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अंतर्राष्ट्रीय कानून

भारत-नेपाल व्यापार संबंधों में वृद्धि

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 18-Nov-2025

स्रोत:द हिंदू 

परिचय 

14 नवंबर, 2025 को, भारत और नेपाल ने दोनों देशों के बीच पारगमन संधि में संशोधन करके अपनी आर्थिक भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और नेपाल के उद्योग, वाणिज्य एवं आपूर्ति मंत्री अनिल कुमार झा ने इस महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक और आर्थिक मील के पत्थर को औपचारिक रूप देने के लिये नई दिल्ली में मुलाकात की। 

  • इस संशोधन का उद्देश्य भारत में जोगबनी और नेपाल में विराटनगर के बीच रेल-आधारित माल ढुलाई को सुगम बनाना है, जिसमें थोक माल परिवहन के प्रावधान भी सम्मिलित हैं। यह उदारीकरण प्रमुख पारगमन गलियारों तक विस्तारित है, जो भारत-नेपाल व्यापार संबंधों में एक नए युग का सूत्रपात करता है। 

पारगमन संधि क्या है? 

परिभाषा और उद्देश्य: 

  • पारगमन संधि दो या दो से अधिक देशों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय करार है जो उनके क्षेत्रों से होकर माल के आवागमन को नियंत्रित करता है। 
  • माल की सीमा पार आवाजाही के लिये विधिक ढाँचा स्थापित करता है। 
  • यह भू-आबद्ध और तटीय देशों के बीच माल के सुचारू, पूर्वानुमानित और सुरक्षित परिवहन को सुनिश्चित करता है। 

ऐतिहासिक संदर्भ: 

  • भारत और नेपाल के बीच पारगमन संधि द्विपक्षीय व्यापार संबंधों की आधारशिला रही है। 
  • नेपाल एक स्थलरुद्ध देश होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुँच के लिये भारत से होकर गुजरने वाली पारगमन सुविधाओं पर बहुत अधिक निर्भर करता है। 
  • यह संधि नेपाल को भारतीय बंदरगाहों तक पहुँच प्रदान करती है तथा तीसरे देशों के साथ व्यापार को सुगम बनाती है। 

महत्त्व: 

  • क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देता है। 
  • व्यापार बाधाओं और परिवहन लागत को कम करता है। 
  • पड़ोसी देशों के बीच राजनयिक और वाणिज्यिक संबंधों को मजबूत करता है। 

संशोधन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? 

रेल-आधारित माल ढुलाई उदारीकरण: 

  • प्राथमिक फोकस: जोगबनी (भारत) और विराटनगर (नेपाल) के बीच रेल माल ढुलाई को सुविधाजनक बनाना। 
  • इसमें थोक माल परिवहन के प्रावधान शामिल हैं। 
  • इसका उद्देश्य सड़क परिवहन पर निर्भरता कम करना और दक्षता में सुधार करना है। 

विस्तारित पारगमन गलियारे: 

संशोधन विशेष रूप से प्रमुख पारगमन मार्गों को उदार बनाता है: 

कोलकाता-जोगबनी मार्ग: 

  • यह नेपाल को भारत के प्रमुख बंदरगाह शहर कोलकाता से जोड़ता है। 
  • नेपाल को समुद्री व्यापार सुविधाओं तक सीधी पहुँच प्रदान करता है। 
  • पारगमन समय और रसद लागत कम हो जाती है। 

रक्सौल-नौतनवा कॉरिडोर (सुनौली) (Raxaul-Nautanwa Corridor (Sunauli)): 

  • उत्तरी भारत और नेपाल के बीच संपर्क को बढ़ाता है। 
  • यह अनेक प्रवेश बिंदुओं के माध्यम से माल की आवाजाही को सुगम बनाता है। 

विशाखापत्तनम-नौतनवा (सुनौली) मार्ग (Visakhapatnam-Nautanwa (Sunauli) Route): 

  • यह नेपाल को भारत के पूर्वी तटीय बंदरगाह विशाखापत्तनम से जोड़ता है। 
  • नेपाली व्यापार के लिये बंदरगाह पहुँच विकल्पों में विविधता लाना। 

