करेंट अफेयर्स और संग्रह
होम / करेंट अफेयर्स और संग्रह
सांविधानिक विधि
अनुच्छेद 14 का आह्वान
15-Nov-2024
टिंकू बनाम हरियाणा राज्य “न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 14 का उपयोग किसी और व्यक्ति को दी गई अवैधता को दोहराने को सही ठहराने के लिये नहीं किया जा सकता।” न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चाचा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को दिये गए अवैध लाभ के आधार पर समान व्यवहार का दावा नहीं कर सकता है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14 को अवैधता को कायम रखने के लिये लागू नहीं किया जा सकता है। यह मामला एक याचिकाकर्त्ता से जुड़ा था जो अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहा था, क्योंकि हरियाणा सरकार ने वर्ष 1999 की नीति के तहत समय-सीमा के कारण उसके दावे को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि इसी तरह की परिस्थितियों में अन्य लोगों को समय-सीमा समाप्त होने के बावजूद नियुक्तियाँ दी गई थीं, लेकिन न्यायालय ने कानूनी नीतियों का पालन करने की आवश्यकता का हवाला देते हुए अस्वीकृति को बरकरार रखा।
टिंकू बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- हरियाणा पुलिस में कांस्टेबल जय प्रकाश की 22 नवंबर, 1997 को ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो गई, साथ ही एक अन्य कांस्टेबल बलवान सिंह की भी मृत्यु हो गई।
- अपने पिता की मृत्यु के समय अपीलकर्त्ता (जय प्रकाश का पुत्र) केवल सात वर्ष का था, और 8 मई, 1995 की प्रचलित नीति में श्रेणी III और IV के पदों के लिये अनुग्रह नियुक्ति का प्रावधान था।
- बलवान सिंह की विधवा को कांस्टेबल के पद पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई, जबकि जय प्रकाश की पत्नी ने अशिक्षित होने के कारण स्वयं के स्थान पर अपने अवयस्क बेटे के लिये अनुकंपा नियुक्ति के लिये आवेदन कर दिया।
- हरियाणा के पुलिस महानिदेशक ने 15 अप्रैल, 1998 को एक पत्र के माध्यम से निर्देश दिया कि अपीलकर्त्ता का नाम अवयस्क रजिस्टर संख्या 47 में दर्ज किया जाए, जिसमें उसके लिये एक पद आरक्षित करने का आशय दर्शाया गया।
- 10 अक्तूबर. 2008 को वयस्क होने पर अपीलकर्त्ता ने अपनी माँ के अभ्यावेदन के समर्थन में अनुग्रह राशि योजना के तहत नियुक्ति के लिये DGP से संपर्क किया।
- DGP ने 28 अप्रैल, 2009 को दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पिता की मृत्यु को 11 वर्ष बीत चुके हैं, जिससे वर्ष 1999 के सरकारी निर्देशों के तहत यह समय समाप्त हो गया है, जिसके अनुसार अवयस्कों को कर्मचारी की मृत्यु के तीन वर्ष के भीतर वयस्क होना आवश्यक है।
- इस अस्वीकृति के बाद, अपीलकर्त्ता ने वर्ष 2009 में उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें अधिकारियों से प्राप्त पूर्व संचार के आधार पर वचनबद्धता के सिद्धांत का आह्वान किया गया।
- उच्च न्यायालय द्वारा उसकी याचिका खारिज किये जाने के बाद, उसने अंतर-न्यायालय अपील दायर की, जिसे भी खारिज कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप उसने उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति किसी कर्मचारी का निहित अधिकार या सेवा की शर्त नहीं है, जिसकी मृत्यु सेवा के दौरान हो जाती है; बल्कि यह नियुक्ति के सामान्य नियम का अपवाद है, जिसके लिये उचित विज्ञापन और चयन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियों का उद्देश्य अपने एकमात्र कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के कारण अचानक वित्तीय अभाव का सामना करने वाले परिवारों को तत्काल सहायता प्रदान करना होता है और यह लागू नीति, निर्देशों या नियमों में निर्धारित आवश्यकताओं के अधीन होना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिये किसी नीति, निर्देश या नियम के अभाव में ऐसी नियुक्ति नहीं दी जा सकती है, तथा ऐसे दावों के लिये वैधानिक समर्थन की आवश्यकता पर बल दिया।
- न्यायालय ने कहा कि आश्रित द्वारा दावा प्रस्तुत करने के लिये मृत्यु की तिथि से तीन वर्ष की सीमा अवधि, जिसमें वर्ष 1999 की नीति निर्देशों के अनुसार वयस्कता प्राप्त करना भी शामिल होता है, को अनुचित या अतार्किक नहीं माना जा सकता।
- न्यायालय ने दृढ़तापूर्वक स्थापित किया कि अनुच्छेद 14 का समानता सिद्धांत सकारात्मक कानून पर आधारित होता है और इसका प्रयोग केवल कानूनी वैधता वाले दावों को लागू करने के लिये किया जा सकता है, न कि अनियमितताओं या अवैधताओं को कायम रखने के लिये।
- न्यायालय ने कहा कि योजना के विपरीत कुछ व्यक्तियों को गलत तरीके से लाभ प्रदान करने से संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत अन्य लोगों को समान लाभ प्राप्त करने का अधिकार नहीं मिलता है।
- न्यायालय ने कहा कि पूर्व में प्राप्त अनियमित लाभों के आधार पर दावों पर विचार करना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा तथा इससे अराजकता उत्पन्न होगी।
- न्यायालय ने कहा कि बिना कानूनी आधार या औचित्य के लाभ या सुविधा प्रदान करने के लिये इक्विटी का विस्तार नहीं किया जा सकता, भले ही अतीत में दूसरों को इसी प्रकार के लाभ गलत तरीके से प्रदान किये गए हों।
- न्यायालय ने कहा कि अवैधताओं को जारी रखने के लिये निर्देश जारी करना न केवल न्याय का उल्लंघन होगा, बल्कि इसके मौलिक प्रकृति को भी कमज़ोर करेगा, जिससे इस प्रक्रिया में कानून भी प्रभावित होगा।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 क्या है?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है:
- राज्य भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
- कानून के समक्ष समानता:
- यह एक नकारात्मक अवधारणा है जो किसी भी व्यक्ति के पक्ष में विशेष विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति सुनिश्चित करती है।
- कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, चाहे उसकी स्थिति, पद या स्थिति कुछ भी हो।
- हर कोई देश के सामान्य कानून के अधीन है और सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता के अधीन है।
- कानूनों का समान संरक्षण:
- यह एक सकारात्मक अवधारणा है जो समान परिस्थितियों में समान व्यवहार सुनिश्चित करती है।
- समान परिस्थितियों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिये।
- यदि उचित वर्गीकरण हो तो विभिन्न परिस्थितियों के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जा सकता है।
- उचित वर्गीकरण परीक्षण:
- अनुच्छेद 14 के अंतर्गत किये गए किसी भी वर्गीकरण को दो परीक्षणों से गुज़रना होगा: a) वर्गीकरण बोधगम्य विभेदों पर आधारित होना चाहिये b) विभेदों का प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्य से तर्कसंगत संबंध होना चाहिये।
- आवेदन का दायरा:
- नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों पर लागू होता है।
- विधायी और कार्यकारी दोनों तरह की कार्रवाइयों को बाध्य करता है।
- मनमाने राज्य की कार्रवाई से सुरक्षा करता है।
- अपवाद/सीमाएँ:
- सभी मामलों में पूर्ण समानता या समान व्यवहार अनिवार्य नहीं करता।
- तर्कसंगत आधार पर उचित वर्गीकरण की अनुमति देता है।
- कुछ वर्गों (जैसे महिलाएँ, बच्चे, SC/ST) के लिये विशेष प्रावधान अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करते हैं।
- आधुनिक व्याख्या:
- इसमें मनमाने ढंग से की जाने वाली कार्रवाई पर रोक शामिल है।
- इसमें गैर-भेदभाव के सिद्धांत को शामिल किया गया है।
- इसमें राज्य की किसी भी कार्रवाई को निष्पक्ष, उचित और मनमाना नहीं होना चाहिये।
- न्यायिक अनुप्रयोग:
- न्यायालय उन कानूनों को रद्द कर सकते हैं जो अनुचित वर्गीकरण बनाते हैं।
- मनमाने कानून और कार्यकारी कार्रवाइयों के विरुद्ध गारंटी के रूप में कार्य करता है।
- राज्य द्वारा तर्कसंगत और गैर-भेदभावपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करता है।
- मौलिक अधिकार:
- संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा है।
- आपातकाल के दौरान भी इसे निलंबित नहीं किया जा सकता।
- न्यायालयों में सीधे लागू किया जा सकता है।
संविधान का अनुच्छेद 14 कब लागू किया जा सकता है?
