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सिविल कानून

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य

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 02-Sep-2025

अतिरिक्त महानिदेशक न्यायनिर्णयन, राजस्व खुफिया निदेशालय बनाम सुरेश कुमार एंड कंपनी इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य 

"अधिकरण द्वारा पारित निर्णय और आदेश को एतद्द्वारा अपास्त किया जाता है। अधिकरण के समक्ष करदाताओं द्वारा दायर अपीलों को उनकी मूल फाइल में बहाल करने और अधिनियम, 1962 की धारा 138(4) के अलावा अन्य आधारों पर अधिकरण द्वारा पुनः सुनवाई करने का आदेश दिया जाता है।" 

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और के.वी. विश्वनाथन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और के.वी. विश्वनाथन नेयह निर्णय दिया कि राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) द्वारा जब्त इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 138(4) के अधीन प्रमाण पत्र के बिना ग्राह्य हो सकते हैं, यदि करदाता ने धारा 108 के अधीन अभिलिखित कथनों में दस्तावेज़ों को अभिस्वीकृत किया है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि प्रमाण पत्र आवश्यकताओं के कठोर अनुपालन में छूट दी जा सकती है जब करदाता द्वारा साक्ष्य को विधिवत स्वीकार कर लिया जाता है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि प्रमाण पत्र की आवश्यकताओं के कठोर अनुपालन में तब ढील दी जा सकती है, जब करदाता द्वारा साक्ष्य को विधिवत स्वीकार कर लिया जाता है। 

  • उच्चतम न्यायालय ने अतिरिक्त महानिदेशक न्यायनिर्णयन, राजस्व खुफिया निदेशालय बनाम सुरेश कुमार एंड कंपनी इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य (2025)के मामले में यह निर्णय दिया । 

अतिरिक्त महानिदेशक न्यायनिर्णयन, राजस्व खुफिया निदेशालय बनाम सुरेश कुमार एंड कंपनी इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • प्रत्यर्थी दिल्ली और मुंबई में विक्रय के लिये विभिन्न देशों से ब्रांडेड खाद्य पदार्थों का आयात करते थे। राजस्व खुफिया निदेशालय ने आरोप लगाया कि प्रत्यर्थियों ने खुदरा विक्रय मूल्य/अधिकतम खुदरा मूल्य (Retail Sale Price/Maximum Retail Price – RSP/MRP) को बिल ऑफ एंट्री दाखिल करते समय कम दर्शाया, जिसके परिणामस्वरूप सीमा शुल्क में चोरी हुई।  
  • राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने व्यावसायिक और आवासीय परिसरों पर छापे मारे और लैपटॉप और हार्ड ड्राइव सहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ज़ब्त कियेअन्वेषण में वास्तविक विक्रय मूल्यों की गलत घोषणा के ज़रिए सीमा शुल्क का कम भुगतान करने के साक्ष्य मिले। 
  • दिनांक 06.06.2016 को जारी कारण बताओ नोटिस में प्रत्यर्थी संख्या 1 से 9,24,50,644/- रुपये तथा प्रत्यर्थी संख्या 2 से 9,83,614/- रुपए के अंतर शुल्क के साथ-साथ ब्याज और जुर्माने की मांग की गई। 
  • अपर महानिदेशक ने 17.07.2017 के आदेश द्वारा मांगों की पुष्टि की। सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर अपीलीय अधिकरण (CESTAT) ने प्रत्यथियों की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 138(4) का अनुपालन न होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अग्राह्य हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने यह पता लगाया कि क्या अधिकरण ने केवल सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 138(4) का अनुपालन न करने के आधार पर अपील की अनुमति देकर गलती की है। 
  • न्यायालय ने कहा कि सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 138(4) भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65(4) के समरूप है। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के लिये प्रमाणपत्र आवश्यकताओं की अनिवार्य प्रकृति को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने विधिक सिद्धांतों " impotentia excusat legem" और " lex non cogit ad impossibilia" को लागू किया - जिससे यह स्थापित हुआ कि विधि असंभव कार्यों को करने के लिये बाध्य नहीं करती।  
  • न्यायालय ने माना कि उचित अनुपालन के लिये धारा 138(4) के अधीन स्ट्रिक्टो सेन्सो (stricto senso) प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है। सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 के अधीन दर्ज कार्यवाही का अभिलेख और कथन धारा 138(4) के उचित अनुपालन का गठन कर सकते हैं। 
  • न्यायालय ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ कंपनी निदेशकों की उपस्थिति में एकत्र किये गए थे, जिन्होंने प्रिंटआउट के प्रत्येक पृष्ठ पर हस्ताक्षर किये थे और धारा 108 के अधीन बिना वापस लिये गए कथनों में उनकी प्रामाणिकता को स्वीकार किया था। प्रत्यर्थियों ने जब्त हार्ड ड्राइव से मुद्रण प्रक्रिया के दौरान अभिलेख की सटीकता और उनकी उपस्थिति की पुष्टि की। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 108 के कथनों में अभिस्वीकृति धारा 138(4) के अनुपालन को निर्धारित करती है, किंतु अन्य कार्यवाहियों में उनके साक्ष्य मूल्य पर विधि के अनुसार विचार किया जाना चाहिये, जिसमें सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 138ख का अनुपालन भी सम्मिलित है। 

