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आपराधिक कानून
कानून में सुसाइड नोट की स्थिति
«18-Dec-2024
अतुल सुभाष: आत्महत्या मामला “अभियुक्त ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत मांगी, सुसाइड नोट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए”। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बैंगलोर के एक तकनीकी विशेषज्ञ की आत्महत्या के लिये कथित रूप से दुष्प्रेरण के मामले में अभियुक्त के मामा की अग्रिम ज़मानत याचिका पर सुनवाई की। वकील ने सुसाइड नोट की प्रामाणिकता पर संदेह जताया और पुलिस पर अनुचित जल्दबाज़ी में काम करने का आरोप लगाया। परिवादी ने सुशील पर पैसे ऐंठने के लिये अतुल को परेशान करने का आरोप लगाया, जैसा कि आत्महत्या वीडियो में आरोप लगाया गया है।
- न्यायालय ने सुशील को 2 जनवरी, 2025 तक ट्रांज़िट अग्रिम ज़मानत प्रदान की, जिससे उसे कर्नाटक के न्यायालय फिर से खुलने तक संरक्षण मिल सके।
अतुल सुभाष आत्महत्या मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- बेंगलुरू के 34 वर्षीय प्रौद्योगिकी पेशेवर अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया के साथ चल रहे वैवाहिक विवाद के बीच आत्महत्या कर ली।
- दोनों पक्षों के बीच गंभीर वैवाहिक मतभेद थे, जिसके परिणामस्वरूप जौनपुर ज़िले के कुटुंब न्यायालय में विवाह-विच्छेद, निर्वाहिका और अवयस्क बच्चे की अभिरक्षा के संबंध में कानूनी कार्यवाही लंबित थी।
- अपनी मृत्यु से पहले, सुभाष ने उत्पीड़न के अपने आरोपों के समर्थन में सावधानीपूर्वक पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किये।
- इसमें 24 पृष्ठों का विस्तृत सुसाइड नोट, अपने अनुभवों को विस्तार से बताने वाली 81 मिनट की वीडियो रिकॉर्डिंग तथा "न्याय मिलना चाहिये" वाक्यांश से अंकित एक तख्ती शामिल थी।
- अपने सुसाइड नोट और वीडियो में सुभाष ने स्पष्ट रूप से अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और उसके परिवार के सदस्यों पर उसे व्यवस्थित रूप से मनोवैज्ञानिक और कानूनी उत्पीड़न का शिकार बनाने का आरोप लगाया।
- उसने आरोप लगाया कि लगातार वैवाहिक मुकदमेबाज़ी, कई कानूनी मामलों और पारिवारिक दबाव ने एक असहनीय वातावरण उत्पन्न कर दिया था, जिसके कारण अंततः उसने अपना जीवन समाप्त करने का निर्णय लिया।
- अतुल सुभाष की मृत्यु के बाद, उसके भाई विकास कुमार ने बेंगलुरु में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करके तत्काल कानूनी कार्रवाई की।
- FIR विशेष रूप से निकिता सिंघानिया और उसके तीन परिवार के सदस्यों के विरुद्ध दर्ज की गई थी, जिसमें सुभाष के सुसाइड नोट और वीडियो गवाही में प्रस्तुत विस्तृत आरोपों के आधार पर उन पर आत्महत्या के लिये उकसाने का आरोप लगाया गया था।
- 9 दिसंबर को FIR दर्ज की गई, 12 दिसंबर को याचिका प्रस्तुत की गई और 13-14 दिसंबर को परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारियाँ हुईं।
- FIR के बाद त्वरित कानूनी कार्रवाई शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप परिवार के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया गया:
- निकिता सिंघानिया (पत्नी),
- निशा सिंघानिया (सास) और
- अनुराग सिंघानिया (साला)।
- अवयस्क बच्चे की अभिरक्षा से संबंधित मुद्दों के कारण मामला और जटिल हो गया।
- सुसाइड नोट और उसके बाद की कानूनी कार्यवाही ने बच्चे की वर्तमान अभिरक्षा व्यवस्था और हिरासत संभालने में सुशील सिंघानिया (मामा) की संभावित भूमिका के बारे में प्रासंगिक सवाल उठाए।
