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आपराधिक कानून

ज़मानत की शर्त के रूप में सामुदायिक सेवा

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 22-May-2024

अभिषेक शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य

आरोपी छात्र को एक बेहतर नागरिक बनने के लिये सुधार हेतु सामुदायिक सेवा को ज़मानत की शर्त के रूप में लागू किया गया है।

न्यायमूर्ति आनंद पाठक  

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा एक अनोखी ज़मानत की शर्त लगाई गई थी, जिसके अंतर्गत आरोपी छात्र को ज़मानत पर अस्थायी रिहाई के भाग के रूप में सामुदायिक सेवा करने की आवश्यकता थी।

  • न्यायमूर्ति आनंद पाठक का बयान, आरोपों की गंभीरता को न्यायालय की मान्यता पर प्रकाश डालता है, साथ ही आरोपियों द्वारा अपने व्यवहार में सुधार करने की क्षमता को भी स्वीकार करता है।
  • यह निर्णय एक न्यायिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो पुनर्वास एवं व्यक्तिगत विकास के अवसर के साथ कथित अपराध के लिये उत्तरदायित्व को संतुलित करता है।

अभिषेक शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • व्हाट्सएप, पीछा करने एवं अश्लील कॉल के ज़रिए एक लड़की को लगातार परेशान करने के आरोप में 4 अप्रैल 2024 को आरोपी को गिरफ्तार किया गया।
  • आरोपी, बीबीए प्रथम वर्ष का छात्र, लंबे समय तक कारावास के कारण संभावित शैक्षणिक अवनति का हवाला देते हुए अस्थायी ज़मानत की मांग करता है।
  • आवेदक ऐसी गतिविधियों में पुनः सम्मिलित न होने की प्रतिज्ञा करते हुए सुधार के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है।
  • माता-पिता अपने बेटे के व्यवहार की निगरानी करने की प्रतिज्ञा करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि शिकायतकर्त्ता को आगे कोई शर्मिंदगी या उत्पीड़न न हो।
  • अधिवक्ता के अनुसार, आवेदक के कृत्य अहंकार के कारण उत्पन्न होते हैं, जो सुधार की सुविधा के लिये रचनात्मक गतिविधियों एवं सामुदायिक सेवा में संलग्न होने का सुझाव देते हैं।
  • आवेदक ने उच्च न्यायालय में अस्थाई ज़मानत के लिये आवेदन किया।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्च न्यायालय ने सामुदायिक सेवा की शर्त पर अस्थायी ज़मानत स्वीकृत कर लिया।
  • न्यायमूर्ति आनंद पाठक की राय है कि विधिक कार्यवाही में उत्तरदायित्व एवं सुधार के अवसर दोनों पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है।
  • आवेदक एक छात्र है, इसलिये, सुधार के लिये अवसर दिया जाना चाहिये ताकि वह विशेष रूप से IPC की धारा 354 (D) एवं POCSO अधिनियम की धारा 11 एवं 12 की प्रकृति में आपराधिक गतिविधियों में शामिल न होकर एक बेहतर नागरिक बनने के लिये अपने गतिविधियों एवं क्रिया-कलाप में सुधार कर सके।
  • न्यायालय ने अधिवक्ता के इस सुझाव पर सहमति व्यक्त की कि 2 महीने के लिये अस्थायी ज़मानत इस शर्त पर दी जाए कि वह रचनात्मक गतिविधियों एवं सामुदायिक सेवा में संलग्न हो सके ताकि उसका कथित अहंकार पिघल जाए एवं उसके बाद उसके आचरण को देखते हुए ज़मानत की पुष्टि की जाए, इससे सक्षम हो जाएगा। आवेदक को सबक सीखने एवं बेहतर भविष्य के लिये रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न होने की आवश्यकता है।
  • आवेदक पर लगाई गई ज़मानत की शर्तें हैं-
    • वह प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक (ट्रायल के निर्णय से प्रभावित होने के बावजूद) ज़िला अस्पताल (1250) भोपाल में अपनी सेवाएँ देंगे और उसका दायित्व मरीज़ों की बाहरी विभाग के डॉक्टरों एवं कंपाउंडरों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा के दौरान सहायता करने के लिये होगी।
    • उसे ऑपरेशन थिएटर, निजी वार्ड एवं दवा या इंजेक्शन देने से रोककर रहेगा।
    • उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि मरीज़ों को कोई क्षति या असुविधा न हो, डॉक्टर अनुपालन की निगरानी करेंगे।

सामुदायिक सेवाएँ क्या है?

  • परिचय:
    • सामुदायिक सेवाएँ किसी विशेष समुदाय या लोगों के समूह की भलाई को बढ़ाने के उद्देश्य से कार्यक्रमों, गतिविधियों एवं पहल करने की एक विस्तृत शृंखला को संदर्भित करती हैं।
    • ये सेवाएँ अक्सर सरकारी एजेंसियों, गैर-लाभकारी संगठनों या स्वयंसेवी समूहों द्वारा प्रदान की जाती हैं तथा इनमें सामाजिक सेवाएँ, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता एवं सांस्कृतिक संवर्धन आदि विभिन्न क्षेत्र शामिल हो सकते हैं।
  • भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली एवं अन्य देशों में सामुदायिक सेवा सज़ा:
    • भारत:
      • भारत ने हाल ही में भारतीय न्याय संहिता में सामुदायिक सेवा दण्ड के प्रावधान को सज़ा के रूप में अपनाया है।
      • यह पुनर्वास एवं सामुदायिक भागीदारी पर बल देते हुए पुनर्स्थापनात्मक न्याय की ओर बदलाव को दर्शाता है।
      • यह दृष्टिकोण अपराधियों को उनके कार्यों से होने वाले हानि को संबोधित करते हुए समाज में सकारात्मक योगदान देने की अनुमति देता है।
      • व्यक्तिगत विकास एवं एकीकरण को बढ़ावा देकर, सामुदायिक सेवा आपराधिक व्यवहार के चक्र को तोड़ने का अवसर प्रदान करती है।
    • अन्य राष्ट्र:
      • संयुक्त राज्य अमेरिका: विशिष्ट परिस्थितियों में समुदाय में अपराधियों की निगरानी के लिये परिवीक्षा का उपयोग किया जाता है, जिसमें अक्सर सामुदायिक सेवा के अवसरों के लिये गैर-लाभकारी संगठनों या सरकारी एजेंसियों को शामिल किया जाता है।
      • यूनाइटेड किंगडम: सामुदायिक सज़ा के भाग के रूप में अपराधियों को अवैतनिक कार्य, कर्फ्यू या पुनर्वास कार्यक्रम जैसी विभिन्न आवश्यकताओं को प्रस्तावित करते हुए, सामुदायिक आदेशों को नियोजित करता है।
      • ऑस्ट्रेलिया: अपराधी पुनर्वास को संबोधित करने के लिये परामर्श या सामुदायिक सेवा जैसी अनुकूल परिस्थितियों के साथ पर्यवेक्षण को जोड़ते हुए सामुदायिक सुधार आदेश लागू करता है।
      • कनाडा: सशर्त सज़ा का उपयोग करता है, अपराधियों को कड़ी शर्तों के अधीन समुदाय में अपनी सज़ा काटने की अनुमति देता है, सज़ा के साथ-साथ पुनर्वास पर भी बल देता है।
      • नॉर्वे और जापान: नॉर्वे पुनर्स्थापनात्मक न्याय कार्यक्रमों एवं वैकल्पिक प्रतिबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि जापान दैनिक आय के आधार पर "दिन का अर्थदण्ड" लागू करता है, दोनों का लक्ष्य सांस्कृतिक एवं विधिक सूक्ष्मता पर विचार करते हुए अपराधियों को समाज में पुनः शामिल करना है।
  • BNS में प्रावधानित सामुदायिक सेवाएँ:
    • पहली बार 'भारतीय न्याय संहिता' (BNS) विधेयक के अंतर्गत छोटे अपराधों के लिये दण्डात्मक विधि में सामुदायिक सेवा का प्रावधान प्रस्तावित किया गया है।
    • BNS की धारा 4 सज़ा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि इस संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत अपराधियों को जो सज़ा दी जानी है, वे हैं-
      • मृत्यु
      • आजीवन कारावास
      • कारावास, जिसके दो प्रकार हैं, अर्थात्- कठोर, अर्थात् कठिन परिश्रम के साथ, एवं सरल
      • संपत्ति की ज़ब्ती
      • अर्थदण्ड
      • सामुदायिक सेवा।

कुछ प्रमुख निर्णयज विधियाँ क्या हैं, जिनमें सामुदायिक सेवाओं का उपयोग ज़मानत की एक शर्त के रूप में किया जाता है?

  • गुडिकांती नरसिम्हुलु एवं अन्य बनाम लोक अभियोजक (1977), भारत के उच्च न्यायालय ने कहा कि अपराध-विरोधी फोकस के साथ सामाजिक रक्षा एवं व्यक्तिगत सुधार के उद्देश्य से किये गए उपाय, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सीमाओं को उचित ठहरा सकते हैं।
  • अपर्णा भट्ट एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (2021), न्यायालय ने ज़मानत की शर्त के रूप में "सामुदायिक सेवा" को अनिवार्य करने की प्रचलित प्रथा पर प्रश्न किया, विशेषकर लिंग-आधारित अपराधों में।