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करेंट अफेयर्स और संग्रह

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सिविल कानून

उपभोक्ता आयोग का गिरफ्तारी वारंट जारी करने की शक्ति

 09-Oct-2024

राकेश खन्ना बनाम नवीन कुमार अग्रवाल एवं अन्य

"C P अधिनियम की धारा 72 यह स्पष्ट रूप से प्रावधानित करती है कि इसका उद्देश्य उपभोक्ता आयोगों के आदेशों को लागू करना है, जिसके अंतर्गत किसी कंपनी एवं उसके अधिकारियों को आयोगों के निर्देशों की अवहेलना करने के लिये उत्तरदायी सिद्ध किया जा सकता है।"

न्यायमूर्ति संजीव नरूला

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने राकेश खन्ना बनाम नवीन कुमार अग्रवाल एवं अन्य के मामले में माना है कि उपभोक्ता आयोग के पास कंपनी के गैर-अनुपालन के लिये कंपनी को उत्तरदायी सिद्ध करने के राकेश खन्ना बनाम नवीन कुमार अग्रवाल एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, प्रतिवादी संख्या 1 ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (C P) की धारा 17 के अंतर्गत शिकायत दर्ज की, जिसमें VXL रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड (प्रतिवादी संख्या 4) पर सेवाओं में कमी एवं अनुचित व्यापार व्यवहार का आरोप लगाया गया।
  • दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (SDCRC) ने शिकायतकर्त्ता को राहत देते हुए एक निर्णय पारित किया तथा प्रतिवादी संख्या 4 को अन्य राहतों के साथ-साथ शिकायतकर्त्ता को पूरी राशि वापस करने का आदेश दिया।
  • इसके बाद प्रतिवादी संख्या 1 ने एक निष्पादन आवेदन दायर किया, जिसमें प्रतिवादी संख्या 4 के निदेशकों (याचिकाकर्त्ता) के विरुद्ध गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया।
  • याचिकाकर्त्ता ने आदेश को वापस लेने के लिये आवेदन किया तथा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के समक्ष आदेश को चुनौती दी।
  • NCDRC ने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध एक आदेश भी दायर किया तथा गिरफ्तारी का वारंट जारी किया।
  • NCDRC के निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यह अपील दायर की कि:
    • कथित कृत्य के समय वह प्रतिवादी संख्या 4 का निदेशक नहीं था।
    • कथित कृत्य के समय वह कंपनी का व्यवसाय नहीं संभाल रहा था तथा इसके पुष्टि हेतु उसके द्वारा मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी।
    • C P अधिनियम के अंतर्गत निष्पादन आदेश पारित करने की प्रक्रिया दोषपूर्ण थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि:
    • C P अधिनियम की धारा 72 उपभोक्ता आयोग को अपने आदेश का पालन न करने पर गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अधिकार देती है।
    • SDRCX एवं NCDRC द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी करने का उद्देश्य निदेशक की व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की मांग करना नहीं था, बल्कि कथित कृत्य के लिये उत्तरदायित्व की मांग करना था।
    • निदेशक यह तर्क नहीं दे सकते कि कथित कृत्य के समय वे सक्रिय नहीं थे। यह आदेश उनकी व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के विषय में नहीं था, बल्कि प्रतिवादी संख्या 4 को उत्तरदायी सिद्ध करने के विषय में था।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रवर्तन एवं गिरफ्तारी का वारंट जारी करने की शक्ति क्रमशः C P अधिनियम की धारा 71 एवं धारा 72 से प्राप्त होती है।
  • C P अधिनियम के अंतर्गत वारंट जारी करने की शक्ति अधिनियम की धारा 71 से धारा 72 तक प्राप्त होती है।
  • इसलिये दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता की याचिका को खारिज कर दिया तथा NCDRC के आदेश की पुष्टि की।

उपभोक्ता विवाद द्वारा आदेश के प्रवर्तन की प्रक्रिया क्या है

निवारण आयोग:

  • धारा 71 - आदेशों का प्रवर्तन
    • जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के आदेशों को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI के प्रावधानों का उपयोग करते हुए, न्यायालय के आदेश के समान ही लागू किया जाएगा।
  • धारा 72 - आदेशों का पालन न करने पर अर्थदण्ड
    • जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के आदेश का पालन न करने पर निम्नलिखित दण्ड का प्रावधान है:
      • 1 महीने से 3 वर्ष तक का कारावास एवं/या
      • ₹25,000 से ₹1 लाख तक का अर्थदण्ड।
    • संबंधित आयोग को ऐसे अपराधों के परीक्षण के लिये प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
    • अपराधों का विचारण संबंधित आयोग द्वारा संक्षेप में की जाएगी।

सेवा में कमी क्या है?

