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आपराधिक कानून

आपराधिक विचारणों में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 का अनुपालन

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 02-Dec-2025

चंदन पासी एवं अन्य बनाम बिहार राज्य 

"मामले को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अधीन उचित परीक्षा के लिये वापस भेज दिया गयायह प्रतिपादित करते हुए कि केवल सामान्य प्रश्नों के साथ कार्बन-कॉपी रूप में अभिलिखित किये गए कथनअभियुक्त के समक्ष प्रत्येक भौतिक परिस्थिति को रखने की अनिवार्य आवश्यकता का पालन करने में असफल रहे।" 

न्यायमूर्ति संजय करोल और नोंग्मीकापम कोटिस्वर सिंह 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

चंदन पासी एवं अन्य बनाम बिहार राज्य (2025)के मामले में न्यायमूर्ति संजय करोल और नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ नेअपीलों को स्वीकार कर लिया और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 313 के अधीन कथनों को उचित रूप से अभिलिखित करने के लिये मामले को विचारण न्यायालय में वापस भेज दियायह मानते हुए कि विचारण न्यायालय अभियुक्त व्यक्तियों के लिये विशेष रूप से भौतिक परिस्थितियों को रखने में असफल रहा है। 

चंदन पासी एवं अन्य बनाम बिहार राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • 31 मार्च 2016 को सूचना देने वाले कचन पासी अपने पिता घुघली पासीमाता कौता देवी और भाभी धर्मशीला देवी के साथ खेतों से लौट रहे थेतभी अभियुक्तों ने उन्हें घेर लिया। 
  • अभियुक्तों ने कथित तौर परघुघली पासी पर कट्टा (देशी बंदूक) सेहमला किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।  
  • जोनी पासी उर्फ रवींद्र पासी सहित कई अभियुक्तों के विरुद्ध हमले के विशेष आरोप लगाए गए थे। 
  • जिला एवं सेशन न्यायाधीशबक्सर के न्यायालय में सेशन विचारण संख्या 256/2016 में कुल छह व्यक्तियों पर विचारण चलाया गया। 
  • विचारण न्यायालय नेसभी छह अभियुक्तों कोधारा 302/34 भारतीय दण्ड संहिता (सामान्य आशय से हत्या) के अधीन आजीवन कारावास और प्रत्येक पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया। 
  • उन्हें धारा 448 और 323 के साथ धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता (गृह अतिचार के लिये दण्ड और स्वेच्छया उपहति कारित करने के लिये दण्ड) के अधीन एक-एक वर्ष के साधारण कारावास का दण्ड सुनाया गयातथा सभी दण्ड साथ-साथ चलेंगे 
  • विचारण न्यायालय ने 27 मार्च 2017 को दोषसिद्धि का निर्णय दिया तथा 29 मार्च 2017 को दण्ड का आदेश पारित किया गया। 
  • सातवें अभियुक्त को किशोर पाया गया और उसके साथ किशोर न्याय विधि के अधीन अलग से व्यवहार किया गया। 
  • सभी छह दोषसिद्ध व्यक्तियों ने दाण्डिक अपील (DB) संख्या 443/2017 में पटना उच्च न्यायालय के समक्ष धारा 374(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन अपील दायर की। 
  • उच्च न्यायालय ने सितंबर 2024 और 26 सितंबर 2024 के निर्णयों के माध्यम से विचारण न्यायालय के निष्कर्षों को बरकरार रखा। 
  • छह दोषियों में से तीन - चंदन पासीपप्पू पासी और गिदिक पासी - ने विशेष अनुमति याचिका (Crl.) संख्या 3685-3686/2025 के माध्यम से उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 
  • उठाया गया मुख्य तर्क यह था कि अभियुक्तों की परीक्षा के दौरान दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 का अनुपालन नहीं किया गया। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तीनों अपीलकर्त्ताओं के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अधीन अभिलिखित किये गए कथन "एक दूसरे की कार्बन कॉपी" थेजो विचारण न्यायालय की ओर से "घोर विफलता" को उजागर करता है। 
  • प्रत्येक अभियुक्त से पूछे गए चार प्रश्नों में से केवल दो ही सीधे तौर पर घटना के अनुक्रम से संबंधित थेतथा दोनों ही यथासंभव सामान्य तरीके से पूछे गए थे। 
  • दूसरे प्रश्न में केवल "कोरे आरोपों" का उल्लेख किया गया थाजिसमें विशेष रूप से दोषपूर्ण परिस्थितियों का उल्लेख नहीं किया गया थातथा केवल "सर्वव्यापी खंडन" दिया गया था। 
  • तीसरे प्रश्न में केवल इतना कहा गया कि आरोप "लगाए गए और साबित किये गए" थेतथा विशिष्ट भौतिक परिस्थितियों का विस्तृत विवरण नहीं दिया गया। 
  • न्यायालय ने कहा कि इस तरह की पूछताछ को "हर भौतिक परिस्थिति को सामने रखना नहीं कहा जा सकता"जैसा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अधीन अपेक्षित है। 
  • न्यायालय ने चिंता व्यक्त की कि विचारण कर रहे न्यायाधीश और अभियोजक दोनों ही अपने कर्त्तव्यों में असफल रहे - अभियोजक "न्यायालय का एक अधिकारी" है जिसका "न्याय के हित में कार्य करना गंभीर कर्त्तव्य है।" 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि अभियोजक केवल बचाव पक्ष के अधिवक्ता के रूप में कार्य नहीं कर सकतेअपितु वे राज्य के लिये कार्य कर सकते हैंजिसका एकमात्र उद्देश्य अभियुक्त को दण्ड दिलाना है। 
  • दोषसिद्धि को चुनौती देने वाले अन्य आधारों की परीक्षा किये बिनान्यायालय ने केवल दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 का अनुपालन न करने के आधार पर अपील को अनुमति दे दी। 
  • मामले को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अधीन कथन अभिलिखित करने के चरण से पुनः शुरू करनेके लिये विचारण न्यायालय को वापस भेज दिया गया । 
  • उच्चतम न्यायालय के समक्ष रिमांड केवल तीन अपीलकर्त्ताओं तक ही सीमित थी तथा इससे अन्य अभियुक्त व्यक्तियों के विरुद्ध निष्कर्षों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। 
  • यह स्वीकार करते हुए कि "विचारण स्मृति का कार्य है" जो "समय की अनिश्चितताओं" के प्रति संवेदनशील हैतथा यह देखते हुए कि अपराध 2016 में हुआ थान्यायालय ने विचारण न्यायालय को चार महीने के भीतर कार्यवाही पूरी करने का निदेश दिया। 