- कानूनी स्थिति की आवश्यकताएँ:
- प्रत्यक्ष प्रभाव/क्षति दर्शाई जानी चाहिये।
- राज्य की कार्रवाई शामिल होनी चाहिये।
- किसी भी व्यक्ति (नागरिक या गैर-नागरिक) द्वारा अनुच्छेद 32 (उच्चतम न्यायालय) या अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय) के तहत रिट याचिकाओं के माध्यम से इसका आह्वान किया जा सकता है।
- चुनौती के लिये आधार:
- भेदभावपूर्ण कानून या राज्य की कार्रवाइयाँ।
- मनमाने प्रशासनिक निर्णय।
- अनुचित वर्गीकरण।
- प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन।
- समान स्थिति वाले व्यक्तियों के साथ अलग व्यवहार।
- भार और साक्ष्य:
- याचिकाकर्त्ता को भेदभाव का प्रथम दृष्टया मामला साबित करना होगा।
- समान व्यक्तियों के साथ असमान व्यवहार को प्रदर्शित करना होगा।
- उचित वर्गीकरण का अभाव स्थापित करना होगा।
- विशिष्ट साक्ष्य के साथ स्पष्ट उल्लंघन दिखाया जाना चाहिये।
- सीमाएँ:
- निजी कार्रवाइयों के विरुद्ध इसका उपयोग नहीं किया जा सकता।
- अवैधता में समानता का दावा करने के लिये उपलब्ध नहीं।
- वैध वर्गीकरण को चुनौती नहीं दी जा सकती।
- संरक्षित वर्गों के लिये विशेष प्रावधान मौजूद होने पर लागू नहीं होता।
- लागू किये गए कानूनी परीक्षण:
- पारंपरिक उचित वर्गीकरण परीक्षण (समझदारीपूर्ण भिन्नता और तर्कसंगत संबंध)।
- आधुनिक मनमानी परीक्षण (प्रकट मनमानी और अनुचितता)।
- निष्पक्ष प्रक्रिया परीक्षण।
- उपलब्ध उपचार:
- असंवैधानिकता की घोषणा।
- भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त करना।
- समान व्यवहार के लिये परमादेश।
- भेदभावपूर्ण कार्रवाई पर रोक।
- उचित मामलों में मुआवज़ा।
सिविल कानून
अनुकंपा नियुक्ति
15-Nov-2024
टिंकू बनाम हरियाणा राज्य “अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं होता है।” न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं होता है।
- उच्चतम न्यायालय ने टिंकू बनाम हरियाणा राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
टिंकू बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह अपील हरियाणा पुलिस में एक मृतक कांस्टेबल के बेटे द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग की गई थी, क्योंकि उसके पिता की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो गई थी।
- उस समय (08.05.1995) लागू नीति में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों तक ही अनुग्रहपूर्ण नियुक्तियों का प्रावधान था।
- अपीलार्थी की माँ अशिक्षित होने के कारण नियुक्ति नहीं मांग सकती थी, इसलिये उसने अपने बेटे के लिये अनुकंपा नियुक्ति के लिये आवेदन किया।
- हरियाणा के DGP द्वारा पुलिस अधीक्षक को एक पत्र जारी कर निर्देश दिया गया कि अपीलकर्त्ता (टिंकू) का नाम अवयस्कों के रजिस्टर में दर्ज किया जाए।
- इससे यह संकेत मिलता है कि प्राधिकारियों का आशय अपीलकर्त्ता को मृतक की अवयस्क संतान होने के कारण बाद में रोज़गार देने का था।
- हालाँकि, बाद में अपीलकर्त्ता के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि दावा समय सीमा पार कर चुका था क्योंकि अपीलकर्त्ता के पिता की मृत्यु की तिथि से लेकर उसके वयस्क होने तक 11 वर्ष बीत चुके थे।
- उपरोक्त प्रयोजन के लिये 22 मार्च, 1999 के सरकारी अनुदेशों पर भरोसा किया गया, जिसके अनुसार अवयस्क आश्रित को लाभ मिलता है, बशर्ते कि वह सरकारी कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के भीतर वयस्क हो जाए।
- इसके अतिरिक्त, “हरियाणा मृतक सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा सहायता नियम, 2006” पर भी भरोसा किया गया, जिसमें अनुग्रह राशि योजना के तहत नौकरी प्रदान करने का प्रावधान नहीं था।
- अपीलकर्त्ता ने वर्ष 2009 में उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी जिसे खारिज कर दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान अपील प्रस्तुत की गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया कि 22 मार्च, 1999 से पहले नियुक्ति का लाभ वयस्कता की आयु प्राप्त करने पर दिया जाता था, भले ही माता-पिता की मृत्यु की तिथि से कितना भी समय बीत गया हो, और इसलिये वर्तमान तथ्यों में ऐसा न करना भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