  • "सेवाओं की कमी" की अवधारणा में उपभोक्ताओं को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के अपेक्षित मानक में किसी भी तरह की विफलता, कमी या चूक शामिल है।
  • इसमें ऐसे मामले शामिल हैं जहाँ प्रदान की गई सेवा विधिक आवश्यकताओं, संविदात्मक दायित्वों या उपभोक्ता की उचित अपेक्षाओं से कम है।
  • सेवा प्रदाता द्वारा लापरवाही, जानबूझकर किये गए कार्य या चूक के कारण कमी उत्पन्न हो सकती है, जिससे उपभोक्ता असंतुष्ट, असुविधा या क्षति हो सकता है।
  • C P अधिनियम की धारा 2(11) "कमी" को किसी भी विधि के अंतर्गत बनाए रखने के लिये आवश्यक प्रदर्शन की गुणवत्ता, प्रकृति एवं तरीके में किसी भी दोष, अपूर्णता, कमी या अपर्याप्तता के रूप में परिभाषित करती है या किसी व्यक्ति द्वारा किसी संविदा के अंतर्गत या अन्यथा किसी सेवा के संबंध में प्रदर्शन करने के लिये प्रतिबद्ध है। इसमें शामिल हैं:
    • सेवा प्रदाता द्वारा की गई कोई लापरवाही, चूक या कमी का कार्य, जिससे उपभोक्ता को क्षति या चोट पहुँचती है।
    • सेवा प्रदाता द्वारा उपभोक्ता से प्रासंगिक सूचना को जानबूझकर छिपाना।

महत्त्वपूर्ण निर्णय

  • रजनीश कुमार रोहतगी एवं अन्य बनाम मैसर्स यूनिटेक लिमिटेड एवं अन्य (2016):
    • इस मामले में यह माना गया कि उपभोक्ता फोरम द्वारा आदेश पारित किये जाने की तिथि से लेकर उसके बाद कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिये उत्तरदायी एवं प्रभारी व्यक्ति, उक्त आदेश के अनुपालन तक, C P अधिनियम के अंतर्गत दण्डित किये जाने के लिये उत्तरदायी होंगे।
  • रवि कांत बनाम राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (2024):
    • इस मामले में यह माना गया कि यदि कोई कंपनी उपभोक्ता फोरम द्वारा पारित आदेश का पालन करने में विफल रहती है या उपेक्षा करती है, तो उत्तरदायित्व न केवल कंपनी का है, बल्कि उन व्यक्तियों का भी है जो इसके संचालन के लिये उत्तरदायी हैं तथा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक निर्णय लेने में विफल रहते हैं।

सिविल कानून

स्वतः संज्ञान

 09-Oct-2024

NGT ने ग्रेटर नोएडा के फ्लैटों में जल प्रदूषण के संबंध में स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला संज्ञान में लिया है।”

माननीय न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव (अध्यक्ष), माननीय न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (न्यायिक सदस्य), माननीय डॉ. ए. सेंथिल वेल (विशेषज्ञ सदस्य), एवं माननीय डॉ. अफरोज अहमद (विशेषज्ञ सदस्य),

स्रोत: नेशनल ग्रीन पार्क

चर्चा में क्यों?

इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक हालिया लेख में ग्रेटर नोएडा में गंभीर स्वास्थ्य संकट के विषय में उल्लेख किया गया है, जहाँ 170 बच्चों सहित 300 से अधिक निवासी पानी की आपूर्ति में ई कोलाई वेवन ब्लीचिंग पाउडर के कारण बीमार पड़ गए। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया, इसे जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के संभावित उल्लंघन से जोड़ा, और संबंधित अधिकारियों को 28 जनवरी, 2025 तक जवाब देने के लिये नोटिस जारी किया है।

मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • 13 सितंबर 2024 को, इंडियन एक्सप्रेस ने "ग्रेटर नोएडा हाउसिंग सोसाइटी के पानी के नमूनों में ब्लीचिंग पाउडर में ई कोलाई के निशान पाए गए" शीर्षक से एक समाचार लेख प्रकाशित किया।
  • इस लेख में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में स्थित एक हाउसिंग सोसाइटी सुपरटेक इकोविलेज 2 में पानी के दूषित होने की सूचना दी गई थी।
  • इस दूषित पानी की आपूर्ति के कारण 170 बच्चों सहित 300 से अधिक निवासी बीमार पड़ गए।
  • प्रभावित निवासियों को दस्त, उल्टी, पेट दर्द एवं बुखार जैसे लक्षण अनुभव हुए।
  • हाउसिंग सोसाइटी से लिये गए पानी के नमूनों में ई कोलाई बैक्टीरिया एवं ब्लीचिंग पाउडर के अंश पाए गए।
  • पीने के पानी में ई कोलाई की उपस्थिति स्वास्थ्य के लिये बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न करती है, विशेषकर बच्चों एवं बुजुर्गों जैसी कमज़ोर आबादी के लिये।
  • लेख में बताए गए प्रदूषण के संभावित कारणों में पानी की टंकियों की अनुचित फ्लशिंग शामिल है।
  • ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण समूह हाउसिंग सोसाइटियों के जलाशय तक पानी की आपूर्ति करने के लिये उत्तरदायी है।
  • हाउसिंग सोसाइटी के अंदर आंतरिक जल वितरण का प्रबंधन बिल्डर या अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन (AOA) द्वारा किया जाता है।
  • यह घटना जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुपालन के विषय में चिंताएँ उत्पन्न करती है।
  • इस मामले में स्थानीय प्राधिकरण, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं हाउसिंग सोसायटी प्रबंधन सहित कई हितधारक शामिल हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • अधिकरण ने ग्रेटर मुंबई नगर निगम बनाम अंकिता सिन्हा एवं अन्य (2021) में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पुष्टि किये गए अपने स्वतः अधिकारिता का प्रयोग करते हुए समाचार लेख के आधार पर मामले का संज्ञान लिया है।
  • पीठ ने निर्धारित किया कि समाचार सामग्री जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अनुपालन से संबंधित पर्याप्त मामले सामने आए हैं।
  • अधिकरण ने अपने विवेकानुसार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा ग्रेटर नोएडा के जिला मजिस्ट्रेट को मामले में प्रतिवादी बनाया है।
  • पीठ ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें उन्हें सुनवाई की अगली तिथि से कम से कम एक सप्ताह पहले अधिकरण  के समक्ष शपथपत्र के रूप में अपने प्रश्न/उत्तर दाखिल करने की आवश्यकता है।
  • अधिकरण ने आगे यह भी निर्धारित किया है कि यदि कोई प्रतिवादी अपने अधिवक्ता के माध्यम से जवाब दाखिल किये बिना सीधे प्रत्युत्तर दाखिल करता है, तो उक्त प्रतिवादी कार्यवाही के दौरान अधिकरण की सहायता के लिये वस्तुतः उपस्थित रहेगा।

स्वतः संज्ञान क्या है?

