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महत्त्वपूर्ण संस्थान
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)
« »20-Feb-2024
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) क्या है?
यह राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 (NGT अधिनियम) के तहत स्थापित एक विशिष्ट निकाय है, इसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों का प्रभावी शीघ्र निपटान करना है।
- NGT की स्थापना के साथ भारत एक विशेष पर्यावरण अधिकरण स्थापित करने वाला विश्व का तीसरा (और पहला विकासशील) देश बन गया। इससे पहले केवल ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलैंड में ही ऐसे किसी निकाय की स्थापना की गई थी।
- NGT, पर्यावरण संबंधी मुद्दों के आवेदन अथवा अपील दाखिल होने के 6 महीने के भीतर उसका अंतिम रूप से निपटारा करने के लिये बाध्य है।
- NGT की बैठक का आयोजन पाँच स्थानों पर किया जाता है, जिसमें नई दिल्ली (मुख्यालय) बैठक आयोजित करने का प्रमुख स्थान है और अन्य चार स्थानों में भोपाल, पुणे, कोलकाता व चेन्नई शामिल हैं।
NGT की संरचना क्या है?
- संरचना :
- NGT में अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं। वे तीन वर्ष की अवधि अथवा पैंसठ वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक पद पर बने रहेंगे और पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।
- नियुक्ति:
- अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
- न्यायिक सदस्यों और विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति के लिये केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति का गठन किया जाता है।
- सदस्य:
- यह आवश्यक है कि अधिकरण में न्यूनतम 10 और अधिकतम 20 पूर्णकालिक न्यायिक सदस्य एवं पूर्णकालिक विशेषज्ञ सदस्य हों।
इसकी शक्तियाँ एवं अधिकारिता क्या हैं?
- विनियमन:
- NGT अधिनियम, 2010 की धारा 19 अधिकरण को अपनी स्वयं की प्रक्रिया को विनियमित करने का प्रावधान करती है।
- सिविल मामलों पर अधिकारिता:
- अधिकरण के पास पर्यावरण से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों (पर्यावरण से संबंधित किसी भी विधिक अधिकार के प्रवर्तन सहित) से संबंधित सभी सिविल मामलों पर निर्णय करने के अधिकारिता है।
- अक्तूबर 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने NGT को एक ‘विशिष्ट’ मंच के रूप में घोषित करते हुए निर्णय किया कि वह देश भर में पर्यावरणीय मुद्दों को उठाने हेतु ‘स्वत: संज्ञान’ (Suo Motu) लेने की शक्तियों से संपन्न है।
- अपीली अधिकारिता:
- न्यायालयों की समान एक वैधानिक निर्णायक निकाय होने कारण आवेदन दाखिल करने पर मूल अधिकारिता के अतिरिक्त NGT के पास एक न्यायालय (अधिकरण) के रूप में अपील पर सुनवाई करने की अपीलीय अधिकारिता भी है।
- नैसर्गिक न्याय :
- अधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता 1908, (CPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं है, किंतु यह 'नैसर्गिक न्याय' के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
- प्रदूषक भुगतान सिद्धांत:
- किसी भी आदेश/निर्णय/पंचाट की प्रक्रिया के दौरान, यह आवश्यक है कि NGT उस पर सतत् विकास, एहतियाती और प्रदूषक भुगतान आदि सिद्धांत क्रियान्वित करे।
- शक्ति:
- अधिकरण के आदेशानुसार-
- प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय नुकसान के (जिसके अंतर्गत किसी परिसंकटमय पदार्थ के हथालने के समय घटित दुर्घटना भी है) पीड़ित व्यक्तियों को अनुतोष और प्रतिकर का;
- क्षतिग्रस्त संपत्ति के प्रत्यास्थापन के लिये ;
- ऐसे क्षेत्र अथवा क्षेत्रों के लिये, जिन्हें अधिकरण ठीक समझे, पर्यावरण के प्रत्यास्थापन के लिये, उपबंध कर सकेगा।
- अधिकरण का आदेश/निर्णय/पंचाट सिविल न्यायालय के डिक्री के रूप में निष्पादन योग्य होता है।
- अधिकरण के आदेशानुसार-
- नियमों के उल्लंघन की दशा में दण्ड:
- एक निश्चित समय के लिये कारावास जिसे अधिकतम 3 वर्षों के लिये बढ़ाया जा सकता है।
- निश्चित आर्थिक दण्ड जिसे 10 करोड़ रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।
- कारावास और आर्थिक दण्ड दोनों।
- निर्णय के विरुद्ध अपील की प्रक्रिया:
- NGT द्वारा दिये गए आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में संप्रेषण की तिथि से 90 दिनों के भीतर अपील की जा सकती है।
- प्रमुख कानून:
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974,
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977,
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980,
- वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981,
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986,
- लोक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991 और
- जैवविविधता अधिनियम, 2002
- उपार्युक्त कानूनों से संबंधित किसी भी उल्लंघन अथवा इन कानूनों के तहत सरकार द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को NGT के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
NGT का महत्त्व क्या है?