- न्यायालय ने उपरोक्त बिंदुओं पर निम्नलिखित निर्णय दिया:
- यह लाभ निर्देश लागू होने से पहले प्रदान किया गया था।
- न्यायालय ने कहा कि यदि कोई गलत लाभ प्रदान किया गया है या योजना के विपरीत कोई लाभ प्रदान किया गया है तो इससे दूसरों को COI के अनुच्छेद 14 के संदर्भ में समानता के अधिकार के रूप में दावा करने का अधिकार नहीं मिलेगा।
- न्यायालय ने अनुकंपा नियुक्ति के उद्देश्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि इन नीतियों का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना है।
- इस प्रकार, वर्तमान तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने माना कि किसी कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से निर्धारित तीन वर्ष की अवधि अतार्किक या अनुचित नहीं है।
- इसके अलावा, यह भी माना गया कि अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं होता है।
- अंत में, वर्तमान तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने माना कि यह उचित और तर्कसंगत होगा कि मृतक सरकारी कर्मचारी की विधवा और अपीलकर्त्ता की माँ को एकमुश्त अनुग्रहपूर्ण मुआवज़ा दिये जाने के लिये अपना विकल्प चुनने के लिये एक अवसर दिया जाए।
निहित अधिकार
|
अनुकंपा नियुक्ति क्या है?
परिचय:
- इन नियुक्तियों का आधार और औचित्य संकटग्रस्त तथा अभावग्रस्त परिवारों को अनुतोष प्रदान करना होता है।
- इसलिये इन नीतियों का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना होता है।
- यह ध्यान देने योग्य बात है कि ऐसा अधिकार सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी की सेवा की शर्त नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार की जाँच या चयन प्रक्रिया के बिना आश्रित को दिया जाना चाहिये।
- इसलिये, अनुकंपा नियुक्ति, अत्यधिक वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे मृतक कर्मचारी के परिवार को अनुतोष देने के लिये प्रदान की जाती है, क्योंकि रोज़गार के बिना, परिवार संकट का सामना करने में सक्षम नहीं होगा।
- यह किसी भी मामले में दावेदार द्वारा ऐसी अनुकंपा नियुक्ति के लिये नीति, निर्देश या नियमों में निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करने के अधीन होगा।
ऐतिहासिक निर्णय:
- श्रीमती विमला श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2016):
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियमावली, 1974 के नियम 2(c)(iii) में 'अविवाहित' अर्हता प्राप्त 'पुत्री' शब्द को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।
- उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम माधवी मिश्रा एवं अन्य (2021):
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि विवाहित पुत्री अधिकार के रूप में अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकती।
- कर्नाटक में कोषागार निदेशक एवं अन्य बनाम वी. सोम्याश्री (2021):
- उच्चतम न्यायालय ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति प्रदान करने के सिद्धांत को संक्षेप में इस प्रकार बताया है: -
- अनुकंपा नियुक्ति सामान्य नियम का अपवाद है;
- किसी भी अभ्यर्थी को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार नहीं होता है;
- राज्य की सेवा में किसी भी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार सिद्धांत के आधार पर की जानी चाहिये;
- अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति केवल राज्य की नीति द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करने और/या नीति के अनुसार पात्रता मानदंडों की संतुष्टि पर की जा सकती है;
- आवेदन पर विचार की तिथि को प्रचलित मानदंड अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करने का आधार होना चाहिये।
- महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य. बनाम सुश्री माधुरी मारुति विधाते (2022):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि, मृतक कर्मचारी की विवाहित पुत्री को उसकी मृतक माँ पर आश्रित नहीं माना जा सकता, विशेषकर तब जब कर्मचारी की मृत्यु को काफी समय बीत चुका हो।