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आपराधिक कानून

BSA की धारा 7

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 12-Jul-2024

पी. शशिकुमार बनाम राज्य प्रतिनिधि, पुलिस निरीक्षक

“बिना पहचान परेड के अपरिचित आरोपी की पहचान के लिये ट्रायल कोर्ट द्वारा सावधानीपूर्वक जाँच की आवश्यकता होती है”।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं प्रसन्ना बी. वराले  

स्रोत:  उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

पी. शशिकुमार बनाम राज्य प्रतिनिधि पुलिस निरीक्षक के मामले में उच्चतम न्यायालय ने आपराधिक वादों में पहचान परेड (TIP) के महत्त्व पर ज़ोर दिया है, जिसमें कहा गया है कि न्यायालय में अभियुक्त की पहचान, विशेषकर जब अभियुक्त, साक्षी के लिये एक अपरिचित हो एवं कोई पहचान परेड आयोजित नहीं की गई हो, तो दोषसिद्धि के लिये प्रबल साक्ष्य के रूप में इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

  • इस निर्देश का उद्देश्य निष्पक्ष एवं सटीक पहचान प्रक्रिया सुनिश्चित करना, संभावित गलत पहचान को रोकना तथा ऐसे मामलों में सावधानीपूर्वक न्यायिक जाँच की आवश्यकता पर ज़ोर देना है।

पी. शशिकुमार बनाम राज्य प्रतिनिधि पुलिस निरीक्षक मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला 13 नवंबर 2014 को एक 14 वर्षीय लड़की की उसके घर के अंदर नृशंस हत्या से जुड़ा है।
  • दो आरोपियों पर आरोप लगाए गए- आरोपी नंबर 1 (युगाधिथन) और आरोपी नंबर 2 (पी. शशिकुमार, इस मामले में अपीलकर्त्ता)।
  • अभियोजन पक्ष का मामला मुख्यतः परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था, क्योंकि हत्या का कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्षी नहीं था।
  • 13 नवंबर 2014 की शाम लगभग 7:15 बजे पीड़िता के पिता (PW-1) घर लौटे तो उन्होंने अपनी बेटी को अत्यधिक घायल अवस्था में खून बहता हुआ पाया।
    • उन्होंने हेलमेट पहने एक आदमी को सीढ़ियों से नीचे आते देखा।
  • PW-5 (एक पड़ोसी) ने दावा किया कि उसने दो लोगों को शाम 6:30-6:40 बजे के आस-पास पीड़िता के घर में घुसते देखा- एक ने हेलमेट पहना हुआ था और दूसरे ने हरे रंग की मंकी कैप पहन रखी थी।
  • 15 नवंबर 2014: दोनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
  • अभियुक्त के बयानों के आधार पर हथियार, कपड़े और वाहन सहित अन्य सामान बरामद किया गया।
  • पहचान संबंधी समस्याएँ:
    • PW-1 और PW-5 ने घटना से पहले अपीलकर्त्ता (अभियुक्त संख्या 2) को नहीं देखा था।
    • उन्होंने दावा किया कि उन्होंने उसे हरे रंग की मंकी कैप पहने देखा था, जिससे उसका अधिकांश चेहरा ढका हुआ था।
    • पुलिस द्वारा कोई पहचान परेड (TIP) आयोजित नहीं की गई।
    • साक्षियों ने आरोपियों की पहचान चिकित्सालय में की, जब वे पुलिस अभिरक्षा में थे।
    • बाद में, उन्होंने सुनवाई के दौरान न्यायालय में आरोपी की पहचान की।
  • ट्रायल कोर्ट ने दोनों आरोपियों को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 (हत्या) सहित विभिन्न धाराओं के अधीन दोषी ठहराया।
  • उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ता (अभियुक्त संख्या 2) की दोषसिद्धि को यथावत् रखा।
  • अपीलकर्त्ता ने अपनी दोषसिद्धि को मुख्यतः संदिग्ध पहचान के आधार पर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब आरोपी साक्षी से अपरिचित हो तो पहचान परेड (TIP) की ज़रूरत होती है। इसने इस बात पर ज़ोर दिया कि TIP के बिना की गई पहचान, न्यायालय में अपराध स्थापित करने के लिये विश्वसनीय साक्ष्य के रूप में काम नहीं कर सकती।
  • न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में जहाँ कोई TIP नहीं किया गया है और अभियुक्त, साक्षी के लिये अपरिचित है, वहाँ परीक्षण न्यायालय को वाद में की गई पहचान को निर्णायक साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने से पहले अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिये।
  • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में TIP का अभाव पुलिस जाँच में गंभीर त्रुटि के समान है। इस चूक ने वाद के दौरान आरोपी की पहचान की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न किया।
  • न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामलों में, उचित संदेह से परे अभियुक्त की पहचान सिद्ध करने का दायित्व अभियोजन पक्ष का होता है। न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष TIP के अभाव में इस दायित्व को पूरा करने में विफल रहा।
  • न्यायालय ने वर्तमान मामले को पूर्व के निर्णयों से अलग करते हुए कहा कि अपर्याप्त पुष्टिकरण तथा अपीलकर्त्ता की पहचान के विषय में संदेह के कारण अविश्वसनीय साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि नहीं हो सकती।
  • न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्त्ता की पहचान के संबंध में संदेह के कारण उसे दोषमुक्त किया जाना चाहिये तथा इस सिद्धांत को रेखांकित किया कि संदेह से अभियुक्त को लाभ होना चाहिये।