- विगत वर्षों में NGT ने पर्यावरण के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और वनों की कटाई से लेकर अपशिष्ट प्रबंधन आदि के लिये सख्त नियमादेश पारित किये हैं।
- NGT ने पर्यावरण के क्षेत्र में न्याय के लिये एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र स्थापित करके नई दिशा प्रदान की है।
- इससे उच्च न्यायालयों में पर्यावरण संबंधी मामलों का बोझ कम हुआ है।
- पर्यावरण संबंधी मुद्दों का निपटारा करने के लिये NGT एक अनौपचारिक, मितव्ययी एवं तेज़ी से कार्य करने वाला तंत्र है।
- यह पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- चूँकि, अधिकरण का कोई भी सदस्य पुनः नियुक्ति के योग्य नहीं होता है और इसीलिये वह बिना किसी भय के स्वतंत्रता-पूर्वक निर्णय सुना सकता है।
- NGT यह सुनिश्चित करने में सहायक रही है कि पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रिया का कड़ाई से पालन किया जाए।
मामलों का शीघ्र निपटारा करने हेतु आवश्यक कदम:
- त्वरित निर्णय लेने से कानूनी विवादों में शामिल दोनों पक्षों को लाभ होता है और पहले से ही हुई क्षति की भरपाई करने के बजाय पर्यावरण को संभावित नुकसान को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
- आदेश जारी करने तथा ई-मेल के माध्यम से प्रतिक्रिया मांगने से विशेष रूप से समय की बचत होती है और अधिकरण को समय पर निर्णय लेने की अनुमति मिलती है।
- चेन्नई, पुणे, भोपाल व कोलकाता में स्थित क्षेत्रीय पीठें, न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्यों की अपर्याप्त उपस्थिति के कारण, नई दिल्ली में प्रधान पीठ वादकारियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अन्य न्यायालयों के आवेदनों की सुनवाई कर रही हैं।
NGT के कार्यप्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ:
- नियंत्रण:
- दो महत्त्वपूर्ण अधिनियमों - वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 को NGT के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
- यह NGT के अधिकार क्षेत्र को प्रतिबंधित करता है और कई बार इसके कार्यप्रणाली को भी बाधित करता है क्योंकि वन से संबंधित महत्त्वपूर्ण अधिकार के मुद्दे सीधे पर्यावरण से जुड़े होते हैं।
- स्पष्टता का अभाव:
- NGT के फैसलों को विभिन्न उच्च न्यायालयों में अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालयों की रिट जारी करने की शक्ति) के तहत चुनौती दी गई है, जिसमें कई लोग NGT पर उच्च न्यायालय की श्रेष्ठता पर ज़ोर देते हुए दावा करते हैं कि ‘उच्च न्यायालय एक संवैधानिक निकाय है जबकि NGT एक वैधानिक निकाय है।’ यह अधिनियम की कमज़ोरियों में से एक है क्योंकि इसमें, इस बारे में स्पष्टता की कमी है कि किस तरह के निर्णयों को चुनौती दी जा सकती है; भले ही NGT एक्ट के मुताबिक उसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
- आर्थिक वृद्धि और विकास पर उनके नतीजों के कारण NGT के फैसलों की भी आलोचना हुई है तथा उसके समक्ष अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई है।
- मुआवज़े के लिये सूत्र:
- मुआवज़े के निर्धारण में एक सूत्र आधारित तंत्र की अनुपस्थिति ने भी अधिकरण की आलोचना की है।
- अन्य कमियाँ:
- NGT द्वारा दिये गए निर्णयों का हितधारकों या सरकार द्वारा पूरी तरह से अनुपालन नहीं किया जाता है। कभी-कभी इसके निर्णयों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर लागू करने के लिये व्यवहार्य नहीं बताया जाता है।
- मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण मामले काफी समय तक लंबित रहे हैं- जो 6 महीने के भीतर अपील के निपटान के NGT के उद्देश्य को बाधित करता है।
- सीमित संख्या में क्षेत्रीय न्यायपीठों की उपस्थिति के कारण न्याय प्रदान करने का तंत्र भी बाधित है।
NGT के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?
- अलमित्रा एच. पटेल बनाम भारत संघ (2012):
- इस मामले में, NGT ने लैंडफिल सहित भूमि पर कचरे को खुले में जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध आरोपित करने का फैसला दिया, इसे भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे से निपटने वाला सबसे बड़ा ऐतिहासिक मामला माना जाता है।
- श्रीनगर बाँध आपदा संघर्ष समिति बनाम अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड (2013):
- इस मामले में, अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड को याचिकाकर्ता को मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया था – यहाँ, NGT ने स्पष्ट तौर पर, 'प्रदूषक भुगतान करता है' के सिद्धांत का पालन किया।
- सेव मोन फेडरेशन बनाम भारत संघ मामला (2013):
- इस मामले में, NGT ने एक पक्षी के आवास को बचाने के लिये 6,400 करोड़ रुपये की पनबिजली परियोजना को निलंबित कर दिया।
- वर्धमान कौशिक और अन्य बनाम भारत संघ (2015):
- 2015 में, NGT ने आदेश दिया कि 10 साल से अधिक पुराने सभी डीज़ल वाहनों को दिल्ली-NCR में परिवहन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- प्लास्टिक पर प्रतिबंध:
- NGT ने 2017 में दिल्ली में 50 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक बैग पर अंतरिम प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि ‘वे जानवरों की मौत का कारण बन रहे थे, सीवरों में फँसकर अवरोध उत्पन्न कर रहे थे और पर्यावरण को हानि पहुँचा रहे थे’।
- एन.जी. सोमन बनाम भारत पेट्रोलियम कंपनी लिमिटेड, कोच्चि और अन्य, (2022):
- NGT ने अवैज्ञानिक तौर पर बनाए गए ग्रीनबेल्ट के लिये भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कोच्चि रिफाइनरी पर 2 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाया।