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विवाह विच्छेद के बाद क्रूरता और द्विविवाह पर गुजरात उच्च न्यायालय

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 21-Aug-2023

कोई भी महिला विवाह के अस्तित्व के दौरान हुई घटनाओं के लिये तलाक के बाद भी भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A के तहत क्रूरता का मामला दर्ज कर सकती है।

गुजरात उच्च न्यायालय

स्रोतः टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों?

रमेशभाई दानजीभाई सोलंकी बनाम गुजरात राज्य के मामले में, गुजरात उच्च न्यायालय ने माना है कि एक महिला तलाक के बाद भी भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 494 और धारा 498A के तहत द्विविवाह और क्रूरता का मामला दर्ज कर सकती है, लेकिन वह ऐसा केवल उन्हीं घटनाओं के लिये कर सकती है जो विवाह-विच्छेद होने से पहले हुई थी।

पृष्ठभूमि

  • वर्तमान मामला CrPC की धारा 482 के तहत दायर की गई एक ऐसी याचिका से संबंधित है जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498(a), 294(b), 323, 114, 506(2) और 494 के तहत दंडनीय अपराधों के लिये दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने और रद्द करने की मांग की गई है।
  • याचिकाकर्ता (पति) और प्रतिवादी/शिकायतकर्ता (पत्नी) के बीच शादी 2005 में शादी हुई और 2011 में फैमिली कोर्ट में तलाक के लिये याचिका दायर की गई।
    • फैमिली कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की जांच के बाद 2014 में पति-पत्नी को तलाक दे दिया, जिसे अपील के लिये निर्धारित समय सीमा के भीतर ऊपरी न्यायालय में चुनौती नहीं दिये जाने के कारण अंतिम रूप दे दिया गया।
  • वर्तमान प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) 12.2015 को दर्ज की गई थी।
    • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में बताया गया है कि प्रतिवादी/शिकायतकर्ता ने घटनाओं/अपराधों के समय, तारीख और स्थान का उल्लेख किये बिना, कथित दुर्व्यवहार, क्रूरता और उत्पीड़न का आरोप लगाया।
    • हालाँकि, प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में किसी विशेष घटना का आरोप नहीं लगाया गया था, न ही उसने यह उल्लेख किया था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उसे किस तरह से शारीरिक या मानसिक रूप से परेशान किया गया था।

न्यायालय की टिप्पणी

न्यायमर्ति जितेंद्र दोशी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करते हुए कहा कि सक्षम न्यायालय द्वारा तलाक की मंजूरी देने और शादी को खत्म करने के बाद होने वाले अपराधों या घटनाओं के संबंध में क्रूरता के मामले दर्ज नहीं किये जा सकते हैं।

क्रूरता

  • वैवाहिक संबंधों में क्रूरता - इसका अर्थ एक ऐसा वैवाहिक कृत्य है जो दूसरों को शारीरिक, मानसिक या आर्थिक जैसे किसी भी प्रकार का दर्द और कष्ट पहुंचाता है।
  • क्रूरता क्या है इसका निर्धारण स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूले से नहीं किया जा सकता; बल्कि यह मामले के समय, स्थान, व्यक्ति, तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR)

  • यह एक लिखित दस्तावेज है जो पुलिस द्वारा तब तैयार किया जाता है जब उन्हें किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने की सूचना मिलती है।
  • यह सूचना CRPC की धारा 154 (1) के तहत पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को प्रदान की जा सकती है।
    • यदि किसी पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी ऐसी रिपोर्ट को लेने से मना करता है या अस्वीकार करता है, तो इसे CRPC की धारा 154(3) के तहत संबंधित पुलिस अधीक्षक को लिखित रूप में या डाक द्वारा भेजा जा सकता है
  • उच्च न्यायालय द्वारा CRPC की धारा 482 के तहत किसी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द किया जा सकता है। इस संबंध में, मधु लिमये बनाम महाराष्ट्र राज्य (1977) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धांत निर्धारित किये गये हैं जो निम्नलिखित हैं :
    • यदि पीड़ित पक्ष की शिकायतों के निवारण के लिये सीआरपीसी में कोई विशिष्ट प्रावधान है, तो धारा 482 की सहायता नहीं ली जानी चाहिये।
    • प्रथम सूचना रिपोर्ट रद्द करने की शक्ति का प्रयोग संयम से किया जाना चाहिये और यह सुनिश्चित होना चाहिये कि न्यायालय की किसी भी प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो या न्याय सुनिश्चित करने के लिये अन्यथा न हो।
    • वह संहिता के किसी अन्य प्रावधान में प्रदान किये गए कानून की स्पष्ट बाधा, या कोई अन्य कानून न्यायालय को धारा 482 सीआरपीसी के तहत कार्रवाई करने से रोकता है।

भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC, 1860)

वर्तमान मामला भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC, 1860) के निम्नलिखित प्रावधानों के तहत दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट से संबंधित है:

  • धारा 114 - जब अपराध किया जाता है तो दुष्प्रेरक उपस्थित रहता है - भारतीय दंड संहिता की धारा 114 के अनुसार, जब कभी कोई व्यक्ति अनुपस्थित होने पर दुष्प्रेरक के नाते दण्डनीय हो, और वह दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किये गये अपराध / कार्य के समय उपस्थित होने, के लिये दण्डनीय होता है, तो यह समझा जायेगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है।
  • धारा 294 - अश्लील हरकतें और गाने
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के अनुसार,
  • (ख) किसी भी सार्वजनिक स्थान या उसके आस पास कोई अश्लील गाना, कथागीत या शब्द गाता है या बोलता है तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास जिसे तीन महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जायेगा।
  • धारा 323 - जानबूझ कर स्वेच्छा से किसी को चोट पहुँचाने के लिये दंड -
  • जो भी व्यक्ति (धारा 334 में दिये गए मामलों के सिवा) जानबूझ कर किसी को स्वेच्छा से चोट पहुँचाता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या एक हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।
  • धारा 494 - पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना।

जो कोई भी पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी स्थिति में विवाह करेगा जिसमें पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह करना अमान्य होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जायेगा।

अपवाद--इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं है, जिसका ऐसे पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम अधिकारिता के न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित कर दिया गया हो, यह न ही किसी ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जो पूर्व पति या पत्नी के जीवन के दौरान विवाह का अनुबंध करता है, यदि ऐसा पति या पत्नी, आगामी विवाह के समय, ऐसे व्यक्ति से सात वर्ष तक लगातार अनुपस्थित रहेगी, और ऐसे व्यक्ति ने उस समय के भीतर जीवित होने के बारे में नहीं सुना होगा, बशर्ते कि ऐसा पश्चातवर्ती विवाह करने वाला व्यक्ति ऐसा विवाह होने से पहले, उस व्यक्ति को, जिसके साथ ऐसा विवाह हुआ है, तथ्यों की वास्तविक स्थिति के बारे में सूचित करें, जहां तक वे उसकी जानकारी में हों।

धारा 498A - किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना

पति या पति के रिश्तेदार, उसकी पत्नी के साथ क्रूरता करते है तो, उन्हें तीन वर्ष कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।

स्पष्टीकरण -- इस धारा के अनुसार, क्रूरता से निम्नलिखित आशय है :

(क) जानबूझकर एसा व्यवहार करना जो शादीशुदा महिला को आत्महत्या करने के लिये या उसके शरीर के किसी अंग या उसके जीवन को नुकसान पहुँचाने के लिये (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) उकसाये या;

(ख) शादीशुदा महिला के माता-पिता, भाई-बहन या अन्य रिश्तेदार से किसी संपत्ति या कीमती वस्तु (जैसे सोने के जेवर, मोटर-गाड़ी आदि) की गैर-कानूनी माँग पूरी करवाने के लिये या ऐसी मांग पूरी न करने के कारण उसे तंग किया जाना।

धारा 506- आपराधिक धमकी के लिये सजा

जो कोई भी आपराधिक धमकी का अपराध करता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है या आर्थिक दंड या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।

यदि धमकी मृत्यु या गंभीर चोट, आदि के लिये है - और यदि धमकी मौत या गंभीर चोट पहुंचाने, या आग से किसी संपत्ति का विनाश कारित करने के लिये, या मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध कारित करने के लिये, या सात वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध कारित करने के लिये, या किसी महिला पर अपवित्रता का आरोप लगाने के लिये हो, तो अपराधी को किसी एक अवधि के लिये कारावास जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।