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सिविल कानून

भोग- बंधक और परिसीमा काल

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 29-Dec-2025

दलीप सिंह (मृतविधिक वारिस और अन्य बनाम सावन सिंह (मृतविधिक वारिस और अन्य 

"भोग-बंधकों मेंमोचन का परिसीमा काल बंधक निर्माण की तारीख से नहीं अपितु बंधक धन के संदाय या निविदा की तारीख से प्रारंभ होती है।" 

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

दलीप सिंह (मृतविधिक वारिस और अन्य बनाम सावन सिंह (मृतविधिक वारिस और अन्य (2025)के मामले में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन की पीठ नेबंधकदारों द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया और पुष्टि की कि भोग-बंधकों मेंमोचन की मांग करने का अधिकार बंधक धन के संदाय की तारीख से उत्पन्न होता हैन कि बंधक सृजन की तारीख से। 

दलीप सिंह (मृतविधिक वारिस और अन्य बनाम सावन सिंह (मृतविधिक वारिस और अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • अपीलकर्त्ता (मूल वादी) विवादित संपत्ति के बंधकदार थेजिसका क्षेत्रफल 114 कनाल और मरला था और जो तमकोट गाँवतहसील मानसाजिला बठिंडा में स्थित था। 
  • यह संपत्ति प्रत्यर्थियों (मूल प्रतिवादियों)के पूर्वजों द्वारा बंधक रखी गई थी। 
  • प्रत्यर्थियों/प्रतिवादियों ने बंधक मोचन करने के लिये बंधक मोचन अधिनियम, 1913 की धारा के अधीन एक आवेदन दायर किया। 
  • कलेक्टर ने दिनांक 17.09.1975 के आदेश द्वारा प्रत्यर्थियों/प्रतिवादियों के पक्ष में मोचन आवेदन को मंजूरी दे दी 
  • कलेक्टर के आदेश से व्यथित होकरअपीलकर्त्ताओं/वादियों ने मोचन आदेश को चुनौती देते हुए सिविल वाद संख्या 291/1975 दायर किया। 
  • विचारण न्यायालय ने 22.09.1976 के आदेश के माध्यम से वादी के पक्ष मेंवाद तय कियायह मानते हुए कि मोचन के लिये आवेदन परिसीमा से बाधित था और कलेक्टर के आदेश को अपास्त कर दिया। 
  • प्रत्यर्थियों/प्रतिवादियों ने अपर जिला न्यायाधीशबठिंडा के समक्ष सिविल अपील संख्या 107/ R.T. -99 ऑफ 76/77 में प्रथम अपील दायर कीजिसे दिनांक 24.12.1980 के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया। 
  • तत्पश्चात् प्रत्यर्थियों/प्रतिवादियों ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष नियमित द्वितीय अपील संख्या 1053/1981 दायर की।  
  • उच्च न्यायालय ने 18.09.2001 के आदेश द्वाराअपील को मंजूर करते हुएयह माना कि बंधक मोचन का अधिकार परिसीमा द्वारा वर्जित नहीं था और भूमि से प्राप्त आय से ऋण में किये गए समायोजन के आधार पर कार्यवाही का एक नया वाद-हेतुक उत्पन्न हुआ था। 
  • अपीलकर्त्ताओं/वादियों ने सिविल अपील संख्या 6084/2002 में उच्चतम न्यायालय के समक्ष इसे चुनौती दीजिसे प्रक्रियात्मक आधार पर दिनांक 16.04.2009 के आदेश द्वारा स्वीकार कर लिया गया। 
  • मामले कोपुनर्विचार के लिये उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया गयाक्योंकि उच्च न्यायालय अपील को स्वीकार करने से पहले विधि के सारवान् प्रश्नों को तैयार करने में असफल रहा था। 
  • विधि के सारवान् प्रश्नों को तैयार करने के बादपंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दिनांक 25.01.2010 के आदेश द्वारा प्रत्यर्थियों/प्रतिवादियों के पक्ष में अपील को फिर से मंजूर कर लिया। 
  • उच्च न्यायालय नेराम किशन और अन्य बनाम शिव राम और अन्य (2008)पर विश्वास करते हुए वादी के वाद को खारिज करने वाले कलेक्टर के दिनांक 17.09.1975 के आदेश को बहाल कर दिया। 

न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं? 

