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सिविल कानून

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 29 A

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 11-Dec-2023

यूमैक्स प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम AIR फोर्स नेवल हाउसिंग बोर्ड, OMP (COMM)

"केवल माध्यस्थम् कार्यवाही में किसी पक्ष की भागीदारी को A एंड C अधिनियम की धारा 12(5) के तहत अधित्यजन नहीं माना जा सकता है।"

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि धारा 29(A) के तहत आवेदन दाखिल करना माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 12(5) के तहत मध्यस्थ की अपात्रता को चुनौती देने के अधिकार की लिखित अधित्यजन के समान नहीं है।

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह निर्णय यूमैक्स प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम AIR फोर्स नेवल हाउसिंग बोर्ड, OMP(COMM) मामले में दिया।

यूमैक्स प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम AIR फोर्स नेवल हाउसिंग बोर्ड, OMP(COMM) मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • याचिकाकर्ता ने विभिन्न परियोजनाओं के लिये एक ही मध्यस्थ द्वारा दिये गए दो अंतिम मध्यस्थ पंचाटों को रद्द करने के लिये माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत याचिका दायर की।
  • प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के सक्रिय कदमों के माध्यम से अंतर्निहित अधित्यजन हो सकती है, जैसे कि मध्यस्थ के अधिदेश के विस्तार के लिये धारा 29(A) के तहत आवेदन दाखिल करना और कुछ निर्णयों पर याचिकाकर्ता की निर्भरता का विरोध करना, यह तर्क देते हुए कि धारा 29(A) के तहत आवेदन दाखिल करना अधित्यजन के समान है।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता की आपत्तियों को अधित्यजन नहीं किया गया, याचिकाओं को स्वीकार करते हुए और पंचाटों को रद्द कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • धारा 29(A) के तहत आवेदन दाखिल करना A एंड C अधिनियम, 1996 की धारा 12(5) के तहत मध्यस्थ की अपात्रता को चुनौती देने के अधिकार की लिखित अधित्यजन के बराबर नहीं है।
  • जागरूकता और आपत्ति के अधिकार की सचेत अधित्यजन का संकेत देने वाले प्रत्यक्ष कार्य के बिना, केवल मध्यस्थता कार्यवाही में भागीदारी पर्याप्त नहीं है।

यूमैक्स प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम AIR फोर्स नेवल हाउसिंग बोर्ड, OMP(COMM) मामले के तहत क्या कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

  • धारा 29(A): माध्यस्थम् पंचाट हेतु समय सीमा:
  • (1) अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् के अतिरिक्त अन्य मामलों में पंचाट माध्यस्थम् न्यायाधिकरण द्वारा धारा 23 की उप-धारा (4) के तहत दलीलें पूरी होने की तिथि से बारह महीने की अवधि के भीतर दिया जाएगा:
  • बशर्ते कि अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् के मामले में पंचाट यथासंभव शीघ्रता से दिया जाए और धारा 23 की उप-धारा (4) के तहत दलीलें पूरी होने की तिथि से बारह माह की अवधि के भीतर मामले का निपटान करने का प्रयास किया जाए।
  • (2) यदि पंचाट उस तिथि से छह महीने की अवधि के भीतर दिया जाता है जब माध्यस्थम् न्यायाधिकरण संदर्भ में प्रवेश करता है, तो माध्यस्थम् न्यायाधिकरण उतनी अतिरिक्त फीस प्राप्त करने का हकदार होगा जितने पर पार्टियाँ सहमत हो सकती हैं।
  • (3) पार्टियों द्वारा, सहमति से, पंचाट देने के लिये उप-धारा (1) में निर्दिष्ट अवधि को छह महीने से अधिक की अतिरिक्त अवधि नहीं दी जाएगी।
  • (4) यदि उप-धारा (1) में निर्दिष्ट अवधि या उप-धारा (3) के तहत निर्दिष्ट विस्तारित अवधि के भीतर पंचाट नहीं दिया जाता है, तो माध्यस्थम्(ओं) का अधिदेश तब तक समाप्त हो जाएगा, जब तक कि न्यायालय ने निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पहले या बाद में अवधि नहीं बढ़ा दी हो:
  • बशर्ते कि इस उप-धारा के तहत अवधि बढ़ाते समय, यदि न्यायालय को पता चलता है कि माध्यस्थम् न्यायाधिकरण से संबंधित कारणों से कार्यवाही में देरी हुई है, तो ऐसी देरी के प्रत्येक महीने के लिये वह माध्यस्थम्ओं की फीस में पाँच प्रतिशत से अधिक की कटौती का आदेश दे सकती है।
  • बशर्ते कि जहाँ उप-धारा (5) के तहत एक आवेदन लंबित है, माध्यस्थम् का आदेश उक्त आवेदन के निपटान तक जारी रहेगा:
  • बशर्ते यह भी कि फीस कम करने से पूर्व माध्यस्थम् को सुनवाई का अवसर दिया जाएगा।