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 क्या है? 

बारे में: 

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 313 कोभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 351द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। 
  • दोनों धाराएँअभियुक्त की परीक्षा करने की शक्ति से संबंधित हैं। 

उद्देश्य और प्रयोजन: 

  • अभियुक्त को उसके विरुद्ध साक्ष्य में दिखाई देने वाली परिस्थितियों को समझने का अवसर प्रदान करता है। 
  • न्यायालय और अभियुक्त के बीच सीधा संवाद स्थापित करता है जिससे अभियुक्त अपना स्पष्टीकरण दे सके। 
  • उन अभियुक्तों के लिये अत्यधिक सहायता जो असुरक्षितगरीबअशिक्षित और असहाय हैं। 
  • इसका उद्देश्य न्यायालय को अभियुक्त को फँसाने या बहकाने में सक्षम बनाना नहीं हैजिससे वह उन तथ्यों को स्वीकृत कर सकेजिन्हें अभियोजन पक्ष साबित करने में विफल रहा है। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 351/ दण्ड प्रक्रिया संहिता की 313 के प्रमुख उपबंध: 

उपधारा (1) - दो भाग: 

  • खण्ड (क) - विवेकाधीन:न्यायालय किसी भी प्रक्रम परअभियुक्त को पूर्व चेतावनी दिये बिनाऐसे प्रश्न पूछ सकता हैजिन्हें वह आवश्यक समझे। 
  • खण्ड (ख) - अनिवार्य:अभियोजन पक्ष के साक्षियों की परीक्षा के पश्चात् और अभियुक्त को प्रतिरक्षा के लिये बुलाए जाने से पहलेन्यायालय उससे मामले पर सामान्यतः प्रश्न करेगा। 
  • परंतुक:समन मामलों में जहाँ व्यक्तिगत हाजिरी से छूट दी गई हैखण्ड (ख) के अधीन परीक्षा से भी छूट दी जा सकती है। 

उपधारा (2) - शपथ नहीं: 

  • अभियुक्त से पूछताछ के समय उसे शपथ नहीं दिलाई जाएगी। 
  • कारण: इस धारा के अंतर्गत परीक्षा किये जाने पर अभियुक्त साक्षी नहीं है। 

उपधारा (3) - कोई दायित्त्व नहीं: 

  • अभियुक्त को प्रश्नों का उत्तर देने से इंकार करके स्वयं को दण्ड का भागी नहीं बनाना चाहिये 
  • प्रश्नों के गलत उत्तर देने पर कोई दण्ड नहीं। 

उपधारा (4) - साक्ष्य मूल्य: 

  • ऐसी जांच या विचारण में अभियुक्त द्वारा दिये गए उत्तरों पर विचार किया जा सकता है। 
  • किसी अन्य अपराध के लिये किसी अन्य जांच या विचारण में उसके पक्ष या विपक्ष में साक्ष्य के रूप में उत्तर प्रस्तुत किये जा सकते हैं। 
  • उदाहरण: हत्या के विचारण मेंयदि अभियुक्त कहता है कि उसने शव को छुपाया थाकिंतु हत्या नहीं की थीतो कथन का प्रयोग भारतीय दण्ड संहिता की धारा 201 के अधीन पश्चात्वर्ती विचारण में किया जा सकता है। 

उपधारा (5) - भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में नया प्रावधान:   

  • न्यायालय सुसंगत प्रश्न तैयार करने में अभियोजक और प्रतिरक्षा काउंसेल की सहायता ले सकता है। 
  • न्यायालय पर्याप्त अनुपालन के रूप में अभियुक्त द्वारा लिखित कथन दाखिल करने की अनुमति दे सकता है।