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आपराधिक कानून

मानसिक क्रूरता

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 19-Mar-2024

"कम दहेज के लिये किसी विवाहित महिला को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिये मजबूर करना, मानसिक क्रूरता होगी और यह एक निरंतर अपराध होगा।"

न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि कम दहेज के लिये किसी विवाहित महिला को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिये मजबूर करना मानसिक क्रूरता होगी, और यह एक निरंतर अपराध होगा।

मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, शिकायतकर्त्ता (पत्नी) ने दिसंबर, 2021 में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 व 4 के तहत इस आरोप पर FIR दर्ज की कि उसका विवाह आवेदक (पति) के साथ वर्ष 2017 में हुआ था।
  • उसके, उसके पति के साथ संबंध लगभग एक महीने तक अच्छे रहे, और उसके बाद उसके पति, सास व नातेदारों ने उसे कम दहेज लाने के लिये शारीरिक एवं मानसिक क्रूरता यातनाएँ दीं।
  • कथित तौर पर उसका पति और सास अतिरिक्त 10 लाख रुपए की मांग करके उससे मारपीट करते थे।
  • इसके बाद, आवेदक द्वारा FIR को रद्द करने के लिये मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था।
  • न्यायालय द्वारा अर्ज़ी खारिज़ कर दी गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि यह सत्य है, कि अलगाव के बाद कोई शारीरिक क्रूरता नहीं हो सकती है, लेकिन IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता मानसिक या शारीरिक हो सकती है। यदि किसी महिला को उसके वैवाहिक घर से निकाल दिया गया है, तो निश्चित रूप से इसका उसके मस्तिष्क पर मानसिक क्रूरता जैसा ही प्रभाव पड़ेगा, फिर यह एक निरंतर अपराध बन जाएगा और हर दिन कार्रवाई का एक नया कारण देगा।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

IPC की धारा 498A:

परिचय:

  • धारा 498A विवाहित महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का शिकार होने से बचाने के लिये वर्ष 1983 में पेश की गई थी।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई, स्त्री का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  • इस धारा के प्रयोजन के लिये, "क्रूरता" का अर्थ है-
    • जानबूझकर किया गया कोई आचरण, जो ऐसी प्रकृति का है जिससे किसी स्त्री को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिये उसे करने की संभावना है; या
    • किसी स्त्री को तंग करना, जहाँ उसे या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिये किसी विधिविरुद्ध मांग को पूरी करने के लिये प्रपीड़ित करने की दृष्टि से या उसके अथवा उससे संबंधित किसी व्यक्ति को ऐसे मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है।
  • इस धारा के तहत अपराध संज्ञेय और गैर ज़मानती अपराध होता है।
  • धारा 498-A के तहत शिकायत अपराध से पीड़ित महिला या उसके रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा दर्ज की जा सकती है। और यदि ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं है, तो किसी भी लोक सेवक द्वारा जिसे राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में अधिसूचित किया जा सकता है।
  • धारा 498-A के तहत अपराध करने का आरोप लगाने वाली शिकायत कथित घटना के 3 वर्ष के भीतर दर्ज की जा सकती है। हालाँकि, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 473 न्यायालय को सीमा अवधि के बाद किसी अपराध का संज्ञान लेने में सक्षम बनाती है, यदि वह संतुष्ट है कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है।

आवश्यक तत्त्व:

  • धारा 498-A के तहत अपराध करने के लिये निम्नलिखित आवश्यक तत्त्वों का कारित होना आवश्यक है:
    • महिला विवाहित होनी चाहिये;
    • वह क्रूरता या उत्पीड़न से पीड़ित होनी चाहिये;
    • या तो ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न को महिला के पति या उसके पति के रिश्तेदार द्वारा प्रदर्शित किया गया हो।

निर्णयज विधि:

  • अरुण व्यास बनाम अनीता व्यास, (1999) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि धारा 498A में अपराध का सार क्रूरता है। यह अपराध निरंतर होता है और प्रत्येक अवसर पर जब महिला क्रूरता का शिकार होती थी, तो उसके पास अपराध की सीमा का एक नया बिंदु होता था।

दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961:

  • धारा 3:
    • यह धारा दहेज देने या दहेज लेने के लिये शास्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
    • यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् दहेज देगा या लेगा अथवा दहेज देना या लेना दुष्प्रेरित करेगा [ तो वह कारावास से, जिसकी अवधि [पाँच वर्ष से कम की नहीं होगी, और ज़ुर्माने से, जो पंद्रह हज़ार रुपए से या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम तक का, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम नहीं होगा,] दण्डनीय होगा;
    •  परंतु न्यायालय, ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से जो निर्णय में लेखबद्ध किये जाएँगे, '[पाँच वर्ष] से कम की किसी अवधि के कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा।]
    • उपधारा (1) की कोई बात -
      (a) ऐसी भेटों को, जो वधू को विवाह के समय ( उस निमित्त कोई मांग किये बिना) दी जाती है या उनके संबंध में लागू नहीं होगी।
      परंतु यह तब तक कि ऐसी भेंटें इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार रखी गई सूची में दर्ज की जाती हैं;
      (b) ऐसी भेंटों को जो वर को विवाह के समय (उस निमित्त कोई मांग किये बिना) दी जाती है या उनके संबंध में लागू नहीं होगी।
      परंतु, यह तब जब कि ऐसी भेंटें, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार रखी गई सूची में दर्ज की जाती हैं।
  • धारा 4:
    • यह धारा दहेज मांगने के लिये शास्ति से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि, यदि कोई व्यक्ति, यथास्थिति, वधू या वर के माता-पिता या अन्य नातेदार या संरक्षक, से किसी दहेज की प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से मांग करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह माह से कम की नहीं होगी, जोकि दो वर्ष तक की हो सकेगी और ज़ुर्माने से जो दस हज़ार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
    • परंतु न्यायालय ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में उल्लिखित किये जाएँगे, छह मास से कम की किसी अवधि के कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा।