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नवीनतम निर्णय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय 2024
« »01-Jan-2025
सुमित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 174A के तहत अपराध का संज्ञान न्यायालय द्वारा केवल उस न्यायालय की लिखित शिकायत के आधार पर लिया जा सकता है जिसने कार्यवाही शुरू की थी, और पुलिस को ऐसे मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है।
दिवाकर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 243(2) के प्रावधानों के अनुसार, मजिस्ट्रेट पहले से जाँचे जा चुके अभियोजन पक्ष के गवाहों को फिर से पेश होने के लिये बाध्य नहीं कर सकता, जब तक कि मजिस्ट्रेट इस बात से संतुष्ट न हो कि न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये यह आवश्यक है।
सुनील दत्त त्रिपाठी बनाम प्रधान सचिव गृह विभाग, लखनऊ एवं अन्य के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि आत्मरक्षा के उद्देश्य से पिस्तौल चलाने पर लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन नहीं होता है।
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हेमसिंह @ टिंचू बनाम श्रीमती भावना
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि जब क्रूरता पाई जाती है तो तलाक लेने का कारण बनता है।
कुमारी अंकिता देवी बनाम श्री जगदीपेंद्र सिंह @कन्हैया
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शून्य और शून्यकरणीय विवाह के बीच अंतर को उजागर किया है और कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 11 का मूल्यांकन धारा 11 में उल्लिखित आधारों के अलावा अन्य आधारों पर नहीं किया जा सकता है।
मेसर्स फल्गुनी स्टील्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि उत्प्रेषण रिट स्वाभाविक रूप से जारी नहीं की जाती है, बल्कि यह उच्च न्यायालय के विवेकाधिकार पर दी जाती है।
धीरेंद्र एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि केवल अपमानजनक भाषा का प्रयोग या अशिष्ट या असभ्य होना भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 504 के अर्थ में जानबूझकर अपमान नहीं माना जाएगा।
सुरेश कुमार सिंह बनाम यूपी राज्य, अपर मुख्य सचिव गृह विभाग, लखनऊ और अन्य
- न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 के तहत सम्मनित व्यक्ति CrPC की धारा 227 के तहत रिहाई की मांग नहीं कर सकता।
संजय अग्रवाल बनाम राहुल अग्रवाल एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संजय अग्रवाल बनाम राहुल अग्रवाल एवं अन्य के मामले में माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 47 के तहत आपत्तियाँ मध्यस्थता पंचाट के प्रवर्तन के लिये निष्पादन कार्यवाही में बनाए रखने योग्य नहीं हैं।
सौरभ कलानी बनाम तनावग्रस्त संपत्ति स्थिरीकरण निधि एवं अन्य
- सौरभ कलानी बनाम तनावग्रस्त संपत्ति स्थिरीकरण निधि एवं अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VII नियम 11 के तहत आवेदन की अस्वीकृति अंतिम सुनवाई के समय उठाए गए सीमा के मुद्दे पर निर्णय लेने पर रेस जूडीकेटा के रूप में कार्य नहीं करेगी।
मेसर्स जीनियस ऑर्थो इंडस्ट्रीज़ बनाम भारत संघ एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग केवल उस याचिकाकर्त्ता के लिये किया जा सकता है, जिसने सद्भावना से न्यायालय में अपील की हो।
रक्षा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि हिंदू विधि के अनुसार, पति या पत्नी के जीवित रहते हुए कोई व्यक्ति कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अवैध और लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता।
विश्वनाथ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 195 (1) (b) (ii) ऐसे मामले में FIR दर्ज करने पर रोक नहीं लगाती है जहाँ न्यायालय के बाहर दस्तावेज़ में कथित जालसाज़ी की गई हो।
ओमप्रकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मुख्य गृह सचिव लखनऊ एवं अन्य के माध्यम से
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 451 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग आपराधिक न्यायालयों द्वारा विवेकपूर्ण तरीके से और बिना किसी अनावश्यक देरी के किया जाना चाहिये।
अंजुमन इंतजामिया मस्जिद प्रबंध समिति वाराणसी बनाम शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि जब सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) किसी प्रक्रियात्मक पहलू के संबंध में निष्क्रिय है, तो न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति पक्षकारों के बीच वास्तविक और पर्याप्त न्याय करने में उसकी सहायता कर सकती है।
श्रीमती प्रीति अरोड़ा बनाम सुभाष चंद्र अरोड़ा एवं अन्य
- न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि किसी हिन्दू परिवार के वयस्क मुखिया को हिन्दू अवयस्क के अविभाजित हिस्से का निपटान करने के लिये न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
शिव प्रताप मौर्य एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 23 के तहत बेगार निषिद्ध है।
राणा प्रताप सिंह बनाम नीतू सिंह एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के तहत पत्नी को देय मासिक भरण-पोषण भत्ते का निर्धारण करते समय, पति अपने वेतन से LIC प्रीमियम, गृह ऋण, भूमि खरीद ऋण की किस्तों या बीमा पॉलिसी प्रीमियम के भुगतान के लिये कटौती की मांग नहीं कर सकता है।
अमन @ वंश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि पीड़िता को नाबालिग बताकर अभियुक्त व्यक्तियों को लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के कठोर कानून के तहत गलत तरीके से फंसाया गया है।
अख्तरी खातून बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर की पीठ ने कहा कि "यदि कार्यरत कर्मचारी की मृत्यु की तिथि पर यह दर्शाया जा सके कि उसकी विवाहित पुत्री उस पर आश्रित है, या उसकी विधवा और अवयस्क परिवार के सदस्यों की देखभाल विवाहित पुत्री द्वारा की जा सकती है, तो यदि उसे अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है, तो यह दावे पर विचार करने और निषेधात्मक नियम की वैधता पर निर्णय लेने का मामला हो सकता है।"
पिंटू सिंह @ राणा प्रताप सिंह एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपमानित करने के लिए जानबूझकर अपमान या धमकी देने वाला कार्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST अधिनियम) की धारा 3(1)(r) के तहत तभी अपराध माना जाएगा जब यह सार्वजनिक रूप से किया गया हो।
सलीम अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (DV अधिनियम) के अध्याय IV के तहत दावा की गई राहत से संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही सिविल प्रकृति की है।
अंकित सिंह एवं तीन अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- हाल ही में न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की पीठ ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 (DP अधिनियम) के वर्ष 1961 में लागू होने और 62 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद दहेज प्रथा के उन्मूलन के संबंध में प्रगति धीमी रही है।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि दहेज़ की अवैध प्रथा पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
मिस ओलिव रोहित एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्म परिवर्तन और यौन शोषण में कथित ज़बरदस्ती के विवादास्पद मुद्दे को उजागर किया।
- न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी और उन्हें तत्काल FIR के अनुसरण में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
मो. असगर अली बनाम गृह सचिव के माध्यम से भारत संघ एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता केवल अनुशासनात्मक कार्यवाही में अनियमितता का आरोप लगाकर यह दिखाने की अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता कि इससे उसके प्रति पूर्वाग्रह उत्पन्न हुआ है।
धीरज बनाम श्रीमती. चेतना गोस्वामी
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम 1890 की धारा 9(1) के तहत अवयस्क के संबंध में "सामान्य निवास" की अवधारणा में अस्थायी निवास व्यवस्था शामिल नहीं है, भले ही अधिनियम के तहत हिरासत याचिका के समय अवयस्क शैक्षिक कारणों से अस्थायी रूप से स्थानांतरित हो गया हो।
- संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम 1890 की धारा 9(1) में निर्दिष्ट किया गया है कि अवयस्क के व्यक्ति की संरक्षकता के संबंध में याचिकाएँ उस ज़िला न्यायालय में दायर की जानी चाहिये, जिसका उस क्षेत्र पर अधिकार हो जहाँ अवयस्क आमतौर पर रहता है। धारा 9 की उप-धाराएँ (2) और (3) अवयस्क की संपत्ति से संबंधित मामलों में अधिकार क्षेत्र को परिभाषित करती हैं।
सिद्ध नाथ पाठक एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- न्यायमूर्ति मोहम्मद फैज़ आलम खान की पीठ ने कहा कि किसी अधिवक्ता के कानून का अभ्यास करने के लाइसेंस को निलंबित करने से अपूरणीय क्षति होगी, क्योंकि इससे उसके मुवक्किल/पेशे के साथ-साथ प्रतिष्ठा भी प्रभावित होगी।
गैरिसन इंजीनियर के माध्यम से भारत संघ बनाम सुश्री सतेंद्र नाथ संजीव कुमार आर्किटेक्ट, ठेकेदार / बिल्डर्स, सिविल इंजीनियर और कॉलोनाइजर्स
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 37 के तहत अपीलीय कार्यवाही में हस्तक्षेप का दायरा, A&C अधिनियम की धारा 34 के तहत पंचाट को चुनौती देने के लिये उपलब्ध आधारों के अंतर्गत आता है।
आयुक्त वाणिज्यिक कर बनाम पान पराग इंडिया लिमिटेड
- न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ की पीठ ने कहा कि फ्रेंचाइज़ करारों में फ्रेंचाइज़र नियंत्रण बनाए रखता है और एक से अधिक फ्रेंचाइज़ियों को समान अधिकार दे सकता है, जिससे पूर्ण अंतरण के बजाय लाइसेंसिंग ढाँचे को मज़बूती मिलती है।
नाज़िया अंसारी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति किसी वयस्क व्यक्ति पर अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ कहीं जाने या रहने, या अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता, क्योंकि यह एक अधिकार है जो भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है।
प्रेम चंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि क्षेत्रीय गांधी आश्रम, मेरठ भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 12 के तहत ‘राज्य’ नहीं है, क्योंकि आश्रम के कार्यों को विनियमित करने या राज्य को इसके मामलों को नियंत्रित करने का अधिकार देने वाला कोई कानून नहीं है।
प्रदुम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने कहा कि यह सर्वविदित है कि बलात्कार का अपराध सिद्ध करने के लिये लिंग में पूर्ण प्रवेश, वीर्य का स्खलन और योनिद्वार की झिल्ली का टूटना आवश्यक नहीं है।
रोशन लाल उर्फ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज़मगढ़ में एक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन आदेश को रद्द करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के कारण ध्यान आकर्षित किया।
- उच्च न्यायालय ने पाया कि मजिस्ट्रेट ने आदेश जारी करते समय न्यायिक विवेक का उपयोग नहीं करते हुए पहले से छपे प्रोफार्मा का यंत्रवत् उपयोग किया था।
रुक्सार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि यदि प्रारंभिक चरण में अभियोजन में लगातार हस्तक्षेप किया जाता है, तो उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 (2021 का अधिनियम) अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल हो जाएगा।
श्रीनिवास राव नायक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- न्यायालय ने धार्मिक अभिव्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धर्मांतरण के सामूहिक कृत्य के बीच अंतर पर गौर किया।
- न्यायालय ने कहा कि संविधान के तहत व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से अपना धर्म चुनने और उसका पालन करने का अधिकार है, लेकिन वे दूसरों को अपने धर्म में परिवर्तित नहीं कर सकते।
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राममिलन बुनकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं संबंधित अपीलें
- न्यायालय ने माना है कि दहेज़ हत्या और दहेज़ से संबंधित अमानवीय व्यवहार से संबंधित आरोपों वाले मामलों में भारतीय दंड संहिता 1860 (IPC) की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप जोड़ना टिकाऊ नहीं है।
फैयाज़ अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की पीठ ने कहा कि कुर्क की जाने वाली संपत्ति केवल फरार व्यक्ति की हो सकती है, न कि वह संपत्ति जिसमें वह रहता हो।
मेसर्स पार्थास टेक्सटाइल्स एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 65 द्वारा लाए गए परिवर्तन का उल्लेख किया है, जो कंपनियों को समन देने के तरीकों का विस्तार करता है।
कैलाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला
- न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने चिंता व्यक्त की कि यदि धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया जारी रही तो देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक बन सकती है।
दिनेश प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की पीठ ने कहा कि जिस कर्मचारी को आरोपों से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है और बहाल कर दिया गया है, वह उस अवधि के लिये पूर्ण वेतन पाने का हकदार है, जब वह सेवा से बाहर था।
महेंद्र कुमार सिंह बनाम रानी सिंह
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यह अनुमान लगाने के लिये कि क्या इस आधार पर विवाह पूरी तरह से टूट गया है कि पक्षकार लंबे समय तक एक साथ नहीं रह रहे हैं, केवल मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करके ही लगाया जाना चाहिये।
श्रुति अग्निहोत्री बनाम आनंद कुमार श्रीवास्तव
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि विवाह प्रमाणपत्र में सप्तपति का उल्लेख न होना विवाह के अनुष्ठान का प्रमाण नहीं है।
सुनील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की पीठ ने कहा कि जहाँ प्रत्यक्ष साक्ष्य संदिग्ध प्रतीत होते हैं, वहाँ मकसद का अस्तित्व या अनुपस्थिति महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
धनुष वीर सिंह बनाम डॉ. इला शर्मा
- न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत किसी कंपनी के विरुद्ध जारी आदेश को उस फर्म के कर्मचारी/प्रतिनिधि/निदेशक के विरुद्ध लागू किया जा सके।
सहस डिग्री कॉलेज सचिव नदीम हसन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य ज़िला मजिस्ट्रेट जे.पी. नगर व अन्य के माध्यम से
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि मुस्लिम विधि के तहत मौखिक उपहार, जिन्हें बाद में लिखित रूप में प्रलेखित किया जाता है, लेकिन अपंजीकृत रहते हैं, भारतीय स्टाम्प अधिनियम की धारा 47-A के तहत कार्यवाही के अधीन नहीं हैं।
डॉ. राजेश सिंह एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक दंपत्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। अभियुक्त ने मृतक व्यक्ति को हटा दिया था, जो अपनी माँ के साथ अस्पताल गया था, और बाद में सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई। न्यायालय ने कहा कि विशेष जाँच दल ने आपराधिक मानव वध की संभावना को खारिज कर दिया है, और मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध दंपत्ति की अपील को बरकरार रखा गया है।
किशोर शंकर सिगनापुरकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि चेक पर हस्ताक्षर करने वाले निदेशक को बुलाया गया है तो यह माना जाएगा कि कंपनी को भी बुलाया गया है।
सिन्हा डेवलपमेंट ट्रस्ट एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 15 अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि वर्ष 2002 में संशोधन के माध्यम से सम्मिलित सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VI नियम 17, उन मुकदमों पर लागू नहीं होंगे, जो संशोधन की तिथि से पहले लंबित हैं।
संजीत सिंह सलवान एवं 4 अन्य बनाम सरदार इंद्रजीत सिंह सलवान एवं 2 अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 92 के तहत उल्लिखित ट्रस्ट से संबंधित विवाद प्रकृति में मध्यस्थता योग्य नहीं हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि CPC की धारा 89, जो न्यायालय के बाहर समझौते के बारे में प्रावधान करती है, CPC की धारा 92 पर अधिभावी प्रभाव नहीं रखेगी।
हरमीत सिंह बनाम देश दीपक गुप्ता
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि सिविल न्यायालयों को बेदखली के संबंध में मकान मालिकों के विरुद्ध स्थायी व्यादेश के लिये किरायेदारों के मुकदमों की सुनवाई करने का अधिकार है, जिसमें कहा गया है कि यह यू.पी. शहरी परिसर किरायेदारी विनियमन अधिनियम, 2021 द्वारा वर्जित नहीं है।
- न्यायालय ने रायबरेली के सिविल जज द्वारा एक किरायेदार के मुकदमे को खारिज करने का अवलोकन किया, जिसे याचिकाकर्त्ता ने चुनौती दी थी क्योंकि उसका पुनरीक्षण भी खारिज कर दिया गया था।
अवनी पांडे बनाम चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण महानिदेशालय के माध्यम से महानिदेशक लखनऊ एवं अन्य
- न्यायमूर्ति आलोक माथुर की पीठ ने माना कि परपोती स्वतंत्रता सेनानियों के ‘आश्रित’ नहीं हैं।
- उच्च न्यायालय ने यहां उठाए गए प्रश्न का उत्तर दिया: “क्या स्वतंत्रता सेनानियों की परपोती को भी उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों और भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1993 की धारा 2 (b) के अनुसार स्वतंत्रता सेनानियों पर आश्रित होने के नाते लाभ दिया जाना चाहिये?