बहुविध व्यापार संपर्क (Multimodal Trade Connectivity): 

  • यह संशोधन रेल, सड़क और बंदरगाह अवसंरचना को एकीकृत करके बहुविध व्यापार संपर्क को मजबूत करता है। 
  • विभिन्न परिवहन साधनों के माध्यम से माल की निर्बाध आवाजाही को सक्षम बनाता है। 
  • आपूर्ति श्रृंखलाओं की समग्र दक्षता में सुधार होता है। 

तीसरे देशों के साथ व्यापार में वृद्धि:  

  • सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, इस उदारीकरण से भारतीय पारगमन सुविधाओं के माध्यम से नेपाल को तीसरे देशों के साथ व्यापार करने में सुविधा होगी। 
  • यह भारत को स्थल-आबद्ध नेपाल के लिये एक महत्त्वपूर्ण व्यापार सुविधाकर्ता के रूप में स्थापित करता है। 
  • क्षेत्रीय व्यापार संरचना में भारत की भूमिका को मजबूत करता है। 

इस संशोधन के क्या लाभ हैं? 

नेपाल के लिये: 

  • बेहतर बाजार पहुँच:भारतीय बंदरगाहों तक बेहतर कनेक्टिविटी से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सुविधा होगी। 
  • लागत में कमी:थोक माल के लिये रेल परिवहन सामान्यत: सड़क परिवहन की तुलना में अधिक लागत प्रभावी है। 
  • विविध मार्ग:बहुल पारगमन गलियारे एकल मार्ग पर निर्भरता को कम करते हैं और व्यापार सुरक्षा को बढ़ाते हैं। 
  • आर्थिक विकास:बेहतर व्यापारिक अवसंरचना औद्योगिक विकास और आर्थिक विस्तार को ढ़ावा देती है। 

भारत के लिये: 

  • क्षेत्रीय प्रभाव को मजबूत करना:क्षेत्रीय व्यापार सुविधा के लिये भारत को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थापित करना। 
  • रेल माल ढुलाई राजस्व में वृद्धि:भारतीय रेलवे के माध्यम से अधिक माल की आवाजाही से आर्थिक लाभ उत्पन्न होता है। 
  • रणनीतिक भागीदारी:महत्त्वपूर्ण पड़ोसी के साथ आर्थिक संबंधों को गहरा करना। 
  • क्षेत्रीय स्थिरता:आर्थिक सहयोग राजनीतिक और रणनीतिक स्थिरता में योगदान देता है। 

द्विपक्षीय संबंधों के लिये: 

  • संवर्धित सहयोग:व्यापार सुविधा से विश्वास बढ़ता है और राजनयिक संबंध मजबूत होते हैं। 
  • लोगों से लोगों के बीच संपर्क:बेहतर व्यापारिक बुनियादी ढाँचे से दोनों पक्षों के व्यवसायों और समुदायों को लाभ होता है। 
  • भावी सहयोग की नींव:आगे आर्थिक एकीकरण के लिये रूपरेखा तैयार करता है। 

कार्यान्वयन रूपरेखा क्या है? 

प्रोटोकॉल संशोधन प्रक्रिया: 

  • दोनों देशों के मंत्रियों ने पारगमन संधि के प्रोटोकॉल में संशोधन हेतु पत्रों का आदान-प्रदान किया। 
  • औपचारिक राजनयिक प्रक्रिया संशोधनों की विधिक वैधता सुनिश्चित करती है। 
  • दोनों सरकारें परिवर्तनों को शीघ्रता से लागू करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। 

बुनियादी ढाँचे की आवश्यकताएँ: 

  • सीमावर्ती स्थानों पर रेल माल ढुलाई सुविधाओं का विकास। 
  • सीमा शुल्क और आव्रजन बुनियादी ढाँचे का उन्नयन। 
  • भारतीय रेलवे और नेपाल रेलवे के बीच समन्वय तंत्र। 
  • ट्रैकिंग और दस्तावेज़ीकरण के लिये प्रौद्योगिकी एकीकरण। 

नियामक ढाँचा: 

  • सीमा शुल्क प्रक्रियाओं का सामंजस्य। 
  • सरलीकृत दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताएँ।  
  • कार्गो हैंडलिंग और निरीक्षण के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल। 
  • विवाद समाधान तंत्र।  

रणनीतिक निहितार्थ क्या हैं? 

