एडमिशन ओपन: UP APO प्रिलिम्स + मेंस कोर्स 2025, बैच 6th October से   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)   |   अपनी सीट आज ही कन्फर्म करें - UP APO प्रिलिम्स कोर्स 2025, बैच 6th October से










होम / भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता

आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 193

    «
 17-Nov-2025

परिचय 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 193 पुलिस अधिकारियों के लिये अन्वेषण समाप्त करने और मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के दौरान पालन करने हेतु व्यापक दिशानिर्देश स्थापित करती है। यह धारा समय पर अन्वेषण, पारदर्शी संसूचना और व्यवस्थित दस्तावेज़ीकरण पर बल देती है जिससे सभी संबंधित पक्षकारों के अधिकारों की रक्षा करते हुए कुशलतापूर्वक न्याय सुनिश्चित किया जा सके। 

अन्वेषण का समय पर समाप्त होना 

  • विधि यह अनिवार्य करती है कि प्रत्येक अन्वेषण "अनावश्यक विलंब के बिना" समाप्त किया जाए, जिससे शीघ्र न्याय का एक सामान्य सिद्धांत स्थापित होता है। यद्यपि, भारतीय न्याय संहिता (धारा 64-71) के अधीन लैंगिक अपराधों और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अधीन बाल लैंगिक शोषण से संबंधित गंभीर अपराधों के लिये, विधि मामला दर्ज होने की तारीख से दो मास की कठोर समय सीमा निर्धारित करती है। 
  • यह समयबद्ध दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि संवेदनशील मामलों पर तत्काल ध्यान दिया जाए और पीड़ितों को न्याय के लिये अनिश्चित काल तक इंतजार न करना पड़े। 

व्यापक पुलिस रिपोर्ट की आवश्यकताएँ 

  • अन्वेषण समाप्त होने के पश्चात्, भारसाधक अधिकारी को मजिस्ट्रेट को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसे त्वरित प्रक्रिया के लिये इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित किया जा सकता है। 
  • इस रिपोर्ट में आवश्यक जानकारी सम्मिलित होनी चाहिये, जैसे कि सभी संबंधित पक्षकारों के नाम, परिवाद की प्रकृति, मामले की परिस्थितियों से परिचित साक्षी, तथा क्या कोई अपराध किया गया है और किसके द्वारा किया गया है। 
  • रिपोर्ट में यह भी बताना होगा कि अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया है, जमानत पर रिहा किया गया है या अभिरक्षा में भेज दिया गया है। लैंगिक अपराध के मामलों में, चिकित्सा परीक्षा रिपोर्ट संलग्न करनी होगी। 
  • इसके अतिरिक्त, जब इलेक्ट्रॉनिक उपकरण साक्ष्य के रूप में सम्मिलित हों, तो डिजिटल साक्ष्य की अखंडता सुनिश्चित करने के लिये रिपोर्ट में अभिरक्षा की पूरी श्रृंखला का दस्तावेज़ीकरण किया जाना चाहिये 

पीड़ित और इत्तिलाकर्त्ता को संसूचना  

  • इस धारा द्वारा किये गए सबसे महत्त्वपूर्ण सुधारों में से एक अनिवार्य संसूचना की आवश्यकता है। पुलिस अधिकारियों को पीड़ित या परिवाद दर्ज कराने वाले व्यक्ति को नब्बे दिनों के भीतर अन्वेषण की प्रगति के बारे में सूचित करना होगा। यह उपबंध भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में लंबे समय से चली आ रही एक शिकायत का समाधान करता है, जहाँ परिवादकर्त्ताओं को अक्सर अपने मामलों के बारे में अंधेरे में रखा जाता था। 
  • अधिकारी को अपराध के बारे में सबसे पहले जानकारी देने वाले व्यक्ति को भी की गई कार्रवाई की जानकारी देनी होगी। इससे पारदर्शिता सुनिश्चित होती है और सभी हितधारकों को मामले की प्रगति के बारे में जानकारी मिलती रहती है। 