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य क्या है? 

  • इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य आधुनिक विधिक कार्यवाहियों का मूलभूत आधार बन गए हैं, जिससे ग्राह्यता और प्रमाणीकरण के लिये मज़बूत सांविधिक ढाँचे की आवश्यकता होती है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अंतर्गत, धारा 65क और 65 इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को नियंत्रित करते थे, जिसके लिये धारा 65(4) के अधीन प्रमाणपत्र प्रावधानों का कठोरता से अनुपालन आवश्यक था। इस उपबंध के अधीन उत्तरदायी अधिकारियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों की पहचान, उत्पादन विधियों का विवरण और संचालन स्थितियों की पुष्टि करने वाले प्रमाणपत्र अनिवार्य थे। 
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 ने धारा 62 और 63 के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य नियमों का आधुनिकीकरण किया है। धारा 63 पारंपरिक कंप्यूटरों से आगे बढ़कर संसूचना उपकरणों और सेमीकंडक्टर मेमोरी स्टोरेज को भी इसमें सम्मिलित करती है। नया ढाँचा विभिन्न प्रारूपों और स्थानों में संग्रहीत इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मान्यता देता है, और क्लाउड स्टोरेज और नेटवर्क-आधारित प्रणालियों जैसी समकालीन डिजिटल प्रथाओं को भी संबोधित करता है। 
  • प्रमुख सुधारों में संसूचना उपकरणों को सम्मिलित करते हुए व्यापक परिभाषाएँ, बहु-भंडारण प्रारूपों की पहचान, और विशेषज्ञ सत्यापन के साथ मानकीकृत प्रमाणपत्र आवश्यकताएँ सम्मिलित हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) निर्धारित अनुसूची प्रारूप में प्रमाणपत्रों को दोहरे सत्यापन के साथ अनिवार्य बनाता है - भाग A उत्पादक पक्ष द्वारा और भाग B तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा पूरा किया जाता है। 
  • यद्यपि, "इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख" और "इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म" जैसे अपरिभाषित शब्दों को लेकर चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिससे संभावित अस्पष्टताएँ उत्पन्न हो रही हैं। अर्जुन पंडितराव खोतकर मामले में स्थापित कठोर अनुपालन सिद्धांतों और नए ढाँचे के अधीन कठोर प्रमाणपत्र आवश्यकताओं के बीच संबंध को न्यायिक निर्वचन की आवश्यकता है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य उपबंधों का उद्देश्य तकनीकी प्रगति को साक्ष्य विश्वसनीयता के साथ संतुलित करना है, तथा जटिल डिजिटल वातावरण में औपचारिक प्रमाण पत्र प्राप्त करने में व्यावहारिक सीमाओं को पहचानते हुए प्रामाणिक दस्तावेजीकरण सुनिश्चित करना है। 

सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 138ग क्या है? 