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सिंह राम (मृत) के विधि प्रतिनिधियों के माध्यम से बनाम श्यो राम और अन्य के मामले पर विश्वास करते हुए प्रतिवादियों द्वारा दायर अपील को मंजूर कर लिया और वादियों के वाद को खारिज कर दिया।  
  • न्यायालय ने सिंह राम मामले (2014) में तीन न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय का हवाला दियाजिसने भोग-बंधक संबंधी बंधकों में परिसीमा के संबंध में विधिक सिद्धांत स्थापित किया था। 
  • न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि भोग-बंधकों में, परिसीमा काल बंधक के निर्माण की तिथि से नहीं अपितु बंधक धन के संदाय की तिथि से प्रारंभ होती है। 
  • परिसीमा काल या तो भोग के अधिकार से संदाय करने परभाग के अधिकार से भागत: संदाय करने परया संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 52 के अधीन बंधककर्त्ता द्वारा भागत: संदाय या जमा करने पर प्रारंभ होती है। 
  • जब तक ऐसा संदाय या निविदा नहीं की जातीपरिसीमा अधिनियम की अनुसूची की धारा 61(क) के अधीन परिसीमा काल प्रारंभ नहीं होगा 
  • न्यायालय ने यह माना किविहित काल की समाप्ति मात्र से बंधककर्त्ता का मोचन का अधिकार समाप्त नहीं हो सकता, और इस प्रकार बंधक संपत्ति पर स्वामित्व और अधिकार की घोषणा की मांग करने का बंधकदार का अधिकार अप्रभावित रहता है। 
  • न्यायालय ने प्रत्यर्थियों के अधिवक्ता की इस दलील में दम पाया कि सिंह राम निर्णय के अनुपात को लागू करने से वादियों का वाद खारिज हो जाएगा और कलेक्टर का आदेश बहाल हो जाएगा। 
  • उच्चतम न्यायालय नेयाचिकाकर्त्ताओं द्वारा दायरअपील को खारिज कर दिया उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा और मुकदमे को खारिज कर दिया। 
  • अंतरिम स्थगन आदेश रद्द कर दिया गया और पक्षकारों को अपने-अपने खर्च वहन करने का निदेश दिया गया। 

भोग-बंधकक्या है ? 

बारे में: 

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 58 (के अनुसार बंधक कोकिसी विनिर्दिष्ट स्वावर संपत्ति में के किसी हित का वह अंतरण है जो उधार के तौर पर दिये गए या दिये जाने वाले धन के संदाय को या वर्तमान या भावी ऋण के संदाय की गा ऐसे वचनबंध का पालनजिससे धन संबंधी दायित्त्व पैदा हो सकता हैप्रतिभूत करने के प्रयोजन से किया जाता है। 
  • अंतरक बंधककर्त्ता और अंतरिती बंधकदार कहलाता हैमूलधन और ब्याजजिनका संदाय तत्समय प्रतिभूत हैबंधक धन कहलाते हैं और वह लिखत (यदि कोई हो)जिसके द्वारा अंतरण किया जाता है बंधक विलेख कहलाती है। 

बंधकों के प्रकार: 

  • भोग-बंधक: 
    • संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 58(मेंभोग-बंधक को परिभाषित किया गया है। 
    • इसमें कहा गया है कि जहाँ कि बंधककर्त्ता बंधक संपत्ति का कब्जा बंधकदार को परिदत्त कर देता है या परिदत्त करने के लिये अपने को अभिव्यक्त या विवक्षित तौर पर आबद्ध कर लेता है। और उसे प्राधिकृत करता है कि बंधक धन का संदाय किये जाने तक वह ऐसा कब्जा प्रतिधृत करे और उस संपत्ति में प्रोद्भुत भाटकों और लाभों को या ऐसे भाटकों और लाभों के किसी भाग को प्राप्त करे और उन्हें ब्याज मद्धे या बंधक धन के संदाय में या भागतः ब्याज मद्धे या भागतः बंधक धन के संदाय मेंविनियोजित कर ले, वहाँ वह संव्यवहार भोग-बंधक और वह बंधकदार भोग- बंधकदार कहलाता है 
    • एक ही संपत्ति पर एक ही समय में दो अलग-अलग भोग-बंधक नहीं हो सकतेक्योंकि संपत्ति का कब्ज़ा केवल एक ही व्यक्ति को दिया जा सकता है। 
    • इस प्रकार के बंधक मेंबंधकदार को स्वयं को ऋण चुकाने का लाभ होता है।