परीक्षण पहचान परेड (TIP) क्या है? 

परिचय:

  • अभियुक्त की पहचान स्थापित करने में साक्षी की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। पहचान स्थापित करने के तरीकों में से एक टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 9 के तहत प्राप्त की जाती है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 में धारा 7 के अंतर्गत यह प्रावधान दिया गया है।

BSA की धारा 7:

  • यह खंड प्रासंगिक तथ्यों को स्पष्ट करने या प्रस्तुत करने के लिये आवश्यक तथ्यों से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि वे तथ्य जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य को स्पष्ट करने या प्रस्तुत करने के लिये आवश्यक हैं, या जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य द्वारा सुझाए गए अनुमान का समर्थन या खंडन करते हैं, या जो किसी वस्तु या व्यक्ति की पहचान स्थापित करते हैं जिसकी पहचान सुसंगत है, या वह समय या स्थान निश्चित करते हैं जब कोई विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य घटित हुआ, या जो उन पक्षकारों के संबंध को दर्शित करते हैं जिनके द्वारा कोई ऐसा तथ्य संव्यवहारित किया गया, वहाँ तक ​​सुसंगत हैं जहाँ तक ​​वे उस प्रयोजन के लिये आवश्यक हैं।

TIP का उद्देश्य:

  • परेड का उद्देश्य, साक्षी की सत्यता का परीक्षण करना है, इस प्रश्न पर कि क्या वह कई लोगों में से किसी अज्ञात व्यक्ति को पहचानने में सक्षम है, जिसे उसने किये गए अपराध के संदर्भ में देखा था।
  • इसके दो प्रमुख उद्देश्य हैं:
    • जाँच अधिकारियों को संतुष्ट करने के लिये, एक ऐसे व्यक्ति को अपराध में शामिल किया गया था, जिसे साक्षी पहले से नहीं जानते थे।
    • संबंधित साक्षी द्वारा न्यायालय के समक्ष दी गई साक्षी की पुष्टि के लि ये साक्ष्य प्रस्तुत करना।

TIP का तरीका:

