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आपराधिक कानून
डी.एन.ए. परीक्षण और धर्मजत्व की उपधारणा
«12-Nov-2025
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राजेंद्रन बनाम कमर निशा और अन्य (2025) "उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि DNA परीक्षण को दो अवरोधों को पूरा करना होगा: विद्यमान साक्ष्य की अपर्याप्तता और सभी संबंधित पक्षकारों के हितों के संतुलन के संबंध में सकारात्मक निष्कर्ष।" न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और विपुल एम. पंचोली स्रोत: उच्चतम न्यायालय |
चर्चा में क्यों?
- न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की पीठ ने आर. राजेंद्रन बनाम कमर निशा एवं अन्य (2025) मामले में DNA परीक्षण के लिये उच्च न्यायालय के निदेश को अपास्त कर दिया और कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 112 के अधीन सांविधिक उपधारणा का खंडन नहीं किया गया है और DNA परीक्षण न तो आवश्यक है और न ही आपराधिक अन्वेषण के लिये आनुपातिक है।
आर. राजेंद्रन बनाम कमर निशा एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- प्रत्यर्थी संख्या 1 (कमर निशा) ने 2001 में अब्दुल लतीफ से विवाह किया, जिन्होंने बाद में त्वचा रोग के इलाज के लिये अपीलकर्त्ता (डॉ. आर. राजेंद्रन) से संपर्क किया।
- अपीलकर्त्ता ने कथित तौर पर प्रत्यर्थी संख्या 1 के साथ शारीरिक संबंध बनाए, जिसके परिणामस्वरूप अब्दुल लतीफ के साथ उसके वैध विवाह के दौरान 8 मार्च, 2007 को एक बच्चे का जन्म हुआ।
- प्रत्यर्थी संख्या 1 के अनुसार, अब्दुल लतीफ ने विवाहेतर संबंध के बारे में जानने के बाद, जब बच्ची लगभग डेढ़ वर्ष की थी, तब उसे छोड़ दिया था ।
- प्रत्यर्थी संख्या 1 ने एक तमिल टीवी चैनल के कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से अपने परिवाद के बारे में बताया, जिसके कारण अपीलकर्त्ता के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 417 और 420 तथा तमिलनाडु महिला उत्पीड़न अधिनियम की धारा 4(1) के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 233/2014 दर्ज की गई।
- पुलिस ने अपीलकर्त्ता, प्रत्यर्थी संख्या 1 और बच्चे की DNA प्रोफाइलिंग के लिये निदेश मांगे, किंतु अपीलकर्त्ता ने इसका पालन करने से इंकार कर दिया।
- प्रत्यर्थी संख्या 1 ने अन्वेषण और DNA परीक्षण के अंतरण की मांग करते हुए कई रिट याचिकाएँ दायर कीं, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने अंततः अपीलकर्त्ता को DNA प्रोफाइलिंग कराने का निदेश दिया।
- जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल स्थानांतरण प्रमाण पत्र और स्कूल प्रवेश रिकॉर्ड में अब्दुल लतीफ को बच्चे का पिता बताया गया।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
धारा 112: धर्मजत्व की निश्चायक उपधारणा:
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 (भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 116) वैध विवाह के दौरान पैदा हुए बच्चों के लिये धर्मजत्व की निश्चायक उपधारणा स्थापित करती है, जिसे केवल गर्भाधान के दौरान पति-पत्नी के बीच "परस्पर-पहुँच" (लैंगिक संबंधों की असंभवता) साबित करने वाले मजबूत साक्ष्य द्वारा ही खंडित किया जा सकता है।
DNA परीक्षण का आदेश सामान्यतः नहीं दिया जा सकता:
