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आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 243

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 18-Sep-2025

मम्मन खान बनाम हरियाणा राज्य 

"चूँकि अपीलार्थी तथा सह-अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य समान था, अतः पृथक्--विचारण से अनावश्यक पुनरावृत्ति, विलंब तथा परस्पर विरोधी निष्कर्षों का जोखिम उत्पन्न होता। उच्च न्यायालय ने तथ्यात्मक औचित्य के बिना पृथक्करण को बरकरार रखकर गलती की। इसलिये, पृथक् विचारण का आदेश अस्थिर एवं असांविधानिक ठहरता है तथा यह अपीलार्थी के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निष्पक्ष विचारण के अधिकार का उल्लंघन है।"  

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन 

स्रोत:उच्चतम न्यायालय   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति जे.बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवनकी पीठ ने 2023 के नूंह हिंसा मामले में कांग्रेस विधायक मम्मन खान के विरुद्ध पृथक् विचारण चलाने के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया। पीठ ने कहा कि एक ही संव्यवहार से उत्पन्न अपराधों का विचारण सामान्यतः दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 223 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 243) के अधीन संयुक्त रूप से किया जाना चाहिये, जब तक कि सुभिन्न और पृथक् करने योग्य कृत्य सम्मिलित न हों। न्यायालय ने निर्णय दिया कि खान के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखाया गया था, और पृथक् विचारण चलाने से साक्ष्यों का दोहराव और प्रक्रियात्मक जटिलताएँ उत्पन्न होंगी। 

मम्मन खान बनाम हरियाणा राज्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • हरियाणा के फिरोजपुर झिरका निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा के वर्तमान सदस्य (MLA) मम्मन खान को 31 जुलाई 2023 को नूंह जिले में बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद दर्ज दो प्रथम सूचना रिपोर्टों (FIR) में एक अभियुक्त के रूप में आरोपित किया गया था। 
  • सांप्रदायिक हिंसा के परिणामस्वरूप गंभीर विधिक-व्यवस्था की गड़बड़ी हुई, जान-माल का नुकसान हुआ और लोक व निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुँचा। दंगा, डकैती, रिष्टि और आपराधिक धमकी जैसे अपराधों के सिलसिले में कई व्यक्तियों को अभियुक्त बनाया गया। 
  • अन्वेषण के दौरान, प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 149 में 43 अभियुक्त सम्मिलित थे, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 150 में 28 अभियुक्त सम्मिलित थे। शुरुआत में सभी अभियुक्तों के लिये विचारण न्यायालय में संयुक्त कार्यवाही शुरू हुई। 
  • अभियोजन पक्ष का मामला कथित तौर पर सभी अभियुक्तों की संलिप्तता वाले एक व्यापक षड्यंत्र पर आधारित था। आरोप पत्र में कॉल डिटेल रिकॉर्ड, इलेक्ट्रॉनिक संसूचना, वीडियो फुटेज, साक्षियों के कथन और फोरेंसिक रिपोर्ट सहित साझा साक्ष्यों पर आधारित एक समेकित अन्वेषण दृष्टिकोण दर्शाया गया है। अभियोजन पक्ष ने सभी अभियुक्तों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर साझा साक्षियों और आपस में जुड़े सबूतों पर विश्वास किया। 
  • यद्यपि, दिनांक 28 अगस्त 2024 एवं 2 सितम्बर 2024 के आदेशों द्वारा, अतिरिक्त सेशन न्यायाधीश, नूंह ने थाना प्रभारी को मम्मन खान के विरुद्ध पृथक् आरोपपत्र दाख़िल करने का निदेश दिया तथा उनके विचारण को सह-अभियुक्तों के विचारण से पृथक् करने का आदेश पारित किया। यह पृथक्करण मुख्यतः इस आधार पर निदेशित किया गया कि खान वर्तमान में विधायक (MLA) हैं और उनके मामले का दैनिक आधार पर विचारण किया जाना आवश्यक है। 
  • इन निदेशों के अनुसरण में, खान के विरुद्ध अलग से आरोप पत्र दायर किये गए, 25 नवंबर 2024 को आरोप विरचित किये गए, और अभियोजन पक्ष के साक्ष्य शुरू हुए, जिनमें से कुछ साक्षियों की पहले ही परीक्षा हो चुकी थी। 
  • खान ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में CRM-M-61515/2024 एवं CRM-M-61516/2024 के अधीन आपराधिक विविध याचिकाएँ दायर करके, विचारण न्यायालय के आदेशों को रद्द करने की मांग करते हुए, पृथक्करण के आदेशों को चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2024 के एक साझा निर्णय में दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया और पृथक्करण को बरकरार रखा। 
  • इसके बाद, खान ने उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में वर्तमान अपील दायर की। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने पुनः पुष्टि की कि जहाँ दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 218 सामान्य नियम के रूप में पृथक् विचारण स्थापित करती है, वहीं धारा 223 (घ) एक ही संव्यवहार में सुभिन्न अपराधों के लिये संयुक्त विचारण की अनुमति देती है जिससे कार्यवाहियों की बहुलता को रोका जा सके और न्यायिक मितव्ययिता सुनिश्चित की जा सके। 
  • अभियोजन आवेदन या पूर्व सूचना के बिना, केवल अपीलकर्त्ता की विधायक स्थिति के आधार पर विचारण न्यायालय के स्वप्रेरणा से पृथक्करण आदेश (28.08.2024 और 02.09.2024) ने अनुच्छेद 21 की प्रक्रियात्मक निष्पक्षता आवश्यकताओं का उल्लंघन किया।  
  • नसीब सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामले में न्यायालय ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने फरार सह-अभियुक्तों के बजाय नियमित रूप से उपस्थित होने वाले अपीलकर्ता को अलग करके, देरी या पूर्वाग्रह पर निष्कर्ष दर्ज किए बिना, एक ही लेन-देन के मामलों में संयुक्त परीक्षणों के लिए वरीयता को उलट कर गलती की थी। 
  • इस पृथक्करण से अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि सभी अभियुक्त राजनीतिक स्थिति की परवाह किये बिना विधि के समक्ष समान हैं, और विधायक पद के आधार पर तरजीही व्यवहार समता के सिद्धांतों के विपरीत है, तथा निष्पक्ष विचारण के अधिकारों से समझौता करता है। 
  • विचारण न्यायालय ने पुलिस को पृथक्-पृथक् आरोप पत्र दाखिल करने का निदेश अनुचित रूप से दिया, क्योंकि यह विवेकाधिकार केवल अन्वेषण अभिकरणों के पास है, जबकि पृथक् विचारण से साक्ष्यों की पुनरावृत्ति होगी और असंगत निष्कर्षों का खतरा होगा। 
  • विधिक रूप से मान्यता प्राप्त औचित्य (विशिष्ट तथ्य, पृथक् करने योग्य साक्ष्य, या प्रदर्शित पूर्वाग्रह) के बिना पृथक्करण विधिक रूप से अस्थिर था और अनुच्छेद 21 के निष्पक्ष विचारण की प्रत्याभूति का उल्लंघन करता था, क्योंकि यह अभियान सिद्धांतों के गलत अनुप्रयोग पर आधारित था जो अनिवार्य संयुक्त विचारण मानदंडों पर अधिभावी नहीं होता था। 

