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राजस्थान

तलाक के आधार के रूप में क्रूरता

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 09-Aug-2023

चर्चा में क्यों? 

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक पत्नी द्वारा अपने पति को काला/सांवला कहना क्रूरता है।

पृष्ठभूमि

●    वर्तमान मामला बेंगलुरु की एक परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाले उस पति की याचिका से संबंधित है, जिसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (i) (A) के तहत विवाह विच्छेद करने की याचिका दायर की थी और बेंगलुरु की एक परिवार न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज़ कर दी थी।

●    पति ने 2012 में इस आधार पर तलाक दायर किया था कि उसकी त्वचा के रंग के कारण उसकी पत्नी उसे लगातार अपमानित करती थी।

●    पति ने यह आरोप भी लगाया कि 2011 में, उसकी पत्नी ने उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A (Section 498A of the Indian Penal Code, 1860(IPC) के तहत क्रूरता के आरोप में "झूठी" शिकायत दर्ज कराई थी। 

●    पत्नी ने इस आधार पर आरोपों का खंडन किया कि उसके पति का किसी अन्य महिला के साथ विवाहेत्तर संबंध था और उसके पति द्वारा शारीरिक शोषण किया गया था।

●    न्यायालय ने पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों को निरर्थक और निराधार पाया क्योंकि रिकॉर्ड पर कोई  साक्ष्य स्वीकार्य नहीं पाया गया और न्यायालय ने टिप्पणी की कि परिवार न्यायालय ऐसे आधारहीन और बेबुनियाद आरोपों के प्रभाव को ध्यान में रखने में विफल रही।

●    परिवार न्यायालय ने पति की याचिका इस आधार पर खारिज़ कर दी थी कि पति ने क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद का मामला नहीं बनाया है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations )

न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े की पीठ ने तलाक के लिये पति की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि पत्नी का अपने पति की कंपनी से खुद को दूर करने का निर्णय और चीजों को छिपाने के लिये उसके खिलाफ अवैध संबंध रखने के झूठे आरोप लगाना भी क्रूरता है।

क्रूरता (Cruelty)

●    वैवाहिक संबंधों में क्रूरता - इसका अर्थ है एक ऐसा वैवाहिक कृत्य जो दूसरों को शारीरिक, मानसिक या आर्थिक जैसे किसी भी प्रकार का दर्द और कष्ट पहुँचाता है।

●    क्रूरता क्या है इसका निर्धारण स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूले से नहीं किया जा सकता; बल्कि यह मामले के समय, स्थान, व्यक्ति, तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

IPC के तहत स्थिति (Position under IPC)

●    आपराधिक कानून IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता की शिकार महिला को संरक्षण देता है।

o    धारा 498A - जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

o     स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिये, “क्रूरता” से निम्नलिखित अभिप्रेत है:-

(क) जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने की संभावना है; या

(ख) किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उसको या उसके किसी नातेदार को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरी करने के लिये प्रपीड़ित किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई नातेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है।

हिंदू कानून के तहत स्थिति (Position Under Hindu Law)

o    हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) में वर्ष 1976 के संशोधन द्वारा धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता को तलाक का आधार बना दिया गया। 

धारा 13 - तलाक - (1) कोई भी विवाह, चाहे इस अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले या बाद में, पति या पत्नी द्वारा प्रस्तुत याचिका पर, तलाक की डिक्री द्वारा इस आधार पर भंग किया जा सकता है कि दूसरे पक्ष —

(ia) ने विवाह संपन्न होने के बाद याचिकाकर्त्ता के साथ क्रूरता से व्यवहार किया है; या

1976 से पहले क्रूरता केवल अधिनियम की धारा 10 के तहत न्यायिक विच्छेद  का दावा करने का आधार थी।

धारा 10 - न्यायिक विच्छेद—1 (1) विवाह का कोई भी पक्ष, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले या बाद में हुआ हो, धारा (13) की उप-धारा (1) में निर्दिष्ट किसी भी आधार पर न्यायिक विच्छेद के लिये डिक्री की प्रार्थना करते हुए एक याचिका प्रस्तुत कर सकता है और पत्नी के मामले में भी उसकी उपधारा (2) में निर्दिष्ट किसी भी आधार पर, जिस आधार पर तलाक के लिये याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।

(2) जहाँ न्यायिक विच्छेद की डिक्री पारित कर दी गई है, वहाँ याचिकाकर्त्ता के लिये प्रतिवादी के साथ रहना अनिवार्य नहीं होगा, लेकिन न्यायालय किसी भी पक्ष की याचिका के आवेदन पर और सच्चाई से संतुष्ट होने पर ऐसा कर सकता है। ऐसी याचिका में दिये गए बयान डिक्री को रद्द कर देते हैं यदि वह ऐसा करना उचित और सही समझता है।

क्रूरता संबंधी कानूनी मामले

●    दास्ताने बनाम दास्ताने (1975)

इस मामले का निर्णय हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता के खंड को विधायी रूप से जोड़ने से पूर्व किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:

o    प्रतिवादी का ऐसा कोई भी आचरण जो याचिकाकर्ता के लिये प्रतिवादी के साथ रहना हानिकारक या खतरनाक बनाता हो या ऐसी प्रकृति का हो जिससे उस प्रभाव के लिये उचित आशंका पैदा करता हो, क्रूरता की श्रेणी में आएगा।

o    यह आचरण की प्रकृति और शिकायत करने वाले पति या पत्नी पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखकर निष्कर्ष निकालने का विषय है।

o    दूसरे पति या पत्नी पर पड़ने वाले प्रभाव या हानिकारक शारीरिक प्रभाव की जाँच या विचार करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे मामलों में, यदि आचरण स्वयं साबित हो या स्वीकार किया जाए तो क्रूरता स्थापित की जाएगी।

o    विशेष रूप से वैवाहिक कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों में, हम परिवर्तन देखते हैं। वे घर-घर या व्यक्ति-दर-व्यक्ति अलग-अलग स्तर के होते हैं।

o    जब कोई पति/पत्नी जीवन या रिश्ते में साथी द्वारा क्रूरता के व्यवहार के बारे में शिकायत करता है, तो न्यायालय को जीवन में मानक की तलाश नहीं करनी चाहिये।

●    नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (2004)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि:

o    "क्रूरता" शब्द का उपयोग अधिनियम की धारा 13(1)(ia) में वैवाहिक कर्तव्यों या दायित्वों के संबंध में मानव आचरण या व्यवहार के संदर्भ में किया जाता है।

o    क्रूरता का गठन करने के लिये शारीरिक हिंसा आवश्यक नहीं है, अथाह मानसिक पीड़ा और यातना देने वाला निरंतर आचरण भी क्रूरता हो सकता है।

o    मानसिक क्रूरता में अनुचित और अपमानजनक भाषा का उपयोग करके मौखिक दुर्व्यवहार और अपमान शामिल हो सकता है, जिससे दूसरे पक्ष की मानसिक शांति लगातार भंग हो सकती है।