- न्यायालय ने कहा कि DNA परीक्षण के लिये "दोहरी शर्तों (twin blockades)" की संतुष्टि आवश्यक है :
- धर्मजत्व की उपधारणा को बनाए रखने के लिये विद्यमान साक्ष्य की अपर्याप्तता।
- सकारात्मक निष्कर्ष यह है कि DNA परीक्षण सभी पक्षकारों के सर्वोत्तम हितों की पूर्ति करता है।
प्रत्यर्थी परस्पर-पहुँच स्थापित करने में असफल रहा:
- न्यायालय ने पाया कि बच्चे का जन्म वैध विवाह के दौरान हुआ था, तथा वैध पिता के रूप में अब्दुल लतीफ के पक्ष में सांविधिक उपधारणा लागू होती है ।
- किसी भी सामग्री से यह सिद्ध नहीं हुआ कि अब्दुल लतीफ गर्भधारण अवधि के दौरान शारीरिक रूप से अनुपस्थित था, तथा पति-पत्नी के बीच परस्पर-पहुँच स्थापित करने वाले विशिष्ट तर्क का पूर्ण अभाव था।
- अधिक से अधिक, यह समकालिक पहुँच का मामला था, जो पति की पहुँच को नकारता नहीं है या उपधारणा को खारिज नहीं करता है।
अनुच्छेद 21 के अधीन निजता का अधिकार:
- किसी व्यक्ति को जबरन DNA परीक्षण के लिये बाध्य करना अनुच्छेद 21 के अधीन संरक्षित निजता पर गंभीर अतिक्रमण है, जिसे वैधता, धर्मज उद्देश्य और आनुपातिकता के त्रिस्तरीय परीक्षण पर खरा उतरना होगा।
- प्रत्यर्थी संख्या 1 की अपनी निजता को छोड़ने की इच्छा, अपीलकर्त्ता और बच्चे की स्वतंत्र निजता अधिकारों को छोड़ने तक विस्तारित नहीं होती है ।
आपराधिक आरोपों के लिये पितृत्व संपार्श्विक:
- न्यायालय ने कहा कि पितृत्व छल और उत्पीड़न के प्राथमिक आरोपों का सहायक है, तथा DNA परीक्षण का अन्वेषण के अधीन अपराधों से प्रत्यक्ष संबंध होना चाहिये।
- न्यायालय ने DNA परीक्षण से इंकार करने के लिये धारा 114 के अधीन प्रतिकूल निष्कर्ष निकालने को खारिज कर दिया, क्योंकि धारा 112 के अधीन सांविधिक उपधारणा का खंडन नहीं किया गया था।
DNA परीक्षण क्या है?
बारे में:
- DNA (Deoxyribonucleic Acid) परीक्षण एक वैज्ञानिक विधि है जो जैविक संबंधों, विशेष रूप से पितृत्व और मातृत्व को निर्धारित करने के लिये आनुवंशिक सामग्री का विश्लेषण करती है।
- DNA परीक्षण में पितृत्व के मामलों में 99% से अधिक सटीकता के साथ जैविक संबंध स्थापित करने के लिये व्यक्तियों के बीच आनुवंशिक मार्करों की तुलना करना शामिल है।
- यह परीक्षण रक्त, लार, बालों के रोम या गाल के नमूने सहित विभिन्न नमूनों का उपयोग करके किया जा सकता है।
DNA परीक्षण के प्रकार:
- पितृत्व परीक्षण: बच्चे के जैविक पिता का अवधारण करता है।
- मातृत्व परीक्षण: जैविक माता की पहचान करता है (दुर्लभ मामलों में)।
- नातेदारी परीक्षण: नातेदारों के बीच संबंधों का अवधारण करता है।
- शिनाख्त परीक्षण: आपराधिक अन्वेषण और सामूहिक आपदाओं में उपयोग किया जाता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 क्या है?
- धारा 112 - विवाहित स्थिति के दौरान में जन्म होना धर्मजत्व का निश्चायक सबूत है।
- यह तथ्य कि किसी व्यक्ति का जन्म उसकी माता और किसी पुरुष के बीच विधिमान्य विवाह को कायम रखते हुए, या उसका विघटन होने के उपरांत माता के अविवाहित रहते हुए दो सौ अस्सी दिन के भीतर हुआ था, इस बात का निश्चायक सबूत होगा कि वह उस पुरुष का धर्मज पुत्र है, जब तक कि यह दर्शित न किया जा सके कि विवाह के पक्षकारों की परस्पर पहुँच ऐसे किसी समय नहीं थी कि जब उसका गर्भाधान किया जा सकता था।
- यह उपबंध भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 116 में निहित है।