  • स्वतः अधिकारिता भारत में न्यायिक सक्रियता का हिस्सा है, जहाँ न्यायालय सार्वजनिक महत्त्व के मुद्दों, विशेष रूप से मानवाधिकार उल्लंघन एवं पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर विचार करने के लिये अपने स्वयं के प्रस्ताव पर कार्यवाही प्रारंभ करते हैं।
  • दार्शनिक प्रसंग के द्वारा वंचित वर्गों को न्याय प्रदान करना है जो स्वयं न्यायालयों से संपर्क करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। आलोचकों का तर्क है कि यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन करता है।
  • स्वतः संज्ञान से अधिकारिता को नियंत्रित करने वाला कोई विशिष्ट विधि नहीं है, लेकिन 2014 में उच्चतम न्यायालय के नियमों के माध्यम से इसे वैध बना दिया गया है।
    • न्यायालयों ने जनहित के विभिन्न मामलों में इसका प्रयोग किया है।
  • पर्यावरणीय मामलों में स्वतः संज्ञान लेना विशेष रूप से महत्त्व पूर्ण रहा है, क्योंकि ये मुद्दे अक्सर बड़ी आबादी को प्रभावित करते हैं।
    • उच्चतम न्यायालय ने कई पर्यावरण संबंधी मामलों पर स्वतः संज्ञान लिया है।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना 2010 में एक विशेष पर्यावरण न्यायालय के रूप में की गई थी।
    • नियमित अधिकरणों के विपरीत, इसका उद्देश्य अनुच्छेद 21 के अंतर्गत पर्यावरण से संबंधित मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है।
  • प्रारंभ में, NGT अधिनियम में NGT को स्पष्ट रूप से स्वतः से कार्यवाही करने की शक्तियाँ प्रदान नहीं की गई थीं।
    • 2012 में NGT ने स्वयं कहा था कि उसके पास ऐसी शक्तियाँ नहीं हैं।
  • हालाँकि, सामूहिक पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने एवं मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिये NGT के जनादेश को देखते हुए, इसकी शक्तियों की व्यापक व्याख्या के लिये तर्क दिए जा रहे हैं, जिसमें स्वतः अधिकारिता को शामिल किया जा सकता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि NGT के अधिकारिता के अंतर्गत आने वाले पर्यावरणीय मामलों को अन्य न्यायालयों के बजाय NGT के समक्ष वाद संस्थित किया जाना चाहिये ।

स्वतः संज्ञान लेने के संबंध में ऐतिहासिक मामले क्या हैं?

  • सोसायटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ साइलेंट वैली बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य: पर्यावरण मामलों में जनहित याचिकाओं के आरंभिक चरण को चिह्नित किया।
  • सरीन मेमोरियल लीगल एड फाउंडेशन बनाम पंजाब राज्य (2017): हालाँकि ने सुखना झील के जलग्रहण क्षेत्र में अतिक्रमण की जाँच करने के लिये रिट याचिकाओं पर विचार किया।
  • दून वैली मामला (ग्रामीण मुकदमेबाजी एवं अधिकार केंद्र, देहरादून बनाम उत्तर प्रदेश राज्य): हालाँकि उच्चतम न्यायालय को भेजे गए एक पत्र को संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट याचिका के रूप में माना गया, जिसके कारण खनन कार्यों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

परिचय:

  • यह अधिनियम भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है, जो पर्यावरण प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने एवं कम करने के लिये उपाय करने हेतु केंद्र सरकार को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • यह महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय शब्दों को व्यापक रूप से परिभाषित करता है तथा पर्यावरण मानकों को निर्धारित करने, खतरनाक गतिविधियों को प्रतिबंधित करने एवं पर्यावरण विनियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये निरीक्षण करने के लिये तंत्र स्थापित करता है।
  • यह अधिनियम प्रदूषण या खतरनाक पदार्थों की देख रेख करने वाले उद्योगों एवं व्यक्तियों पर सख्त उत्तरदायित्व डालता है, तथा उनसे पर्यावरण को होने वाले क्षति को कम करने के लिये निर्धारित मानकों एवं प्रक्रियाओं का पालन करने की अपेक्षा करता है।
  • अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड का प्रावधान है, जिसमें 5-7 वर्ष तक का कारावास एवं भारी अर्थदण्ड निहित है, जो पर्यावरण संबंधी अपराधों को दृढ़ता से रोकने के लिये विधि के आशय को दर्शाता है।

विधिक प्रावधान:

  • परिभाषाएँ (धारा 2): अधिनियम प्रमुख शब्दों के लिये व्यापक परिभाषाएँ प्रदान करता है:
    • "पर्यावरण" की परिभाषा मोटे तौर पर जल, वायु, भूमि एवं उनके बीच के अंतर्संबंधों के साथ-साथ जीवित जीवों एवं संपत्ति को शामिल करने के लिये की जाती है।
    • पर्यावरण प्रदूषक" से तात्पर्य ऐसे किसी भी पदार्थ से है जो ऐसी सांद्रता में मौजूद हो जो पर्यावरण के लिये हानिकारक हो सकता है।
    • "पर्यावरण प्रदूषण" को पर्यावरण में किसी भी पर्यावरण प्रदूषक की उपस्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • "खतरनाक पदार्थ" में कोई भी पदार्थ शामिल है जो अपने रासायनिक या भौतिक-रासायनिक गुणों या हैंडलिंग के कारण जीवित प्राणियों, संपत्ति या पर्यावरण को क्षति पहुँचा सकता है।
  • केन्द्र सरकार की शक्तियाँ (धारा 3): अधिनियम केन्द्र सरकार को निम्नलिखित के लिये व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है:
    • पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा एवं सुधार के लिये आवश्यक उपाय करना।
    • प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण एवं कमी के लिये राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों की योजना बनाना एवं उन्हें क्रियान्वित करना।
    • पर्यावरण की गुणवत्ता एवं प्रदूषकों के उत्सर्जन/मुक्ति के लिये मानक निर्धारित करना।
    • कुछ औद्योगिक संचालन या प्रक्रियाओं के लिये क्षेत्रों को प्रतिबंधित करना।
    • खतरनाक पदार्थों से निपटने एवं होने वाले दुर्घटनाओं को रोकने के लिये प्रक्रियाएँ अपनाना।
    • परिसर का निरीक्षण करना एवं पर्यावरण संरक्षण के लिये अधिकारियों को निर्देश जारी करना।
    • पर्यावरण प्रयोगशालाएँ स्थापित करना एवं पर्यावरण संबंधी सूचना एकत्र करना/प्रसारित करना।
  • पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण एवं उपशमन (धारा 7-9): इन धाराओं में उत्तरदायित्वों का उल्लेख किया गया है:
    • कोई भी व्यक्ति किसी भी उद्योग, संचालन या व्यवस्था को चलाने के लिये निर्धारित मानकों से अधिक प्रदूषक नहीं उत्सर्जित करेगा।
    • खतरनाक पदार्थों के संचालकों को निर्धारित प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों का पालन करना चाहिये।
    • दुर्घटनाओं के कारण प्रदूषक उत्सर्जन के लिये उत्तरदायी व्यक्तियों को प्रदूषण को रोकना/कम करना चाहिये और निर्धारित अधिकारियों को सूचित करना चाहिये।
  • प्रवेश एवं निरीक्षण की शक्तियाँ (धारा 10): सशक्त सरकारी अधिकारियों को निम्नलिखित करने का अधिकार है:
    • अधिनियम के अंतर्गत कार्य करने के लिये किसी भी स्थान में प्रवेश करना तथा उसका निरीक्षण करना।
    • उपकरण, रिकॉर्ड या अन्य वस्तुओं की जाँच करना।
    • अधिनियम के अंतर्गत अपराधों से संबंधित वस्तुओं की तलाशी लेना एवं उन्हें जब्त करना।
  • दण्ड (धारा 15): अधिनियम में उल्लंघन के लिये कठोर दण्ड का प्रावधान किया गया है:
    • प्रत्येक उल्लंघन के लिये 5 वर्ष तक कारावास या 1 लाख रुपये तक अर्थदण्ड , या दोनों।
    • उल्लंघन जारी रहने पर प्रतिदिन 5,000 रुपये तक का अतिरिक्त अर्थदण्ड ।
    • दोषसिद्धि के एक वर्ष से अधिक समय तक उल्लंघन जारी रहने पर 7 वर्ष तक कारावास की बढ़ी हुई सज़ा।

जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974

  • केंद्रीय बोर्ड का गठन (धारा 3)
    • केन्द्र सरकार निर्दिष्ट राज्यों/क्षेत्रों में अधिनियम के लागू होने के 6 महीने के अंदर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन करेगी।
  • केंद्रीय बोर्ड की संरचना:
    • केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत पूर्णकालिक अध्यक्ष
    • केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकतम 5 अधिकारी
    • राज्य बोर्डों से अधिकतम 5 व्यक्ति
    • कृषि, मत्स्य पालन, उद्योग आदि जैसे हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकतम 3 गैर-अधिकारी।
    • केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनियों/निगमों का प्रतिनिधित्व करने वाले 2 व्यक्ति
    • केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त पूर्णकालिक सदस्य सचिव
    • केंद्रीय बोर्ड एक निगमित निकाय होगा, जिसका उत्तराधिकार स्थायी होगा तथा जिसकी सामान्य मुहर होगी।
  • राज्य बोर्डों का गठन (धारा 4)
    • राज्य सरकार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन करेगी।
    • राज्य बोर्डों की संरचना:
    • राज्य सरकार द्वारा नामित अध्यक्ष
    • राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकतम 5 अधिकारी
    • स्थानीय प्राधिकरणों से अधिकतम 5 व्यक्ति
    • कृषि, मत्स्य पालन, उद्योग आदि जैसे हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकतम 3 गैर-अधिकारी।
    • राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनियों/निगमों का प्रतिनिधित्व करने वाले 2 व्यक्ति
    • राज्य सरकार द्वारा नियुक्त पूर्णकालिक सदस्य सचिव
    • राज्य बोर्ड स्थायी उत्तराधिकार एवं सामान्य मुहर वाले निगमित निकाय होंगे।
    • केंद्रीय बोर्ड संघ शासित प्रदेशों के लिये राज्य बोर्ड के कार्य करेगा।
  • बोर्ड की शक्तियाँ एवं कर्त्तव्य (अध्याय IV)
    • केंद्रीय बोर्ड के कार्य:
    • नदियों एवं कुओं की सफाई को बढ़ावा देना
    • जल प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण पर केंद्र सरकार को सलाह देना
    • राज्य बोर्डों की गतिविधियों का समन्वय करना
    • राज्य बोर्डों को तकनीकी सहायता प्रदान करना
    • जल प्रदूषण पर शोध करना
    • नदियों एवं कुओं के लिये मानक निर्धारित करना
    • राज्य बोर्डों के कर्त्तव्य:
    • प्रदूषण की रोकथाम/नियंत्रण के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाना एवं उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना
    • राज्य सरकार को सलाह देना
    • सूचना एकत्र करना एवं उसका प्रसार करना
    • अनुसंधान को प्रोत्साहित करना/कराना
    • सीवेज/व्यापारिक अपशिष्टों एवं उपचार संयंत्रों का निरीक्षण करना
    • अपशिष्ट मानकों को निर्धारित करना
    • उपचार विधियों का विकास करना
  • जल प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण (अध्याय V)
    • नए आउटलेट एवं डिस्चार्ज पर प्रतिबंध (धारा 25)
    • सीवेज/अपशिष्टों के मौजूदा डिस्चार्ज के लिये प्रावधान (धारा 26)
    • राज्य बोर्ड द्वारा सहमति से मना करने/वापस लेने की शक्ति (धारा 27)
    • अपील की प्रक्रिया (धारा 28)
    • राज्य बोर्ड द्वारा आपातकालीन उपाय (धारा 32)
    • प्रदूषण को रोकने के लिये न्यायालय में आवेदन करने की शक्ति (धारा 33)
  • दण्ड का प्रावधान एवं उसकी प्रक्रिया (अध्याय VII)
    • निर्देशों/आदेशों का पालन न करने पर दण्ड (धारा 41)
    • बोर्ड की संपत्ति को क्षति पहुँचाने, अधिकारियों के कार्य में बाधा डालने आदि जैसे कृत्यों के लिये दण्ड (धारा 42)
    • धारा 24, 25, 26 के उल्लंघन के लिये दण्ड (धारा 43, 44)
    • दोहराए गए अपराधों के लिये दण्ड में वृद्धि (धारा 45)
    • कंपनियों एवं सरकारी विभागों द्वारा किये गए अपराधों के लिये प्रावधान (धारा 47, 48)
    • अपराध के संज्ञान के लिये नियम (धारा 49)