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आपराधिक कानून
NDPS अधिनियम की धारा 50
02-Sep-2024
केरल राज्य बनाम प्रभु “NDPS अधिनियम की धारा 50 अब लागू नहीं है तथा इस न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में माना कि यदि बरामदगी व्यक्ति से नहीं बल्कि उसके द्वारा लाए गए बैग से हुई है, तो NDPS अधिनियम की धारा 50 के अधीन निर्धारित प्रक्रिया एवं औपचारिकताओं का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।” न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार एवं न्यायमूर्ति संजय करोल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार एवं न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा कि "NDPS अधिनियम की धारा 50 अब लागू नहीं है तथा इस न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि बरामदगी व्यक्ति से नहीं बल्कि उसके द्वारा लाए गए बैग से हुई है, तो स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS) की धारा 50 के अधीन निर्धारित प्रक्रिया व औपचारिकताओं का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।"
- उच्चतम न्यायालय ने केरल राज्य बनाम प्रभु मामले में यह निर्णय दिया।
केरल राज्य बनाम प्रभु मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- यह मामला NDPS के अधीन एक मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि के निर्णय के विरुद्ध राज्य द्वारा की गई अपील से जुड़ा है।
- प्रतिवादी पर NDPS अधिनियम की धारा 20(b)(ii)(B) के अधीन 2.050 किलोग्राम गांजा रखने का आरोप लगाया गया था, जिसे एक मध्यवर्ती मात्रा माना जाता है।
- आबकारी निरीक्षक द्वारा गश्त ड्यूटी के दौरान प्रतिवादी के कब्ज़े में एक बैग से प्रतिबंधित पदार्थ बरामद किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी को NDPS अधिनियम की धारा 20(b)(ii)(B) के अधीन दोषी ठहराया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि के निर्णय पलट दिया था तथा NDPS अधिनियम की धारा 50 के अधीन औपचारिकताओं का पालन न करने के आधार पर प्रतिवादी को दोषमुक्त कर दिया था।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि NDPS अधिनियम की धारा 50 का पालन न करने के आधार पर दोषसिद्धि को पलटने एवं प्रतिवादी को दोषमुक्त करने के लिये उच्च न्यायालय का तर्क रंजन कुमार चड्ढा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2023) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित विधि के विपरीत था।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि रंजन कुमार चड्ढा मामले में निर्धारित विधि के अनुसार, यदि बरामदगी आरोपी के कब्ज़े में मौजूद बैग से होती है, न कि सीधे व्यक्ति से, तो NDPS अधिनियम की धारा 50 के अधीन औपचारिकताओं का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।
- तद्नुसार, उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के दोषमुक्त करने के निर्णय को खारिज कर दिया तथा प्रतिवादी को NDPS अधिनियम की धारा 20(b)(ii)(B) के अधीन दोषी ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बहाल कर दिया।
- हालाँकि यह देखते हुए कि प्रतिवादी पहले ही लगभग 4 वर्ष एवं 4 महीने का कारावास काट चुका है, उच्चतम न्यायालय ने सज़ा को पहले से ही काटी गई अवधि तक सीमित कर दिया तथा प्रतिवादी को ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए 50,000 रुपए का अर्थदण्ड भरने के लिये 30 दिन का समय दिया।
NDPS की धारा 50 के अंतर्गत क्या शर्तें हैं?