- तदनुसार, न्यायालय ने माना कि इस मामले में भी परपोती को ‘आश्रितों’ के दायरे में शामिल नहीं किया जाएगा।
X बनाम Y
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 12 के तहत "महत्त्वपूर्ण तथ्य" में कोई भी तथ्य शामिल है जो विवाह के लिये सहमति प्राप्त करने के लिये आवश्यक है, अगर इसे छिपाया जाता है तो यह विवाह को शून्य घोषित करने का आधार हो सकता है।
श्री राजपति बनाम श्रीमती भूरी देवी
- न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिये कि बहू ससुराल में नहीं रह रही है, वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है।
श्रीमती आरती तिवारी बनाम संजय कुमार तिवारी
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्णय सुनाया कि 21 वर्ष का अलगाव, आपराधिक मुकदमे और कठोर शब्दों से जुड़ा हुआ, विवाह के अपूरणीय टूटने को दर्शाता है। न्यायालय ने कहा कि सुलह के लिये प्रयास की कमी और तलाक की कार्यवाही के बाद ही आपराधिक आरोपों का पीछा करना यह दर्शाता है कि विवाह को पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
X बनाम Y
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्णय सुनाया कि हिंदू विवाह, जो संस्कारों पर आधारित है, संविदाओं की तरह भंग नहीं किया जा सकता। यह निर्णय एक महिला की अपील को स्वीकार करते हुए आया, जिसमें उसने कुटुंब न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें उसके पति के अनुरोध पर ही उसके विवाह को भंग कर दिया गया था।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण सिविल न्यायालय के विकल्प हैं और उनके पास सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के तहत सिविल न्यायालयों के समान ही शक्तियाँ हैं।
आदर्श यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की पीठ ने कहा कि भले ही आवेदक और मृतक पति-पत्नी के रूप में रह रहे हों, फिर भी IPC की धारा 498A और धारा 304B के तहत प्रावधान लागू होंगे।
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डॉ. बृजपाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि पुलिस गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 (PCPNDT) के तहत जाँच नहीं कर सकती है तथा केवल उपयुक्त प्राधिकारी को ही ऐसे मामलों का संज्ञान लेने का अधिकार है।
संगीता मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 6 अन्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) तभी स्वीकार्य है जब उसमें उसी मामले में प्राप्त निष्कर्षों और साक्ष्यों के भिन्न संस्करण हों जिसके लिये पहली FIR दर्ज की गई थी।
कनिका ढींगरा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि यदि अपराध आम जनता को प्रभावित करने वाला आर्थिक अपराध है और प्रभावशाली पद पर आसीन महिला को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 437 का लाभ नहीं दिया जा सकता है, तो न्यायालय ज़मानत देने से इनकार कर सकता है। CrPC की धारा 437 अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 480 के अंतर्गत आती है।
जयन्त्री प्रसाद बनाम राम शिरोमणि पांडे एवं 2 अन्य के माध्यम से श्री राम जानकी लक्ष्मण जी विराजमान मंदिर, प्रतापगढ़
- न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा कि CPC की धारा 92 के तहत वाद मूल अधिकार क्षेत्र वाले प्रधान सिविल न्यायालय अर्थात ज़िला न्यायाधीश के न्यायालय में दायर किया जा सकता है, किसी अन्य न्यायालय में नहीं।
संगीता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
- न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा कि बेटी का दायित्व है कि वह अपनी माँ का भरण-पोषण करे।
- आवेदक बेटी को यह भी निर्देश दिया गया कि वह अस्पताल में भर्ती अपनी माँ के इलाज पर हुए खर्च का कम-से-कम 25% भुगतान करके अपनी माँ के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करे। न्यायालय ने इस मामले में दोनों पक्षों को इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास करने की सलाह भी दी। इस संबंध में न्यायालय ने रहीम के एक दोहे और तैत्तिरीय उपनिषद की शिक्षाओं का भी हवाला दिया।
विवेक नायक (मृत) एवं अन्य बनाम मध्यस्थ / कलेक्टर अलीगढ़ एवं 3 अन्य
- न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की पीठ ने कहा कि आदेश को तब तक चुनौती नहीं दी जा सकती जब तक कि पक्ष यह साबित न कर दें कि आदेश स्पष्ट रूप से अवैध या मनमाना है।
- न्यायालय ने कहा कि रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चलता है कि आदेश उचित विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया था और वाणिज्यिक दर के अनुसार मुआवज़ा न देने के लिये विस्तृत कारण बताए गए हैं। न्यायालय ने कहा कि यदि दो दृष्टिकोण संभव हैं और न्यायाधिकरण ने उस आदेश के आधार पर एक दृष्टिकोण लिया है तो उसे तब तक चुनौती नहीं दी जा सकती जब तक कि पक्ष यह साबित न कर दें कि आदेश स्पष्ट रूप से अवैध है।
XXX बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि वर्तमान मामले में जहाँ आरोप यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ के थे, पुलिस को प्रारंभिक जाँच करने का निर्देश देना और अभियुक्त के पक्ष में पुलिस रिपोर्ट पर भरोसा करना न तो वांछित है और न ही कानून सम्मत है।
X बनाम Y
- न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि चूँकि दोनों याचिकाओं में कार्रवाई का कारण अलग-अलग है, इसलिये इस पर रेस जूडीकेटा द्वारा रोक नहीं लगाई जा सकती।
- न्यायालय ने माना कि हालाँकि दूसरी तलाक याचिका में कुछ पैराग्राफ पहली याचिका के समान थे, तथापि दूसरी याचिका में अतिरिक्त आधार प्रस्तुत किये गए थे जो पहली याचिका में मौजूद नहीं थे।
- न्यायालय ने पाया कि दूसरी याचिका में नए तत्त्व इस प्रकार हैं: दूसरी याचिका में मुकदमेबाज़ी की लागत और पत्नी को दिये जाने वाले खर्चों पर प्रकाश डाला गया। इसमें वर्ष 2020 की एक विशेष घटना का उल्लेख किया गया जिसमें पति के परिवार के सदस्यों पर शारीरिक और मानसिक हमला किया गया था।
नगेन्द्र शर्मा एवं अन्य बनाम न्यायालय प्रधान न्यायाधीश कुटुंब न्यायालय गोंडा
- न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की पीठ ने माना कि CPC के प्रावधान कुटुंब न्यायालय के समक्ष कार्यवाही पर लागू होते हैं।
- न्यायालय ने FCA की धारा 10 का अवलोकन किया और माना कि प्रावधान स्पष्ट रूप से बताता है कि CPC के प्रावधान पारिवारिक न्यायालय के समक्ष कार्यवाही पर लागू होंगे और कुटुंब न्यायालय को एक सिविल न्यायालय माना जाएगा और उसके पास ऐसे न्यायालय की शक्तियाँ होंगी।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि इस मामले में व्यादेश जारी नहीं की जा सकती क्योंकि कुटुंब न्यायालय के पास आदेश IX नियम 13 CPC के तहत आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है।
पुनिता भट्ट उर्फ पुनिता धवन बनाम BSNL, नई दिल्ली
- न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि विधवा बेटी भी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार होगी।
- न्यायालय ने कहा कि भारत सरकार, कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के लिये जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि अनुकंपा नियुक्ति की योजना ‘आश्रित पारिवारिक सदस्य’ पर लागू होती है।
- न्यायालय ने कहा कि विधवा बेटी भी बेटी की परिभाषा में शामिल होगी।
- साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि ऐसी विधवा बेटी अपने पिता पर आश्रित नहीं है, तो वह दिशा-निर्देशों के तहत अनुकंपा नियुक्ति की हकदार नहीं होगी।
पवन कुमार पांडे बनाम सुधा
- न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि किसी भी हद तक मानसिक विकार का होना विवाह विच्छेद को उचित ठहराने के लिये कानून में पर्याप्त नहीं है।
- इस मामले में न्यायालय ने “क्रूरता” और “परित्याग” के आधार पर विवाह-विच्छेद की जाँच की।
- न्यायालय ने पाया कि इस मामले में जानबूझकर परित्याग किया गया था क्योंकि प्रतिवादी केवल कुछ दिनों के लिये अपीलकर्त्ता के साथ रही और एक दशक से अधिक समय तक उसके साथ रहने के लिये वापस नहीं आई।
- अपीलकर्त्ता के उपरोक्त आचरण से पता चलता है कि प्रतिवादी ने अपने और अपीलकर्त्ता के बीच के संबंध को त्याग दिया है और पत्नी की ओर से पति से विमुख होने की भावना है जो परित्याग का गठन करने के लिये पर्याप्त है।
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