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आपराधिक कानून

आत्महत्या के लिये उकसाने का अपराध

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 04-Apr-2024

निशा साकेत बनाम मध्य प्रदेश राज्य

आत्महत्या के लिये उकसाने के मामलों में, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों या आत्महत्या के लिये उकसाने का साक्ष्य होना चाहिये।

न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह आलूवालिया

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निशा साकेत बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में माना है कि आत्महत्या के लिये उकसाने के मामलों में, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों या आत्महत्या के लिये उकसाने का साक्ष्य होना चाहिये।

निशा साकेत बनाम मध्य प्रदेश राज्य, मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष, सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध एक आपराधिक पुनरीक्षण दायर किया गया है, जिसमें आवेदक के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 306 के अधीन आरोप तय किया गया है।
  • निर्विवाद तथ्य यह है कि आवेदक मृतक प्रीतम साकेत की पत्नी है, जबकि प्रतिवादी श्रीमती राधा बाई, आवेदक की सास है।
  • यह आरोप लगाया गया था कि आवेदक ने अपने ससुराल वालों के साथ अच्छे संबंध नहीं बनाए रखे तथा अपने पति की उचित देखभाल करने में विफल रही। ऐसे उदाहरण थे, जहाँ वह अपने पति के लिये समय पर खाना नहीं बनाती थी, जिसके कारण कभी-कभी उसे बिना खाए ही काम पर जाना पड़ता था।
  • उच्च न्यायालय ने सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए क्रिमिनल रिवीज़न की अनुमति दे दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह आलूवालिया की पीठ ने कहा कि पत्नी का समय पर भोजन न बनाना, पति को घर का काम करने के लिये विवश करना तथा खरीदारी के लिये अन्य व्यक्तियों के साथ बाज़ार जाना, आत्महत्या के लिये उकसाने का अपराध नहीं बनता है।

  • आगे यह माना गया कि आत्महत्या के लिये उकसाने के मामलों में, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों या आत्महत्या के लिये उकसाने का साक्ष्य होना चाहिये। कृत्यों में मानव व्यवहार एवं प्रतिक्रियाओं के बहुआयामी और जटिल गुण शामिल होते हैं या उकसावे के मामलों में, न्यायालय को आत्महत्या के लिये उकसाने के कृत्यों के तर्कपूर्ण एवं विश्वसनीय साक्ष्य की खोज करनी चाहिये।

IPC की धारा 306 क्या है?

  • परिचय:
    • IPC की धारा 306, आत्महत्या के लिये उकसाने से संबंधित है, जबकि यही प्रावधान भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 108 के अधीन शामिल किया गया है।
    • इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी ऐसी आत्महत्या के लिये उकसाएगा, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिसे दस वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है, तथा ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है
    • उपरोक्त प्रावधान को पढ़ने से पता चलता है कि IPC की धारा 306 के अधीन अपराध के लिये दोहरी आवश्यकताएँ, आत्महत्या व आत्महत्या के लिये उकसाना हैं।
    • आत्महत्या को दण्डनीय नहीं बनाया गया है, इसलिये नहीं कि आत्महत्या का अपराध दोषपूर्ण नहीं है, बल्कि इसलिये कि दोषी व्यक्ति पर किसी भी अभियोग को लगाए जाने से पूर्व उसकी मृत्यु हो चुकी होगी।
    • जबकि आत्महत्या के लिये उकसाने को विधि द्वारा बहुत गंभीरता से देखा जाता है।
  • निर्णयज विधि :
    • रणधीर सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य (2004) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि उकसावे में किसी व्यक्ति को उकसाने या किसी काम को करने में जानबूझकर उस व्यक्ति की सहायता करने की मानसिक प्रक्रिया शामिल है। साज़िश के मामलों में भी इसमें उस चीज़ को करने के लिये साज़िश में शामिल होने की मानसिक प्रक्रिया शामिल होगी।
      • IPC की धारा 306 के अधीन किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिये उकसाने से पहले एक अधिक सक्रिय भूमिका की आवश्यकता होती है, जिसे किसी काम को करने के लिये उकसाने या सहायता करने के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
    • अमलेंदु पाल @ झंटू बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2010) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायालय ने लगातार यह विचार किया है कि किसी आरोपी को IPC की धारा 306 के अधीन अपराध का दोषी ठहराने से पहले, न्यायालय को ईमानदारीपूर्वक जाँच करनी चाहिये। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों और उसके सामने पेश किये गए साक्ष्यों का भी आकलन करना चाहिये, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या पीड़िता के साथ हुई क्रूरता एवं उत्पीड़न के कारण पीड़िता के पास अपने जीवन को समाप्त करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था।