NDPS की धारा 50 में उन शर्तों का उल्लेख किया गया है जिनके अधीन किसी व्यक्ति की तलाशी ली जाएगी। इस धारा के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- व्यक्ति को राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास ले जाने की आवश्यकता:
- यदि कोई व्यक्ति निवेदन करता है, तो तलाशी लेने वाले अधिकारी को अनावश्यक विलंब किये बिना उस व्यक्ति को धारा 42 में उल्लिखित किसी भी विभाग के निकटतम राजपत्रित अधिकारी या निकटतम मजिस्ट्रेट के पास ले जाना चाहिये।
- अधिकारी व्यक्ति को तब तक अभिरक्षा में रख सकता है जब तक कि वह उसे राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के सामने न ला सके।
- तलाशी के लिये उचित आधार का निर्धारण:
- जिस राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के समक्ष व्यक्ति को लाया जाता है, यदि उन्हें तलाशी के लिये कोई उचित आधार नहीं मिलता है, तो वे उस व्यक्ति को तुरंत छोड़ देंगे।
- यदि उन्हें उचित आधार मिलते हैं, तो वे निर्देश देंगे कि तलाशी ली जाए।
- महिला व्यक्तियों की तलाशी:
- किसी भी महिला की तलाशी महिला के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं ली जाएगी।
- कुछ मामलों में तत्काल तलाशी:
- यदि अधिकारी का मानना है कि व्यक्ति को निकटतम राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास ले जाना संभव नहीं है, क्योंकि उसके पास कोई मादक औषधि, मन:प्रभावी पदार्थ, नियंत्रित पदार्थ, वस्तु या दस्तावेज़ होने की संभावना नहीं है, तो वे दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 100 के प्रावधानों के अनुसार व्यक्ति की तलाशी ले सकते हैं।
- ऐसी तलाशी के बाद, अधिकारी को उन कारणों को दर्ज करना होगा जिनके कारण तत्काल तलाशी की आवश्यकता महसूस हुई तथा उसकी एक प्रति 72 घंटे के अंदर अपने तत्काल वरिष्ठ अधिकारी को भेजनी होगी।
सांविधानिक विधि
विवाह के आधार पर OCI कार्ड के लिये आवेदन
02-Sep-2024
भारत संघ बनाम बहारे बख्शी “न्यायालय ने विवाह के आधार पर किसी विदेशी नागरिक द्वारा OCI कार्ड आवेदन पर कार्यवाही के लिये भारतीय जीवनसाथी की भौतिक या आभासी उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया है।” न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया एवं न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में निर्णय दिया कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7-A(d) के अनुसार, विदेशी नागरिकों के लिये ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड आवेदन के प्रसंस्करण के लिये भारतीय जीवनसाथी की भौतिक या आभासी उपस्थिति अनिवार्य है।
- इस निर्णय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें भारतीय जीवनसाथी की उपस्थिति को समाप्त कर दिया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि विधि में स्पष्ट रूप से OCI पंजीकरण के लिये निर्धारित शर्तों का पालन करने की आवश्यकता है।
- न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया एवं न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम बहारे बख्शी के मामले में यह निर्णय दिया।
भारत संघ बनाम बहारे बख्शी मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- एक ईरानी नागरिक ने वर्ष 2009 में दुबई में एक भारतीय नागरिक से विवाह किया और उसने इस्लाम धर्म अपना लिया।
- विवाह के बाद, दंपति के बीच विवाद उत्पन्न हो गया, जिसके कारण उनमें मनमुटाव हो गया।
- पत्नी बंगलुरु चली गई, जबकि पति गोवा चला गया।
- पत्नी ने भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा अपने पति के विरुद्ध भरण-पोषण के लिये याचिका दायर की, जिसे बंगलुरु के एक कुटुंब न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।
- नवंबर 2020 में, पत्नी ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7A(1)(d) के अंतर्गत एक भारतीय नागरिक से विवाह के आधार पर ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड के लिये आवेदन किया।
- जब वह बंगलुरु में स्थानीय विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) में अपना आवेदन जमा करने गई, तो अधिकारियों ने यह कहते हुए इसे स्वीकार करने से मना कर दिया कि आवेदन पर कार्यवाही के लिये उसके पति की उपस्थिति आवश्यक है।
- इसके बाद पत्नी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें उसके OCI कार्ड आवेदन पर कार्यवाही के लिये उसके अलग रह रहे पति की उपस्थिति की आवश्यकता को समाप्त करने की मांग की गई।
- दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए भारत संघ को उनके पति की उपस्थिति के बिना उनके OCI कार्ड आवेदन को स्वीकार करने का निर्देश दिया।
- दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को यथावत् रखा, इस स्पष्टीकरण के साथ कि भारत संघ अभी भी उनके दावे की वास्तविकता की जाँच कर सकता है।
- भारत संघ ने इस निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की, जिसमें तर्क दिया गया कि वीज़ा मैनुअल एवं OCI कार्ड आवेदनों के लिये चेकलिस्ट के अनुसार दोनों पति-पत्नी की उपस्थिति अनिवार्य है।
- उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामला इस बात पर केंद्रित था कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7A(1)(d) के अंतर्गत OCI कार्ड आवेदन पर कार्यवाही के लिये अलग हुए भारतीय पति-पत्नी की भौतिक या आभासी उपस्थिति अनिवार्य है या नहीं।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने माना कि नागरिकता अधिनियम, 1955 वीज़ा मैनुअल में निर्दिष्ट साक्षात्कार एवं OCI कार्ड आवेदनों के लिये चेकलिस्ट जैसी पूरक प्रक्रियाओं की अनुमति देता है।
- न्यायालय ने कहा कि विवाह की वास्तविकता की पुष्टि करने और धारा 7A(1)(d) के अंतर्गत OCI कार्ड आवेदनों पर प्रभावी ढंग से विचार करने के लिये पति या पत्नी की शारीरिक या आभासी उपस्थिति अनिवार्य है।
- न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा पति-पत्नी की उपस्थिति की आवश्यकता को "मनमाना" बताए जाने की आलोचना की तथा कहा कि अंतर्निहित विनियमों को कोई चुनौती नहीं दी गई है।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आवेदक का यह उत्तरदायित्व है कि वह निर्धारित तरीके से अपने आवेदन की वास्तविकता के विषय में अधिकारियों को संतुष्ट करे, जिसमें साक्षात्कार के लिये अपने पति-पत्नी की उपस्थिति को सुविधाजनक बनाना भी शामिल है।
- न्यायालय ने अधिनियम की धारा 7A(3) के अंतर्गत विशेष परिस्थितियों के लिये प्रावधान के अस्तित्व को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि अधिकांश मामलों में पति-पत्नी की उपस्थिति की आवश्यकता वाली सामान्य प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये।
भारत के विदेशी नागरिक कौन हैं?
