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सिविल कानून
सूचना का अधिकार अधिनियम और वस्तु एवं सेवा कर सूचना का प्रकटीकरण
« »17-Oct-2025
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आदर्श गौतम पिम्पारे बनाम महाराष्ट्र राज्य “बॉम्बे उच्च न्यायालय ने यह अभिप्रेत किया कि जीएसटी रिटर्न पर- पक्षकार सूचना के रूप में अभिहित होती है, जिसके प्रकटीकरण के लिये सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 11 के अंतर्गत अनिवार्य नोटिस दिया जाना आवश्यक है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 158 ऐसी सूचनाओं के प्रकटीकरण को प्रतिषेध करती है, जब तक कि विधि द्वारा निर्दिष्ट विशेष परिस्थितियों में उसकी अनुमति न दी गई हो।” न्यायमूर्ति अरुण आर. पेडनेकर |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
बॉम्बे उच्च न्यायालय, औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति अरुण आर. पेडनेकर ने आदर्श गौतम पिंपरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) के मामले में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अधीन GST रिटर्न की जानकारी देने से इंकार करने को बरकरार रखा और निर्णय दिया कि ऐसी जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11 के अधीन पर-पक्षार की गोपनीय जानकारी के रूप में और वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 158 के अधीन सांविधिक रूप से प्रतिषिद्ध प्रकटीकरण के रूप में संरक्षित है।
आदर्श गौतम पिंपरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता आदर्श गौतम पिंपरे ने 13.02.2023 को जनहित अधिकारी/सहायक राज्य कर आयुक्त के समक्ष RTI आवेदन दायर कर उदगीर, जिला लातूर के छह विभिन्न उद्योगों द्वारा वित्तीय वर्ष 2008 से 2023 तक GST प्रस्तुत करने के संबंध में जानकारी मांगी थी।
- ये छह उद्योग थे: मेसर्स व्यंकटेश्वर महिला औद्योगिक उत्पादक सहकारी संस्था, मेसर्स अनिकेत ट्रेडिंग कंपनी, मेसर्स मयूरेश्वर ट्रेडिंग कंपनी, मेसर्स न्यू प्रसाद प्रोडक्ट्स एंड एजेंसीज़, मेसर्स कल्याणी ट्रेडिंग और मेसर्स प्रसाद इंडस्ट्रीज।
- सूचना अधिकारी ने संबंधित उद्योगों को नोटिस जारी कर सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11 के अनुसार आवेदन पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी।
- संबंधित उद्योगों ने याचिकाकर्त्ता को सूचना उपलब्ध कराने पर आपत्ति जताई।
- उद्योगों की आपत्तियों के आधार पर सूचना अधिकारी ने याचिकाकर्त्ता के आवेदन को खारिज कर दिया।
- याचिकाकर्त्ता ने प्रथम अपीलीय अधिकारी/उप राज्य कर आयुक्त के समक्ष सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 19(1) के अधीन अपील दायर की, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि फर्मों ने पर-पक्षकार को सूचना प्रदान करने के लिये सहमति देने से इंकार कर दिया था।
- तत्पश्चात् याचिकाकर्त्ता ने राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष धारा 19(3) के अधीन द्वितीय अपील दायर की, जिसे निचले प्राधिकारियों के आदेशों को बरकरार रखते हुए दिनांक 30.12.2024 के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया।
- याचिकाकर्त्ता ने इस रिट याचिका के माध्यम से तीनों आदेशों को बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि छह फर्मों ने दस्तावेज़ों में हेराफेरी करके और GST जमा नहीं करके सरकारी निविदाएँ हासिल की थीं, जिससे जनता के पैसे के साथ भारी कपट हुआ था, और इस शिकायत को प्रमाणित करने के लिये जानकारी की आवश्यकता थी।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि GST रिटर्न लोक दस्तावेज़ हैं, न कि व्यक्तिगत या पर-पक्षकार की जानकारी जिसके लिये सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11 के अधीन सहमति की आवश्यकता होती है।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
पर-पक्षकार को अनिवार्य सूचना पर:
- न्यायालय ने केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी, भारत के उच्चतम न्यायालय बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल (2020) में संविधान पीठ के निर्णय पर विश्वास किया, जिसमें कहा गया था कि जब सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(ञ) के अधीन व्यक्तिगत जानकारी मांगी जाती है, तो धारा 11 के अधीन प्रक्रिया का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि पर-व्यक्ति को सूचना को प्रथम दृष्टया गोपनीय माना जाना चाहिये, तथा प्रभावित पक्षकारों को धारा 11 के अधीन प्रकटीकरण का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिये। धारा 8 और धारा 11 को एक साथ पढ़ा जाना चाहिये, तथा प्रकटीकरण की अनुमति केवल तभी दी जानी चाहिये जब लोकहित संभावित नुकसान से अधिक हो।
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता की इस आपत्ति को खारिज कर दिया कि उद्योगों को कोई नोटिस नहीं दिया जाना चाहिये था, तथा कहा कि सूचना अधिकारी ने धारा 11 के अधीन अनिवार्य प्रक्रिया का सही ढंग से पालन किया है।
संरक्षित सूचना के रूप में GST रिटर्न पर:
- न्यायालय ने वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 158 का विश्लेषण किया, जो विशेष रूप से उपधारा (3) में दिये गए उपबंध के सिवाय GST रिटर्न, विवरण और दस्तावेज़ों के प्रकटीकरण पर रोक लगाती है।
- न्यायालय ने यह सिद्धांत लागू किया कि वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, एक विशेष और बाद में पारित अधिनियम होने के कारण, सूचना का अधिकार अधिनियम (एक सामान्य अधिनियम) पर अधिभावी होगा। इसलिये, वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की धारा 158 के अधीन प्रतिषिद्ध जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन प्रकट नहीं की जा सकती।
जनहित अपवाद पर:
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता का बड़े पैमाने पर कपट का आरोप पूरी तरह से निराधार था और उसके लिये प्रथम दृष्टया कोई साक्ष्य नहीं था। प्राधिकारियों ने सही ढंग से अवधारित किया कि इसमें कोई व्यापक जनहित शामिल नहीं था जो धारा 8(1)(ञ) के उपबंध के अधीन प्रकटीकरण को उचित ठहराता हो।
अंतिम निर्णय:
- न्यायालय ने जनहित अधिकारी/सहायक राज्य कर आयुक्त, प्रथम अपीलीय अधिकारी/उप राज्य कर आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित सभी तीन आदेशों को बरकरार रखते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया।
सूचना का अधिकार अधिनियम क्या है?