वरिष्ठ अधिकारी का निरीक्षण 

  • विधि उन मामलों के लिये उपबंधित करती है जहाँ अन्वेषण के निरीक्षण के लिये एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया हो। ऐसे मामलों में, रिपोर्ट वरिष्ठ अधिकारी के माध्यम से प्रस्तुत की जानी चाहिये, जो आवश्यकता पड़ने पर मजिस्ट्रेट के आदेश तक आगे के अन्वेषण का निदेश दे सकता है। यह पदानुक्रमित प्रणाली जटिल या संवेदनशील मामलों में उचित पर्यवेक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करती है। 

दस्तावेज़ प्रस्तुत करना और प्रकटीकरण 

  • अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करते समय, पुलिस अधिकारियों को अभियोजन पक्ष द्वारा विश्वास किये जाने वाले सभी सुसंगत दस्तावेज़ और साक्ष्य, साथ ही अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किये गए साक्षियों के कथन भी प्रस्तुत करने होंगे। यद्यपि, विधि ऐसी स्थितियों को भी मान्यता देती है जहाँ कुछ जानकारी संवेदनशील या विसंगत हो सकती है। 
  • "पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट से यह अनुरोध कर सकते हैं कि यदि उनके मतानुसार किसी कथन के कुछ भागों का प्रकटीकरण लोकहित के प्रतिकूल हो अथवा न्याय के लिये अनिवार्य न हो, तो उन भागों को अभिलेख से वर्जित किया जाए। यह व्यवस्था पारदर्शिता तथा सुरक्षा-हितों के मध्य संतुलन स्थापित करती है और ऐसी संवेदनशील सूचनाओं की रक्षा करती है जो चल रहे अन्वेषण अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकता हैं।"  

इलेक्ट्रॉनिक संसूचना और आधुनिक प्रक्रियाएँ 

  • यह विधि रिपोर्टों और दस्तावेज़ों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस्तुत करने की अनुमति देकर डिजिटल परिवर्तन को अपनाती है। इलेक्ट्रॉनिक संसूचना को वैध सेवा माना जाता है, जिससे प्रक्रिया तेज़ और अधिक कुशल हो जाती है। 
  • पुलिस को सभी दस्तावेज़ों की अनुक्रमित प्रतियाँ मजिस्ट्रेट को उपलब्ध करानी चाहिये जिससे वे अभियुक्तों तक वितरण कर सकें, जिससे साक्ष्य तक निष्पक्ष पहुँच सुनिश्चित हो सके। 

आगे अन्वेषण का उपबंध 

  • धारा 193 यह मानती है कि प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत होने के पश्चात् भी अन्वेषण में नए साक्ष्य सामने आ सकते हैं। विधि नए मौखिक या दस्तावेज़ी साक्ष्य सामने आने पर आगे अन्वेषण और अतिरिक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति देती है। विचारण के दौरान, न्यायालय की अनुमति से आगे अन्वेषण किया जा सकता है और इसे नब्बे दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये, जिसे आवश्यकता पड़ने पर बढ़ाया जा सकता है। 

निष्कर्ष 

धारा 193 भारत की आपराधिक अन्वेषण प्रक्रियाओं के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। स्पष्ट समय-सीमा, अनिवार्य संसूचना प्रोटोकॉल और व्यापक रिपोर्टिंग आवश्यकताओं को स्थापित करके, इस उपबंध का उद्देश्य एक अधिक पारदर्शी, कुशल और पीड़ित-हितैषी आपराधिक न्याय प्रणाली का निर्माण करना है। इलेक्ट्रॉनिक संसूचना और व्यवस्थित दस्तावेज़ीकरण पर बल, निष्पक्ष अन्वेषण और उचित प्रक्रिया के मूलभूत सिद्धांतों को बनाए रखते हुए, समकालीन आवश्यकताओं के अनुरूप विधि के अनुकूलन को दर्शाता है।