- अगस्त 2005 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के माध्यम से ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) का दर्जा प्रस्तुत किया गया था।
- यह भारतीय मूल के व्यक्तियों (PIOs) को भारत के ओवरसीज़ सिटीज़न के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति देता है, जो 26 जनवरी, 1950 को भारत के नागरिक थे, या उस तिथि को नागरिक बनने के पात्र थे।
- यह दर्जा भारत भ्रमण के लिये आजीवन वीज़ा प्रदान करता है, विस्तारित प्रवास के लिये स्थानीय प्राधिकारियों के पास पंजीकरण से छूट प्रदान करता है तथा कृषि भूमि एवं बागान संपत्तियों को छोड़कर आर्थिक, वित्तीय व शैक्षिक क्षेत्रों में अनिवासी भारतीयों के साथ सामान्य समानता प्रदान करता है।
- OCI दोहरी नागरिकता या राजनीतिक अधिकार प्रदान नहीं करता है तथा OCI धारक कुछ संवैधानिक अधिकारों के अधिकारी नहीं हैं, जैसे कि सार्वजनिक रोज़गार में अवसर की समानता।
- 2015 के संशोधन में संशोधित ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया (OCI) प्रावधान:
- "ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया कार्डहोल्डर" योजना शुरू की गई।
- भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) कार्ड योजना को OCI कार्ड योजना के साथ मिला दिया गया।
भारतीय मूल के व्यक्ति के लिये:
- भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) का अर्थ है विदेशी नागरिक (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, ईरान, भूटान, श्रीलंका एवं नेपाल के नागरिकों को छोड़कर)
- जिनके पास किसी भी समय भारतीय पासपोर्ट था या
- जिनके माता-पिता/दादा-दादी/परदादा-परदादी में से कोई एक भारत सरकार अधिनियम, 1935 तथा उसके बाद भारत का हिस्सा बनने वाले अन्य क्षेत्रों में परिभाषित भारत में पैदा हुआ
- और स्थायी रूप से निवास करता था या जो भारत के नागरिक या PIO का जीवनसाथी है।
- वर्ष 2015 में PIO श्रेणी को OCI श्रेणी में विलय कर दिया गया।
नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत भारत के विदेशी नागरिकों के लिये क्या प्रावधान हैं?