(5) उप-धारा (4) में निर्दिष्ट अवधि का विस्तार किसी भी पक्ष के आवेदन पर हो सकता है तथा केवल पर्याप्त कारण और ऐसे नियमों एवं शर्तों पर दिया जा सकता है जो न्यायालय द्वारा लगाए जा सकते हैं।

 6) उप-धारा (4) में निर्दिष्ट अवधि का विस्तार करते समय, न्यायालय के पास एक या सभी मध्यस्थों को प्रतिस्थापित करने का अधिकार होगा और यदि एक या सभी मध्यस्थों को प्रतिस्थापित किया जाता है, तो मध्यस्थ कार्यवाही पूर्व से ही प्राप्त चरण से और रिकॉर्ड पर मौज़ूद साक्ष्य और सामग्री के आधार पर जारी रहेगी तथा इस धारा के तहत नियुक्त मध्यस्थों को उक्त साक्ष्य और सामग्री प्राप्त हुआ माना जाएगा।

(7) इस धारा के तहत मध्यस्थ नियुक्त किये जाने की स्थिति में, इस प्रकार पुनर्गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण को पहले से नियुक्त मध्यस्थ न्यायाधिकरण की निरंतरता में माना जाएगा।

(8) इस धारा के तहत किसी भी पक्ष पर वास्तविक या अनुकरणीय लागत लगाने के लिये न्यायालय खुली होगी।

(9) उप-धारा (5) के तहत दायर एक आवेदन को न्यायालय द्वारा यथासंभव शीघ्रता से निपटाया जाएगा और विपक्षी पक्ष को नोटिस दिये जाने की तिथि से साठ दिनों की अवधि के भीतर मामले को निपटाने का प्रयास किया जाएगा।

धारा 12: आक्षेप के लिये आधार:

(1) जहाँ किसी व्यक्ति से किसी मध्यस्थ के रूप में उसकी संभावित नियुक्ति के संबंध में प्रस्ताव किया जाता है तो वहाँ वह किसी ऐसी परिस्थिति को लिखित रूप में प्रकट करेगा जिससे उसकी स्वतंत्रता या निष्पक्षता के बारे में उचित शंकाएँ उठने की संभावना हो ।

(2) कोई मध्यस्थ, अपनी नियुक्ति के समय से और संपूर्ण माध्यस्थम् कार्यवाहियों के दौरान, विलंब के बिना पक्षकारों को उपधारा (1) में निर्दिष्ट किन्हीं परिस्थितियों को लिखित रूप में तब प्रकट करेगा जब तक कि उसके द्वारा उनके बारे में पहले ही सूचित न कर दिया गया हो।

स्पष्टीकरण 1: पाँचवीं अनुसूची में बताए गए आधार यह निर्धारित करने में मार्गदर्शन करेंगे कि क्या ऐसी परिस्थितियाँ मौजूद हैं जो मध्यस्थ की स्वतंत्रता या निष्पक्षता के बारे में तर्कसंगत संदेह उत्पन्न करती हैं।

स्पष्टीकरण 2: प्रकटीकरण ऐसे व्यक्ति द्वारा छठी अनुसूची में निर्दिष्ट प्रपत्र में किया जाएगा।

(3) किसी मध्यस्थ पर केवल तभी आक्षेप किया जा सकेगा, यदि-

(a) ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हों जो उसकी स्वतंत्रता या निष्पक्षता के बारे में उचित शंकाओं को उत्पन्न करती हों, या

(b) उसके पास पक्षकारों द्वारा तय की गई अहर्ताएँ न हों।

(4) कोई पक्षकार, ऐसे किसी मध्यस्थ पर, जो उसके द्वारा नियुक्त हो या जिसकी नियुक्ति में उसने भाग लिया हो, केवल उन कारणों से जिनसे वह नियुक्ति किये जाने के पश्चात् अवगत होता है, आक्षेप कर सकेगा ।

(5) इसके विपरीत किसी भी पूर्व समझौते के बावजूद, कोई भी व्यक्ति जिसका संबंध, पक्षों या वकील या विवाद की विषय-वस्तु के साथ, सातवीं अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी श्रेणी के अंतर्गत आता है, मध्यस्थ के रूप में नियुक्त होने के लिये अयोग्य होगा। :

बशर्ते कि पक्ष, उनके बीच उत्पन्न होने वाले विवादों के बाद, लिखित रूप में एक स्पष्ट समझौते द्वारा इस उप-धारा की प्रयोज्यता को माफ कर सकते हैं।

इस मामले में उद्धृत ऐतिहासिक निर्णय क्या है?

  • भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड बनाम यूनाइटेड टेलीकॉम लिमिटेड (2017):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने माना कि मध्यस्थ की अपात्रता पर आपत्ति किये बिना किसी पक्ष द्वारा बचाव का बयान दाखिल करना धारा 12(5) के तहत अधित्यजन के समान होगा, जो प्रतिवादी के मामले में सहायक नहीं है। अपात्रता के बारे में पता चलने के बाद अधित्यजन को लिखित रूप में व्यक्त किया जाना चाहिये।