  • धारा 138ग का अवलोकन 
    • सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 138, सीमा शुल्क कार्यवाहियों में दस्तावेज़ी साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों, माइक्रोफिल्मों, फैक्स प्रतियों और कंप्यूटर प्रिंटआउट की ग्राह्यता को नियंत्रित करती है। वाणिज्यिक संव्यवहार में इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ीकरण के बढ़ते उपयोग को देखते हुए, यह उपबंध 1 जुलाई 1988 से अधिनियम 29, 1988 द्वारा जोड़ा गया था। 
  • प्रमुख प्रावधान 
    • ग्राह्यता का दायरा:धारा 138(1) घोषित करती है कि माइक्रो फिल्म, फैक्स प्रतियाँ और कंप्यूटर प्रिंटआउट को सीमा शुल्क अधिनियम के अधीन दस्तावेज़ माना जाएगा और मूल प्रस्तुत किये बिना साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होगा, बशर्ते निर्दिष्ट शर्तें पूरी हों। 
    • कंप्यूटर प्रिंटआउट के लिये अनिवार्य शर्तें:उपधारा (2) कंप्यूटर प्रिंटआउट स्वीकार करने के लिये चार आवश्यक शर्तें स्थापित करती है: प्रासंगिक गतिविधियों के दौरान सूचना संग्रहीत करने के लिये कंप्यूटर का नियमित रूप से उपयोग किया जाना चाहिये; गतिविधियों के सामान्य क्रम में सूचना नियमित रूप से प्रदान की जानी चाहिये; कंप्यूटर को संपूर्ण सामग्री अवधि में उचित रूप से संचालित किया जाना चाहिये; और विवरण में सामान्य क्रम में प्रदान की गई सूचना को पुन: प्रस्तुत किया जाना चाहिये 
    • प्रमाणपत्र की आवश्यकता:उपधारा (4) के अनुसार, दस्तावेज़ की पहचान, उत्पादन विधि, उपकरण का विवरण और उपधारा (2) में उल्लिखित शर्तों का विवरण देने वाले किसी उत्तरदायी आधिकारिक पदधारी व्यक्ति से प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य है। यह प्रमाणपत्र इसमें वर्णित मामलों के साक्ष्य के रूप में कार्य करता है। 
    • व्यावहारिक परिभाषाएँ:यह धारा "कम्प्यूटर" को मोटे तौर पर किसी भी उपकरण के रूप में परिभाषित करता है जो डेटा प्राप्त करता है, संग्रहीत करता है और संसाधित करता है, और स्पष्ट करता है कि सूचना व्युत्पन्न में गणना, तुलना या अन्य प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। 
  • विधिक महत्त्व 
    • साक्ष्य ढाँचा:धारा 138ग सीमा शुल्क कार्यवाहियों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की ग्राह्यता के लिये एक व्यापक ढाँचा तैयार करती है, जो तकनीकी प्रगति और साक्ष्य विश्वसनीयता के बीच संतुलन स्थापित करती है। यह उपबंध इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ीकरण में व्यावहारिक चुनौतियों को स्वीकार करते हुए प्रामाणिकता सुनिश्चित करता है। 
    • साक्ष्य अधिनियम के साथ संबंध:धारा 138(4) भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65(4) के समरूप है, जो विभिन्न सांविधिक ढाँचों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य मानकों में एकरूपता बनाए रखती है। 
    • अनुपालन आवश्यकताएँ:यह धारा स्थापित करती है कि यद्यपि प्रमाणपत्र आवश्यकताएँ अनिवार्य हैं, किंतुं न्यायालय पर्याप्त अनुपालन पर विचार कर सकते हैं, जहाँ पक्षकार के नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण कठोर तकनीकी अनुपालन असंभव हो जाता है, जैसा कि हाल के न्यायिक घोषणाओं में माना गया है।