- धारा 7A भारत के विदेशी नागरिक कार्डधारक के पंजीकरण से संबंधित है।
- भारत के विदेशी नागरिक कार्डधारक के रूप में पंजीकरण के लिये पात्रता:
- 7A(a) पूर्ण आयु एवं आवश्यक योग्यता वाले व्यक्ति जो:
- i) किसी अन्य देश के नागरिक हैं, लेकिन संविधान लागू होने के समय या उसके बाद भारतीय नागरिक थे।
- ii) किसी अन्य देश के नागरिक हैं, लेकिन संविधान लागू होने के समय भारतीय नागरिकता के लिये पात्र थे।
- iii) किसी अन्य देश के नागरिक हों, लेकिन उस क्षेत्र के निवासी हों जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बन गया।
- iv) क्या वे (i), (ii), या (iii) में वर्णित नागरिकों के बच्चे, पोते या परपोते हैं।
- धारा 7A (b) श्रेणी (a) के अंतर्गत पात्र व्यक्तियों के अप्राप्तवय बच्चे।
- धारा 7A (c) अप्राप्तवय बच्चे जिनके:
- दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक हैं, या
- एक माता-पिता भारतीय नागरिक है।
- धारा 7A(d) विदेशी जीवनसाथी के लिये:
- भारतीय नागरिक, या
- पंजीकृत विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक
- बशर्ते कि:
- विवाह पंजीकृत है तथा आवेदन से पहले कम-से-कम दो लगातार वर्षों तक चला है।
- जीवनसाथी को पहले किसी सक्षम भारतीय प्राधिकारी द्वारा सुरक्षा मंज़ूरी लेनी होगी।
- अपवर्जन:
- वे व्यक्ति पात्र नहीं हैं जिनके माता-पिता, दादा-दादी या परदादा-परदादी पाकिस्तान, बांग्लादेश या केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किसी अन्य देश के नागरिक हैं या थे।
- वर्तमान कार्डों का रूपांतरण:
- केंद्र सरकार एक तिथि निर्दिष्ट कर सकती है, जिस तिथि से विद्यमान भारतीय मूल के कार्डधारकों को भारत के विदेशी नागरिक कार्डधारक माना जाएगा।
- विशेष परिस्थितियाँ:
- केंद्रीय सरकार, विशेष परिस्थितियों में तथा उन परिस्थितियों को लिखित रूप में दर्ज करने के पश्चात्, पात्रता मानदण्डों के बावजूद, किसी व्यक्ति को भारत के विदेशी नागरिक कार्डधारक के रूप में पंजीकृत कर सकती है।
- आवेदन एवं पंजीकरण प्रक्रिया:
- पंजीकरण केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित शर्तों, प्रतिबंधों एवं प्रक्रियाओं के अधीन है।
- इच्छुक व्यक्तियों को विचार के लिये आवेदन करना होगा।
- शासकीय प्राधिकार:
- केंद्र सरकार को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं:
- क) पंजीकरण के लिये शर्तें एवं प्रतिबंध निर्धारित करना।
- ख) उन देशों को निर्दिष्ट करना जिनके नागरिक पंजीकरण के लिये अपात्र हैं।
- ग) मौजूदा कार्डों के रूपांतरण की तिथि निर्धारित करना।
- घ) विशेष परिस्थितियों में व्यक्तियों का पंजीकरण करना।
- केंद्र सरकार को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं:
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7B,7C एवं 7D क्या है?
- धारा 7B - भारत के विदेशी नागरिक (OCI) कार्डधारकों के अधिकार:
- केंद्र सरकार आधिकारिक अधिसूचनाओं के माध्यम से OCI कार्डधारकों के लिये अधिकार निर्दिष्ट कर सकती है।
- OCI कार्डधारक भारतीय नागरिकों के लिये आरक्षित कुछ अधिकारों के अधिकारी नहीं हैं, जिनमें शामिल हैं:
- क) सार्वजनिक रोज़गार के अवसरों में समानता
- ख) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने की पात्रता
- ग) उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति
- घ) संसद या राज्य विधानसभाओं में सदस्यता के लिये मताधिकार एवं पात्रता
- ङ) सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्ति, विशेष आदेश द्वारा निर्दिष्ट को छोड़कर
- धारा 7C - OCI कार्ड का परित्याग:
- एक वयस्क OCI कार्डधारक एक निर्धारित घोषणा के माध्यम से अपने कार्ड का त्याग कर सकता है।
- त्याग करने पर, कार्डधारक के विदेशी मूल के पति या पत्नी और अप्राप्तवय बच्चे जिन्होंने OCI कार्ड प्राप्त किया है, वे भी अपना OCI दर्जा खो देंगे।
- धारा 7D - OCI पंजीकरण रद्द करना: केंद्र सरकार OCI पंजीकरण रद्द कर सकती है यदि:
- इसे छल, गलत प्रतिनिधित्व या भौतिक तथ्यों को छिपाने के माध्यम से प्राप्त किया गया था।
- कार्डधारक भारत के संविधान के प्रति असंतोष दिखाता है।
- कार्डधारक युद्ध के दौरान विधि विरुद्ध गतिविधियों में संलग्न होता है जो दुश्मन की सहायता करता है।
- पंजीकरण के पाँच वर्षों के अंदर कार्डधारक को दो या अधिक वर्षों के लिये कारावास की सज़ा दी जाती है।
- कार्डधारक इस अधिनियम या अन्य निर्दिष्ट विधियों के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता या सार्वजनिक हित के लिये रद्द करना आवश्यक है।
- OCI स्थिति के लिये विवाह का आधार विघटित होना या कार्डधारक द्वारा मूल विवाह के अस्तित्व के दौरान पुनर्विवाह करना है।