न की गई सूचना के प्रति कोई निर्देश, परिकलन, तुलना या किसी अन्य प्रक्रिया द्वारा उससे व्युत्पन्न के प्रति निर्देश होगा।

निर्णयज विधि :

  • कर्नाटक राज्य बनाम एम.आर. हिरेमठ (2019) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत प्रमाणपत्र प्रस्तुत न करना एक सुधार योग्य दोष है।
  • अनवर पी. वी. बनाम पी. के. बशीर (2014) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि यदि इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जाता है तो अधिनियम की धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।