- इस मामले में एक जटिल न्यायिक परिदृश्य प्रस्तुत हुआ, जिसमें कई स्थानों पर कानूनी कार्यवाही और जाँच शामिल थी, जिसमें बैंगलोर (जहाँ FIR दर्ज की गई थी), जौनपुर (जहाँ कुटुंब न्यायालय की कार्यवाही चल रही थी) और प्रयागराज (जहाँ बाद में उच्च न्यायालय में कानूनी दलीलें सुनी गईं) शामिल थीं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने मामले के रिकॉर्ड को तलब करके एक प्रशासनिक प्रक्रिया शुरू की, जो कि मूल दावों की पुष्टि करने और सुसाइड नोट में उल्लिखित आरोपों को मौजूदा कानूनी दस्तावेजों के साथ संदर्भित करने के लिये एक व्यवस्थित दृष्टिकोण का संकेत है।
- न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने उन दलीलों पर सुनवाई की, जिनमें सुभाष द्वारा कथित तौर पर छोड़े गए सुसाइड नोट की प्रामाणिकता के बारे में गंभीर चिंताएँ जताई गई थीं।
- यह तर्क दिया गया कि, "यदि इस सुसाइड नोट की सत्यता स्वीकार कर ली जाए, तो यह अनिश्चित है कि इस मामले में अंततः कौन फँसाया जा सकता है।"
भारतीय आपराधिक कानून में आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण
दुष्प्रेरण की परिभाषा
- दुष्प्रेरण का शाब्दिक अर्थ है गलत कार्य को प्रोत्साहित करना, समर्थन करना या समर्थन देना।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 45 के तहत दुष्प्रेरण निम्नलिखित माध्यम से हो सकता है:
- किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिये उकसा कर।
- किसी कार्य को करने के लिये किसी षडयंत्र में शामिल होकर।
- किसी कार्य या अवैध चूक द्वारा जानबूझकर सहायता कर कर।
आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण साबित करना (BNS, 2023 की धारा 108)
मुख्य आवश्यकताएँ
आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का मामला साबित करने के लिये अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा:
- मृतक ने वास्तव में आत्महत्या की थी।
- अभियुक्त ने आत्महत्या के लिये सीधे तौर पर उकसाया या परिस्थितियाँ उत्पन्न कीं।
- आपराधिक मनःस्थिति (आपराधिक आशय) की उपस्थिति।
महत्त्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत
- रमेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, (2001) के मामले में न्यायालय ने स्थापित किया कि ऐसी परिस्थितियाँ बनाना, जिनमें आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प न बचे, उकसावे के रूप में माना जा सकता है।
- अभियोजन पक्ष को यह प्रदर्शित करना होगा:
- मृतक के प्रति लगातार चिड़चिड़ापन या झुंझलाहट।
- जानबूझकर चुप रहना या ऐसी हरकतें जो पीड़ित को आत्महत्या की ओर धकेलती हैं।
- आत्महत्या के लिये उकसाने का आपराधिक आशय।
आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के मानदंड
सुसाइड नोट साक्ष्य कैसे होते हैं?
कानूनी महत्त्व
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 26 के तहत इसे मृत्युकालिक कथन माना जा सकता है।
- मृत्यु से संबंधित कथनों की व्यापक व्याख्या की अनुमति देकर यह अंग्रेज़ी कानून से अलग है।
स्वीकार्यता की शर्तें
- मृत्यु की परिस्थितियों से सीधे संबंधित होना चाहिये।
- मृतक की मानसिक स्थिति स्वस्थ होनी चाहिये।
- नोट में कोई विसंगति नहीं होनी चाहिये।
महत्त्वपूर्ण केस संदर्भ
- शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य, (1985)
- सुसाइड नोट दोषसिद्धि के लिये एकमात्र साक्ष्य हो सकता है।
- अन्य मृत्युकालिक कथनों के समान ही नियम लागू होते हैं।
- लक्ष्मी बनाम ओम प्रकाश एवं अन्य (2001):
- न्यायालय को घोषणाकर्त्ता की मानसिक क्षमता का आकलन करना चाहिये।
- यदि मानसिक स्थिति संदिग्ध है तो पुष्टि करने वाले साक्ष्य की आवश्यकता हो सकती है।
साक्ष्यिक चुनौतियाँ
- अभियोजन पक्ष को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष साक्ष्य प्रदान करना होगा।
- केवल सुसाइड नोट की मौजूदगी ही पर्याप्त नहीं है।
- न्यायालय निम्नलिखित बातों पर गौर करता है:
- कथन की विश्वसनीयता।
- कथा की संगति।
- संपोषक साक्ष्य।