बारे में:
- यह भारत की संसद का एक अधिनियम है जो नागरिकों के सूचना के अधिकार से संबंधित नियमों और प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है।
- सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, भारत का कोई भी नागरिक किसी लोक प्राधिकारी से सूचना का अनुरोध कर सकता है, जिसका उत्तर शीघ्रता से या तीस दिनों के भीतर देना आवश्यक है।
- सूचना का अधिकार विधेयक भारत की संसद द्वारा 15 जून 2005 को पारित किया गया था और 12 अक्टूबर 2005 से लागू हुआ ।
उद्देश्य:
- नागरिकों को सशक्त बनाना।
- पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना।
- भ्रष्टाचार से निपटने के लिये।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी बढ़ाना।
सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019:
- इसमें उपबंधित किया गया कि मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त (केंद्र और राज्य दोनों के) केंद्र सरकार द्वारा विहित अवधि तक पद धारण करेंगे। इस संशोधन से पहले, उनका कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित था।
- इसमें उपबंधित किया गया कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त (केंद्र तथा राज्य के) के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें ऐसी होंगी जो केंद्र सरकार द्वारा विहित की जाएंगी।
सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन महत्त्वपूर्ण उपबंध:
- सूचना का अधिकार (धारा 3):
- इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार है।
- लोक प्राधिकारियों की बाध्यताएं (धारा 4):
- अभिलेखों का रखरखाव एवं सूचीकरण करना।
- उचित समय के भीतर अभिलेखों को कम्प्यूटरीकृत करें।
- अधिनियमन के 120 दिनों के भीतर संगठन के बारे में विभिन्न विवरण प्रकाशित करें।
- प्रभावित व्यक्तियों को प्रशासनिक या अर्ध-न्यायिक निर्णयों के कारण पदान करे।
- लोक सूचना अधिकारियों का पदनाम (धारा 5):
- प्रत्येक लोक प्राधिकारी को केंद्रीय या राज्य लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करना होगा।
- उप-मंडल या उप-जिला स्तर पर सहायक लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किये जाएंगे।
- सूचना अभिप्राप्त करने के लिये अनुरोध (धारा 6):
- अनुरोध लिखित, इलेक्ट्रॉनिक या मौखिक रूप से किया जा सकता है।
- आवेदकों को सूचना मांगने के लिये कारण बताने की आवश्यकता नहीं है।
- अनुरोध का निपटारा (धारा 7):
- अनुरोध के 30 दिनों के भीतर सूचना उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
- यदि सूचना जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है तो उसे 48 घंटों के भीतर उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
- जानकारी उपलब्ध कराने के लिये शुल्क लिया जा सकता है।
- सूचना के प्रकट किये जाने से छूट (धारा 8):
- इसमें छूट के लिये विभिन्न आधारों की सूची दी गई है, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, वाणिज्यिक गोपनीयता और व्यक्तिगत जानकारी सम्मिलित हैं।
- छूट के होते हुए भी लोक हित में प्रकटीकरण संभव है।
- कतिपय मामलों में पहुँच के लिये अस्वीकृति के आधार (धारा 9):
- यदि अनुरोध कॉपीराइट का उल्लंघन करता हो तो उसे अस्वीकार किया जा सकता है।
- पृथक्करणीयता (धारा 10):
- यदि छूट प्राप्त सूचना को उचित रूप से अलग किया जा सकता है तो अभिलेख के किसी भाग तक पहुँच प्रदान की जा सकती है।
- पर-व्यक्ति सूचना (धारा 11):
- किसी पर-व्यक्ति से संबंधित या उसके द्वारा प्रदान की गई सूचना को संभालने की प्रक्रिया।
- सूचना आयोगों का गठन (धारा 12-15):
- केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों की स्थापना।
- सूचना आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया।
- पदावधि एवं सेवा शर्ते (धारा 13 एवं 16):
- सूचना आयुक्तों के लिये सेवा की शर्तों, वेतन और शर्तों का विवरण।
- सूचना आयुक्तों को हटाना (धारा 14 और 17):
- सूचना आयुक्तों को हटाने के आधार और प्रक्रिया का उल्लेख।
- सूचना आयोगों की शक्तियां और कार्य (धारा 18):
- आयोग परिवादों की जांच कर सकता है और उसके पास सिविल न्यायालय की शक्तियां होती हैं।
- अपील प्रक्रिया (धारा 19):
- प्रथम और द्वितीय अपील प्रक्रियाओं से संबंधित है।
- सूचना आयोगों के निर्णय बाध्यकारी हैं।
- शास्ति (धारा 20):
- अनुचित इंकार, विलंब या बाधा के लिये लोक सूचना अधिकारियों के लिये शास्ति।
- निरतंर उल्लंघन के लिये अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की जाती है।