  • जहाँ तक ​​संभव हो सके, जेल में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पहचान परेड आयोजित की जाएगी।
  • परेड की व्यवस्था करने के बाद पुलिस अधिकारियों को उस स्थान से पूरी तरह से हट जाना चाहिये तथा वास्तविक पहचान की कार्यवाही का कार्य मजिस्ट्रेट पर छोड़ देना चाहिये।
  • जब कोई साक्षी कहता है कि वह आरोपी व्यक्तियों या जाँच के अधीन मामले से जुड़े अन्य लोगों की पहचान कर सकता है, तो जाँच अधिकारी निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए केस डायरी में उनका विवरण विस्तार से दर्ज करेगा:
    • उनका विवरण
    • अपराध के समय प्रकाश की सीमा (दिन का प्रकाश, चाँदनी, मशालों की चमक, केरोसिन, बिजली या गैस की रोशनी)।
    • अपराध के समय अभियुक्त को देखने के अवसरों का विवरण तथा अभियुक्त के चरित्र या आचरण में कोई ऐसी बात जिसने उसे प्रभावित किया हो (पहचानकर्त्ता)।
    • वह दूरी जहाँ से उसने अभियुक्त को देखा।
    • वह समय-सीमा जिसके दौरान उसने अभियुक्त को देखा।
  • जब किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की पहचान के लिये किसी साक्षी द्वारा परेड आयोजित की जानी हो तो ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों को साक्षियों की दृष्टि से सावधानीपूर्वक दूर रखा जाएगा तथा उन्हें समान वर्ग के अन्य व्यक्तियों की पर्याप्त संख्या के साथ मिलाया जाएगा।
  • परेड का संचालन करने वाले मजिस्ट्रेट या अन्य व्यक्तियों को स्वयं संतुष्ट होना चाहिये कि कोई भी पुलिस अधिकारी इस कार्यवाही में भाग नहीं ले रहा है।
  • पहचान परेड के दौरान पहचान करने वाले साक्षी द्वारा दिये गए बयानों को कार्यवाही में दर्ज किया जाना चाहिये। अगर कोई साक्षी गलती भी करता है तो उसे दर्ज किया जाना चाहिये।
  • पहचान परेड पूरी होने और कार्यवाही की रूपरेखा तैयार होने के बाद, एक प्रमाण-पत्र जारी किया जाना चाहिये जिस पर परेड का संचालन करने वाले मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षर किये गए हों।

TIP का साक्ष्यात्मक मूल्य:

  • TIP का विधि में स्थान प्रबल साक्ष्य के रूप में नहीं है और इसका उपयोग केवल संबंधित साक्षी द्वारा न्यायालय में दिये गए साक्ष्य की पुष्टि या खंडन के लिये ही किया जा सकता है।

निर्णयज विधियाँ:

  • रामकिशन बनाम बॉम्बे राज्य (1955) में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जाँच के दौरान पुलिस को पहचान परेड करवानी चाहिये। ये परेड साक्षी को अपराध के केंद्र में रहने वाली संपत्तियों या अपराध में शामिल व्यक्तियों की पहचान करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से की जाती है।
  • जॉर्ज बनाम केरल राज्य (1996) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि TIP में पूर्व पहचान के साक्ष्य के अभाव में न्यायालय में अभियुक्त की पहचान की स्वीकार्यता प्रभावित नहीं होती है।
  • जयन बनाम केरल राज्य (2021) में न्यायालय ने कहा कि यदि साक्षी के साक्ष्य के लिये पर्याप्त पुष्टि थी तो न्यायालय में आरोपी की पहचान करने वाले साक्षी के साक्ष्य को केवल इसलिये अस्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि परीक्षण पहचान परेड आयोजित नहीं की गई थी। न्यायालय ने कहा कि चूँकि अपीलकर्त्ता की पहचान संदेह में थी और साक्षी के साक्ष्य के लिये पर्याप्त पुष्टि नहीं थी, इसलिये अपीलकर्त्ता की पहचान के विषय में बहुत ही संदिग्ध साक्ष्य के आधार पर अपीलकर्त्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।