क्षेत्रीय व्यापार संरचना: 

  • यह संशोधन व्यापक दक्षिण एशियाई आर्थिक एकीकरण प्रयासों के अनुकूल है। 
  • यह पड़ोसी-प्रथम नीति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 
  • यह भूटान जैसे अन्य स्थलबद्ध पड़ोसियों के साथ इसी प्रकार के करारों के लिये आदर्श के रूप में कार्य कर सकता है। 

चीन कारक: 

  • भारत-नेपाल व्यापार संपर्क में वृद्धि, नेपाल में बढ़ती चीनी आर्थिक उपस्थिति का विकल्प प्रदान करती है। 
  • नेपाल के साथ मजबूत आर्थिक संबंध बनाए रखने का रणनीतिक महत्त्व 
  • दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में संतुलन स्थापित करना। 

आर्थिक कॉरिडोर विकास:  

  • ये पारगमन मार्ग दक्षिण एशिया में उभरते आर्थिक कॉरिडोरों का भाग हैं। 
  • भविष्य में ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे अन्य क्षेत्रों को सम्मिलित करने के लिये विस्तार की संभावना। 
  • एकीकृत क्षेत्रीय विकास के लिये फाउंडेशन। 

आगे क्या चुनौतियाँ हैं? 

कार्यान्वयन चुनौतियाँ: 

  • बुनियादी ढाँचे की कमी:मौजूदा रेल और बंदरगाह बुनियादी ढाँचे को महत्त्वपूर्ण उन्नयन की आवश्यकता हो सकती है। 
  • नौकरशाही समन्वय:प्रभावी कार्यान्वयन के लिये कई एजेंसियों के बीच निर्बाध समन्वय की आवश्यकता होती है। 
  • क्षमता संबंधी बाधाएँ:बढ़ी हुई माल मात्रा को संभालने के लिये रेल माल ढुलाई क्षमता में विस्तार की आवश्यकता हो सकती है। 

विनियामक सामंजस्य: 

  • भिन्न मानक:भारत और नेपाल के तकनीकी और सुरक्षा मानक भिन्न हो सकते हैं। 
  • दस्तावेज़ीकरण जटिलता:सुरक्षा बनाए रखते हुए कागजी कार्रवाई को सरल बनाना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। 
  • सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ:सीमा बिंदुओं पर कुशल निकासी प्रक्रिया सुनिश्चित करना। 

भू-राजनीतिक विचार: 

  • तृतीय-पक्ष संवेदनशीलताएँ:अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ियों की चिंताओं का प्रबंधन। 
  • राजनीतिक स्थिरता:कार्यान्वयन दोनों देशों के बीच स्थिर राजनीतिक संबंधों पर निर्भर करता है। 
  • स्थानीय चिंताएँ:माल ढुलाई में वृद्धि से प्रभावित स्थानीय समुदायों की चिंताओं का समाधान करना। 

निष्कर्ष

भारत और नेपाल के बीच पारगमन संधि में संशोधन द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। रेल-आधारित माल ढुलाई को उदार बनाकर और पारगमन कॉरिडोर का विस्तार करके, दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय एकीकरण के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है। 

कोलकाता-जोगबनी, रक्सौल-नौतनवा और विशाखापत्तनम-नौतनवा मार्गों के माध्यम से बेहतर संपर्क सुविधा बहुविध व्यापार अवसंरचना को मज़बूत करेगी और नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच सुगम बनाएगी। यह विकास न केवल द्विपक्षीय व्यापार को लाभ पहुँचाएगा, अपितु दक्षिण एशिया में व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण में भी योगदान देगा।