अनुच्छेद 21 के अधीन निष्पक्ष विचारण की प्रत्याभूति क्या है? 

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21, जो यह प्रत्याभूत करता है कि "किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा," को न्यायिक रूप से विस्तारित करके निष्पक्ष विचारण के मौलिक अधिकार को भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया है।मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978) मामलेमें उच्चतम न्यायालय ने इस उपबंध को केवल भौतिक अस्तित्व की रक्षा से बदलकर सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने में परिवर्तित दिया, जिससे निष्पक्ष विचारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अनिवार्य घटक बन गई। 
  • अनुच्छेद 21 के अधीन निष्पक्ष विचारण के अधिकार में बारह मूल सिद्धांत सम्मिलित हैं जो सभी पक्षकारों के लिये न्याय सुनिश्चित करते हैं। इनमें अभियोजन पक्ष पर सबूत का भार डालने वाली प्रतिकूल विचारण प्रणाली, लैटिन सूक्ति " ei incumbit probatio qui dicit, non qui negat" से ली गई निर्दोषता की उपधारणा, और कार्यपालिका के प्रभाव से मुक्त एक स्वतंत्र, निष्पक्ष न्यायपालिका के समक्ष कार्यवाही सम्मिलित है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 228, 240, 246 और 251 में उल्लिखित उचित प्रक्रियाओं के माध्यम से अभियुक्त को आरोपों की जानकारी दी जानी चाहिये 
  • प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के अनुसार, अभियुक्त की उपस्थिति में विचारण चलाए जाएँ, साक्ष्य खुले तौर पर प्रस्तुत किए जाएँ, और प्रतिवादियों को अनुच्छेद 39क के अधीन निःशुल्क विधिक सहायता सहित पर्याप्त विधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त हो। यह ढाँचा अवैध गिरफ्तारी (दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50) को रोकने, विशेष रूप से कमजोर समूहों के लिये ज़मानत के अधिकार सुनिश्चित करने, दोहरे खतरे का निषेध करने, और अनुच्छेद 20(3) के अधीन आत्म-अभिसंशय के विरुद्ध सुरक्षा संरक्षण प्रदान करने वाले उपबंधों के माध्यम से राज्य के दुरुपयोग से सुरक्षा प्रदान करता है। 
  • ज़ाहिरा हबीबुल्लाह शेख बनाम गुजरात राज्य (2006) मामलेमें उच्चतम न्यायालय नेइस बात पर बल दिया कि निष्पक्ष विचारण का अर्थ है, निष्पक्ष न्यायाधीश के समक्ष और निष्पक्ष लोक अभियोजक के समक्ष न्यायिक शांति के माहौल में, पक्षपात या पूर्वाग्रह से मुक्त, कार्यवाही। निष्पक्ष विचारण से इंकार करना अभियुक्त, पीड़ित और समाज, दोनों के साथ अन्याय है।  
  • समकालीन चुनौतियों में न्यायिक विलंब और लंबित मामलों की संख्या सम्मिलित है, जिनका समाधान अनुच्छेद 32 (उच्चतम न्यायालय) और अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय) के अधीन सांविधानिक उपचारों के माध्यम से किया जाता है। यह अधिकार मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 10 सहित अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में न्याय प्रदान किया जाए और उसे निष्पक्ष रूप से माना जाए।